ભટકેલો માણસ છું , ભટકતા ભટકતા માતૃભારતી એપમાં આવી ગયો.લખવાનું ચાલુ કર્યુ.તેમાં વાંચકોનો સાથ મળી ગયો એટલે કલમ ચાલવા લાગી. કલમનો સાથ અને વાંચક નો સાથ પછી જોઇએ બીજું.બિન્દાસ્ત માણસ.

वीर सावरकर / पुण्य स्मरण - 26 फरवरी

* वीर सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य योद्धा थे जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा मिली, सजा को पूरा किया और फिर से राष्ट्र जीवन में सक्रिय हो गए।

* वे विश्व के ऐसे पहले लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को दो-दो देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया।

* वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।

* वे पहले स्नातक थे जिनकी स्नातक की उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अँगरेज सरकार ने वापस ले लिया।

* वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।

* वीर सावरकर ने राष्ट्र ध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम ‍दिया था, जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने माना।

* उन्होंने ही सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया। वे ऐसे प्रथम राजनैतिक बंदी थे जिन्हें विदेशी (फ्रांस) भूमि पर बंदी बनाने के कारण हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला पहुँचा।

* वे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया तथा बंदी जीवन समाप्त होते ही जिन्होंने अस्पृश्यता आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया।

* दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंदमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएँ लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई दस हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।

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21 ફેબ્રુઆરીએ આંતરરાષ્ટ્રીય માતૃભાષા દિવસની ઉજવણી કરવામાં આવે છે. વિશ્વમાં ભાષાકીય અને સાંસ્કૃતિક વિવિધતા અને બહુભાષીયતાને પ્રોત્સાહન આપવા તેમજ માતૃભાષા વિશે જાગૃતિ ફેલાવવા માટે આ દિવસની ઉજવણી કરવામાં આવે છે.

1952 માં આ દિવસે, ઢાકા યુનિવર્સિટીના વિદ્યાર્થીઓ અને કેટલાક સામાજિક કાર્યકરો દ્વારા તેમની માતૃભાષાના અસ્તિત્વ માટે વિરોધ કરવામાં આવ્યો હતો. વિરોધ ટૂંક સમયમાં જ હત્યાકાંડમાં ફેરવાઈ ગયો જ્યારે તત્કાલીન પાકિસ્તાન સરકારની પોલીસે દેખાવકારો પર ગોળીબાર કર્યો. આ ઘટનામાં 16 લોકોએ જીવ ગુમાવ્યા હતા.

1999માં સૌપ્રથમવાર યુનેસ્કો (યુનાઈટેડ નેશન) એ આ મોટી ભાષા ચળવળમાં શહીદ થયેલા લોકોની યાદમાં આંતરરાષ્ટ્રીય માતૃભાષા દિવસ ઉજવવાની જાહેરાત કરી હતી. એમ કહી શકાય કે બાંગ્લા ભાષા બોલનારાઓને તેમની માતૃભાષા પ્રત્યેના પ્રેમને કારણે આજે વિશ્વમાં આંતરરાષ્ટ્રીય માતૃભાષા દિવસ ઉજવવામાં આવે છે.

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*महाशिवरात्रि, पर्व* 🔱

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला महाशिवरात्रि पर्व अनादिकाल से सनातन धर्मावलंबियों के लिए भगवान शिव में उनकी अटूट आस्था की परिचायक रही है

पौराणिक आख्यानों के अनुसार इसी पावन तिथि पर ही भगवान शिव एवं शक्ति स्वरूपा माता पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ था

शिव पुराण में वर्णित संदर्भों के अनुसार इसी तिथि को ही त्रिलोकीनाथ पहली बार सृष्टि में भी प्रकट हुए थे

इस विशेष तिथि को भगवान शिव के जलाभिषेक, रुद्राभिषेक एवं व्रत का विशेष महत्व माना जाता है

माहशिवरात्रि आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी बेहद विशिष्ट मानी जाती है जिस दौरान पूरी रात त्रिपुरारीनाथ की आराधना से मानवमात्र को अद्भुत आध्यात्मिक चेतना की अनुभूति होती है

