बहीखाता - 40

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बहीखाता आत्मकथा : देविन्दर कौर अनुवाद : सुभाष नीरव 40 शैल्टर होम कुछ दिनों से मुझे लग ही रहा था कि अब मुझे इस घर से जाना ही है, पर यूँ इतनी जल्दी जाऊँगी, यह नहीं सोचा था। मैं सोचती थी कि जब अधिक ही बर्दाश्त से बाहर हुआ तो कहीं किराये का कमरा ढूँढ़ लूँगी और ज़िन्दगी दोबारा नए सिरे से शुरू कर लूँगी। कहाँ कभी मैं अपने फ्लैट की मालिक थी और कहाँ घर से निकाली हुई औरत। 15 बरस विवाह को हो चुके हैं और मैं खानाबदोशों की भाँति कहाँ कहाँ भटक रही थी। अब तो नूर