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I AM A HOUSEMAKER, REIKI N COLOUR THERAPIST, SOCIAL WORKER N WRITER समाज में घटित ऐसी घटनाएँ जो मेरे अन्तर्मन को छू जाती हैं, वही मेरे लिए एक सीख , समस्या या उनके निदान के रूप में पन्नों पर उतरती हैं। देशभक्ति, देशभक्त और जवान मेरे लिए विशेष सम्मानिए एवं Role Model हैं। कमजोर और लाचार का दर्द मुझे छूता है
सुप्रभात दोस्तों ! 🙏🙏 किन्ही परिस्थितिवश कुछ समय के लिए मैं मातृभारती पर आप सबके साथ नहीं थी। यही कारण था कि अपनी कोई नयी रचना पोस्ट नहीं कर पायी एवं आपकी रचना पढ़ नहीं सकी। फिलहाल अपनी एक नयी रचना के साथ आपके समक्ष उपस्थित हूँ। मेरी रचना आप सबके आशीर्वाद की आकांक्षी है।🙏🙏 "मेरा वो रोमांचक सफर.... (संस्मरण)" by Neelima Kumar read free on Matrubharti https://www.matrubharti.com/book/19912665/mera-woh-romanchak-safar-sansmaran
नमस्कार दोस्तों ! सर्वप्रथम तो मैं आप सभी लोगों का तहेदिल से आभार व्यक्त करना चाहती हूँ, जो मेरी रचनाओं को अपना कीमती वक्त प्रदान करते हैं। 29 मई 2019 को " चूका बीच " के नाम से मैंने अपनी एक रचना प्रकाशित की थी। किन्हीं पारिवारिक कारणों से कुछ समय के लिए मातृभारती से दूर रही। आज मैं एक रचना " अखबार की recycling क्यों है ज़रूरी ? " post कर रही हूँ। आप सभी से अनुरोध है कि इसे अवश्य ही पढ़ें एवं इस पर विचार करें। अगर आपको लगे कि मैंने सही लिखा है तो इस लेख को और लोगों तक अवश्य पहुँचाएं। अग्रिम आभार के साथ नीलिमा कुमार "अख़बार की recycling क्यों है ज़रूरी ?" by Neelima Kumar read free on Matrubharti https://www.matrubharti.com/book/19881260/akhbaar-ki-recycling-kyo-hai-jaruri
#Kiss तुम्हारे चुम्बन की तपिश आज भी मेरे माथे को महसूस होती है माँ ! काश आज फिर से चूम लेती तो, मेरी पेशानी पर पड़ी लकीरें कुछ तो धुंधली हो जातीं ।
सन् 2019 के गर्भ में पल रहे सन् 2020 का जन्म हो चुका है। नव कोपलें फूट चुकी हैं, नाज़ुक से पौधे को पेड़ बनना है।पत्तियाँ और फूल अभी आने हैं। इसके फूलों की ख़ुश्बू हम सबके मन को महका सके, सुकून के कुछ पल दे सके, इसके लिए इस पौधे की सिचाई एवं हिफाज़त की जिम्मेदारी के लिए हमें ही कटिबद्ध होना है। अंततः पौधे को फलदार वृक्ष बनता देख खुशी भी तो हमें ही मिलनी है। दोस्तों ! साल भर का मत सोचिए। रोज़ सबेरे अपने साथ-साथ एक संकल्प इस पौधे के लिए भी लीजिए और उस दिन उसे ही पूरा करने का प्रयास कीजिए। नकारात्मक विचारों और असंभव जैसे शब्दों का प्रयोग अपनी जिंदगी से निकाल दीजिए। तो आईए! हम सब मिलकर एक प्रण करते हैं -- इस पौधे के बढ़ने में अँजुरी भर सिंचाई का सहयोग हमारा भी हो। नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
छायावाद की जननी " महादेवी वर्मा जी " की 11 सितम्बर को पुण्यतिथि थी। उनकी 32 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें मेरा शत् शत् नमन। अपनी इन पंक्तियों को श्रद्धान्जलिस्वरूप अर्पण कर रहीं हूँ इस युगप्रवर्तनी के चरणों में - छाया की तुम देवी बनकर उतरी वादी में महा प्राण बन, बड़े जतन से सजा रचा कर नवयुग की तुम महा प्रवर्तनी, लहरों सी कल-कल मधुर वाणी और सब भावों की बनी अग्रणी, पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन चतुर्दिशाओं की तुम स्वामिनी, त्रिवेनी के उस महासंगम की एक तुम गंगा पवित्र पावनी, तुम मीरा सी क्षमादायिनी लक्ष्मीबाई सी वज्र प्रतापिनी। सहस्त्र गुणों की ऐ स्वामिनी ! यह प्रशन् नहीं एक मात्र मेरा है जन-जन का जो भंवर में खड़ा। चारों दिशायें हैं मलिन आक्रान्त अन्धकार युक्त है हर प्रभात, हर वीर था जो एक भारतवासी अब करता खंडित , अखण्ड देश, हिन्दू मुस्लिम और सिख, ईसाई बुनते हैं भिन्न कफन भी भाई। अंकुरित होता हर वर्तमान जब घिरा है प्रशनों के भविष्य में ऐसे में क्या भूल हुई माँ ? खींच लिया क्यों अपना आँचल ? अब कौन दिशा दिखलाएगा, अब कौन रखेगा वरद हस्त ? फिर भी करतें हैं चरण स्तुति छाया की हे महादेवी ! महाप्रयाण के बाद भी तुम प्रकाश स्तम्भ सी खड़ी रहो, भूले भटके हर पथिक मात्र को जीवन - सत्य संकेत करो........... नीलिमा कुमार ( मौलिक एवं स्वरचित )