कर्ता करे न कर सके शिव करे सो होय
तीन लोक नौ खंड में शिव से बड़ा ना कोय 🌼🙏

*मेरी संस्कृति….मेरा देश….मेरा अभिमान* 🚩

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શત્ શત્ નમન

તારા માટે મેં આપેલી ચોકલેટ ખાલી 🍫 હોય શકે, મારા માટે તો એ મારા દિલની લાગણી છે

-Pandya Ravi

#LalaLajpatRai पंजाब केसरी लाला लाजपत राय - जन्म दिवस 28 जनवरी

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता अभियान के मुख्य नेता के रूप में याद किये जाते है. लाल-बाल-पाल की त्रिपुटी में लाल मतलब लाला लाजपत राय ही है. लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को धुडिके ग्राम में (मोगा जिला, पंजाब) हुआ.

वे आर्य समाज के भक्त और आर्य राजपत्र (जब वे विद्यार्थी थे तब उन्होंने इसकी स्थापना की थी) के संपादक भी थे. सरकारी कानून(लॉ) विद्यालय, लाहौर में कानून (लॉ) की पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने लाहौर और हिस्सार में अपना अभ्यास शुरू रखा और राष्ट्रिय स्तर पर दयानंद वैदिक स्कूल की स्थापना भी की, जहा वे दयानंद सरस्वती जिन्होंने हिंदु सोसाइटी में आर्य समाज की पुनर्निर्मिति की थी, उनके अनुयायी भी बने. और भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस मे शामिल होने के बाद, उन्होंने पंजाब के कई सारे राजनैतिक अभियानों में हिस्सा लिया.

मई 1907 में अचानक ही बिना किसी पूर्वसूचना के मांडले, बर्मा (म्यांमार) से उन्हें निर्वासित (देश से निकाला गया) किया गया. वही नवम्बर में, उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत ना होने की वजह से वाइसराय, लार्ड मिन्टो ने उनके स्वदेश वापिस भेजने का निर्णय लिया. स्वदेश वापिस आने के बाद लाला लाजपत राय सूरत की प्रेसीडेंसी पार्टी से चुनाव लड़ने लगे लेकिन वहा भी ब्रिटिशो ने उन्हें निष्कासित कर दिया.

3 फ़रवरी, 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुँचा, जिसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी। लाहौर में 30 अक्टूबर, 1928 को एक बड़ी घटना घटी, जब लाला लाजपत राय के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। पुलिस ने लाला लाजपत राय की छाती पर निर्ममता से लाठियाँ बरसाईं। वे बुरी तरह घायल हो गए। इस समय अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा था-

मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के क़फन की कील बनेगी।

और इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, जिनके प्रयत्नों से हमें आज़ादी मिली। इस घटना के 17 दिन बाद यानि 17 नवम्बर, 1928 को लाला जी ने आख़िरी सांस ली और सदा के लिए अपनी आँखें मूँद लीं।

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#HemuKalani महान क्रान्तिकारी हेमू कालाणी - बलिदान दिवस 21 जनवरी

हेमू कालाणी भारत के एक महान क्रान्तिकारी एवं स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। अंग्रेजी शासन ने उन्हें फांसी की सजा दी । हेमू कालाणी सिंध के सख्खर में २३ मार्च सन् १९२३ को जन्मे थे। उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था।

जब वे किशोर वय के थे तब उन्होंने अपने साथियों के साथ विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और लोगों से स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करने का आग्रह किया. सन् १९४२ में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया तो हेमू इसमें कूद पड़े।

१९४२ में उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी. हेमू कालाणी अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त व्यस्त करने की योजना बनाई. वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे पर फिर भी वहां पर तैनात पुलिस कर्मियों की नजर उनपर पड़ी और उन्होंने हेमू कालाणी को गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए. हेमू कालाणी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई.

