Navneet Kumar Singh

Navneet Kumar Singh

@navneetkumarsingh8053


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Hey, I am on Matrubharti!

हे प्रभु तेरे न्याय में होगी देर मगर अंधेर नहीं।
मानो तूने न्याय की देवी आंखों से आंधी कर दी।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#न्याय

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नारी व्यथा
बचपन से वृद्धावस्था तक, जीवन संघर्ष हमारा है।
हंसना भी मना रोना भी मना, क्यों ऐसा हाल हमारा है।।
आने जाने की पाबंदी, वाणी पे विराम तुम्हारा है।
नारी होना अभिशाप है क्या? झूठा सब प्यार दिखावा है।।
इस मन की व्यथा को कह न सके, हर इच्छाओं को मारा है।
पुरुषों की केवल अनुमति पर, ये सारा जीवन वारा है।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#केवल

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एक है उद्देश्य केवल ,
वो शिखर पर है पहुंचता।
दो नाव पर जो पैर रखे,
वो लहरों मै है बहता ।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#केवल

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कांत! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।
मन पटल की ' अंतरिम ' ,
तुम वेदनायें समझ पाओ।।
कांत! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।
चांद मै देखूं जो नभ में ,
वो तुम्हें भी देखता,तुम भी निहारो
इस तरह ही पास आओ
जो हवाएं छूके तुमको है गुजरती,
उनको मेरा घर बताओ
कांत ! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।।
कभी भी उपहार की ना लालसा की
आपकी सेवा में अर्पण ज़िन्दगी की
आप ही सर्वस्व मेरे लौट आओ
कांत! मेरे शीघ्र आओ,
अब नहीं मुझको सताओ।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#अंतरिम

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मातृभूमि के लिए जिन्होंने,
अपने प्राण गंवाए।
पागल बनी घूमती देखो,
उनकी अब विधवाएं।।
कत्ल हुआ मां की ममता का,
ज्यों पिता ने पैर गंवाए।
बिना भुजा का भाई लगता,
बहनों के नैन पथराए।।
शत शत नमन उन्हें है मेरा,
जो सिरमौर कहाय।
मातृभूमि के लिए जिन्होंने,
अपने प्राण गंवाए।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#पागल

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जब दीप जलते हैं,प्रकाशित सबको करते हैं।
जरा सोंचो, क्या सबको वो अपना परिचय देते हैं।।
फूलों की जब सुगंधें हवा के संग मिलके चलती हैं।
जरा सोंचो, क्या सबको वो अपना परिचय देती हैं।।
बनाओ यूं ही तुम खुद को, सुगंधों रोशनी जैसा।
देंगे लोग परिचय खुद , तुम्हें देना नहीं होगा।।
प्रकृति के सब घटक यूंही,सीखते रहते कुछ ना कुछ ।
तुम्हें जीवन सजाने का नया उद्देश्य देते हैं।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#परिचय

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देखते तुम्हे ही एक झलक,
मन को ऐसा आभास हुआ।
परिचय कुछ पूर्व जन्म का है,
ऐसा मुझको अहसास मिला।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#परिचय

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अंग्रेज़ सभ्यता के शिकार,
सब नगर गांव के लोग बने ।
हाय हैलो के चक्कर मा,
परनाम दंडवत भूलि गए।।
ओछे कपड़ा बिटिया पहिरय,
ब्वॉय कट केश कार्य रहीं ।
लरिका अब केश बढ़ाई रहे,
मोबाइल मा चैट चलाई रहे ।।
मा बाप की बात सुने नाही,
पढ़नो लीखनो सब भूलि गए।
अंग्रेज़ सभ्यता के शिकार ,
सब नगर गांव के लोग बने।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#शिकार

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इस वक्त का शिकार हर व्यक्ति बनेगा
जो कर्मवीर है वो सदा आगे बढ़ेगा ।
तुम सोचते हो वक्त को काटेंगे बैठकर,
पर तेरी ज़िन्दगी के वही पल वो खा गया ।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '
#शिकार

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ऐ दिल हार बैठे अजब शख्सियत से,
न नाम पूंछा न दौलत ही पूंछी।
न सोचा न समझा,
ये दिल की अदा थी।।

- नवनीत कुमार सिंह ' नवीन '

#दिल

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