आप सभी लोगों को हमारे भारतवर्ष की 73 वें नहीं बल्कि प्रथम स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई। हाँ ! आज मेरा देश वास्तव में स्वतंत्र हुआ है, पूर्ण स्वतंत्र। नीलिमा कुमार
" 20 वाँ कारगिल विजय दिवस " कारगिल पर गौरवपूर्ण विजय की सभी जवानों को हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई। कारगिल विजय दिवस पर शत् शत् नमन के संग वीर जवानों को समर्पित हैं कुछ पंक्तियाँ.... दिए की लौ से - ऐ जवान ! दिल में तुम हो , और हमारे सजदों में भी तुम हो । हमारी चिन्ताओं के साथ अपनी चिता तुम सजाते हो। तुम जिस बाती का हिस्सा हो उसका दिल भी रोता होगा , तो वहीं गर्व से अश्रुपूरित नम आँखो संग मस्तक भी ऊँचा होता होगा। ये न सोचना कि तुम अकेले हो , मेरा देश ही है वो दियाली जो अपनी बाती को संजोकर रखता है। और तुम उस बाती की लौ जो खुद जलकर हमें हर रोज़ एक नया सबेरा देते हो । ऐ जवान ! इसीलिए तो तुम हमारे दिल में हो और सजदों में भी । नीलिमा कुमार ( मौलिक एवं स्वरचित )
नमस्कार दोस्तों ! हमारे देश में लाखों ऐसे बच्चे हैं जो पढ़ना चाहते हैं मगर उनके पास किताबें ही नहीं हैं। हम सभी का एक छोटा सा प्रयास, उन्हें किताबें उपलब्ध करा सकता है। बस हमें दो काम करने हैं - पहला हमें अपने बच्चों की किताबों को रद्दी वालों को नहीं बेचना है और दूसरा CIVIL BEINGS ORGANISATION के इस VIDEO को ध्यान से सुनना है। यह वीडियो मुझसे किसी ने share किया था। बिना पैसा खर्च किए और बिना कहीं जाए हुए मात्र एक online form भरकर हम कैसे जरूरतमंद बच्चों तक किताबें पहुँचा सकते हैं, यही इस video में बताया गया है। एक विचार मेरे मन में भी आया है कि मात्र पुरानी किताबें ही क्यों ? हम नई किताबें, copy , pen , pencil, rubber , Geometry box, scale , school bags आदि चीजें हैं जो हम इस संस्था के द्वारा भिजवा सकते हैं। बहुत लोगों के साथ ऐसा होता है कि चाहते हुए भी वह सही पात्र, सही जगह नहीं चुन पाते या समयाभाव के कारण कुछ नहीं कर पाते और उनके विचार बस उनके मन में ही रह जाते हैं, तो ऐसे लोगों के लिए यह organization मददगार साबित हो सकती है क्योंकि इनका पूरा procedure शीशे की तरह साफ प्रतीत हो रहा है। हमारा दिया सामान किसके पास पहुँचा है, ये भी हमें जानकारी मिल जाएगी। इसीलिए मात्र video share ना करके मैंने भी एक प्रयास किया है अपने विचारों को आप सब तक पहुँचा कर। दोस्तों! हाथ बढ़ाइए शिक्षा से जुड़ी चीजों को जरूरतमंद बच्चों तक पहुँचाइए। इस video के साथ इसे copy paste करके शेयर ही नहीं करना है बल्कि एक form हमें भी भरना है। मैंने तो भर दिया है अब आपकी बारी है। धन्यवाद नीलिमा कुमार
काश कि इस आकंठ प्रेम में डूबी प्रकृति और आकाश सा विशाल हृदय संपूर्ण मानव आत्मसात कर पाता। अतिशयोक्ति ही सही पर मासूम सा प्यारा ख्वाब ही तो हमें जीने की प्रेरणा देता है। नीलिमा कुमार
" बारिशें " ?? यूँ बरसात का आना किसी त्योहार से कम कहाँ होता था। माटी की सौंधी खुशबू और दरख़्तों के हरे पत्ते गरजते चमकते बादलों और हवाओं के झोंके से बरसात की आहट मिलती थी। मौसम की पहली बारिश स्कूल की छुट्टी से मालूम देती थी। सर्दी लग जाएगी, मीठी डाँट के बाद भी आँगन के भरे पानी में नहाने से मालूम देती थी। पतले, मोटे रेंग कर घर में घुसते अनचाहे मेहमान उन मासूम केचुओं से मालूम देती थी। इनसे बचते-बचाते, डर कर या डरा कर चीखते हुए फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने से मालूम देती थी। झमाझम गिरते पानी में कभी छतरी के साथ तो कभी बेवजह भीग जाने पर मालूम देती थी। गीली छतरी के कोरों से टपकती बूंदों से सूखे फर्श पर बन आई जलधारों संग मालूम देती थी। सुबह माँ के उठाने पर " रेनी डे है " बोल मुँह तकिए में छुपा लेने से मालूम देती थी। किवाड़ों को खटखटाती वो प्यारी सी बारिश पकौड़ी और गर्म चाय से मालूम देती थी। और तब भी मालूम देती थी जब माँ की आवाज कानों संग खेलती थी - " बच्चे तो सो रहे हैं पकौड़ियाँ हम ही खतम कर देते हैं। " और बहाने से आँखें मूंद सोते हुए हम एक पल में खटिया से नीचे कूद जाते थे। हाँ ! बरसात का आना एक त्योहार ही तो है। नीलिमा कुमार ( मौलिक एवं स्वरचित )
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