उस समय के सिंध के गणमान्य लोगों ने एक पेटीशन दायर की और वायसराय से उनको फांसी की सजा ना देने की अपील की. वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कालाणी अपने साथियों का नाम और पता बताये पर हेमू कालाणी ने यह शर्त अस्वीकार कर दी. २१ जनवरी १९४३ को उन्हें फांसी की सजा दी गई. जब फांसी से पहले उनसे आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की. इन्कलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय की घोषणा के साथ उन्होंने फांसी को स्वीकार किया।
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#ParamvirChakra लांस नायक करम सिंह / पुण्य तिथि 20 जनवरी

लांस नायक करम सिंह ( 15 सितम्बर 1915 – 20 जनवरी 1993 ) पंजाब के बरनाला में जन्में एक सिख थे. 1947 में हुए भारत - पाकिस्तान युद्ध में अभूतपूर्व वीरता के लिए जिन्हें भारत के सेना के वीरों को प्रदान किये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान ” परम वीर चक्र ” से सम्मानित किया गया था.

इस युद्ध में भारत और पाकिस्तान ने तिथवाल सेक्टर पर विजय के लिए लड़ाई लड़ी. दिनांक 23 मई 1948 को भारत ने तिथवाल सेक्टर पर कब्जा कर लिया था परन्तु तुरंत ही पाकिस्तान के जबरदस्त हमले से इस क्षेत्र पर वापस कब्जा कर लिया. सन 1948 के मई और अक्टूबर के दरम्यान तिथवाल के कब्जे के लिए दोनों सेनाओं नें कई लड़ाइयाँ लड़ी.

अक्टूबर 1948 में पाकिस्तानी टुकड़ियों ने तिथवाल के दक्षिण के “रिछ्मार गली” तथा पूर्व में स्थित “नस्ताचुर पास” पर कब्जे के उद्देश्य से आक्रमण प्रारम्भ कर दिए. श्री सिंह रिछ्मार गली क्षेत्र के अग्रिम इलाके में कमान संभाल रहे थे. दुश्मन द्वारा की गयी बमबारी से प्लाटून के बंकर नष्ट हो गये थे कमांडर से बातचीत करने के साधन भी नष्ट कर दिए गए थे अत : श्री सिंह अपने कमांडर को नवीनतम स्थिति की जानकारी देने व फ़ोर्स मंगवाने हेतु सन्देश भेजने की स्थिति में नहीं थे. बुरी तरह घायल होने के बावजूद श्री सिंह ने एक साथी की मदद से दो घायल जवानों को कम्पनी के मुख्य स्थान पर लाया और रिछ्मार गली का बचाव करते रहे.

दुश्मन के पांचवे आक्रमण में दो बार जख्मी होने के बावजूद श्री सिंह मोर्चे पर डटे रहे और अग्रिम क्षेत्र की खाइयों को अपने कब्जे में रखा. जब दुश्मन के सैनिक बहुत नजदीक पहुँच गए तब श्री सिंह अपनी खाई से कूद कर बाहर निकले और दुश्मन के दो सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. इस साहसी कार्रवाई से दुश्मन के हौसले पस्त हो गए और दुश्मन को लड़ाई रोकनी पड़ी. दुश्मन ने सीमा चौकियों पर कुल बार आठ आक्रमण किये परन्तु हर बार उसे मुहँ की खानी पड़ी. तिथवाल के युद्ध में बहादुरी व साहस के लिए श्री सिंह 'परम वीर' चक्र प्राप्त करने वाले दूसरे सैनिक रहे.

श्री सिंह भारतीय सेना से सूबेदार तथा मानक कैप्टेन के रूप में सेवा निवृत हुए. देश को अपने शौर्य से विजय का इतिहास देकर लांस नायक करम सिंह ने एक लम्बा जीवन जीया और 20 जनवरी 1993में अपने गाँव में उन्होंने शांतिपूर्वक अंतिम सांस ली.

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Pandya Ravi લિખિત વાર્તા "स्वामी विवेकानन्द जी" માતૃભારતી પર ફ્રી માં વાંચો
https://www.matrubharti.com/book/19937562/swami-vivekananda