गीता के रतन ( कविता संग्रह )

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1• कविता----"मोह-जाल" आज अचानक चली आई फिर, याद तुम्हारी द्वार प्रिये। बिखर पड़ी अश्रुजल धारा, गई क्यूँ हिम्मत हार प्रिये।। सब भाव जोड़ मन चितवन के, करके सब संचित अनुराग। कभी चित्रकार कभी शिल्पकार बन, रही जोड़ती तार प्रिये ।। सुंदर सुरभित तरूशिखा से, सजी ये बंदनवार मनोहर। अनुकम्पा सजीले फूलों ने कर, बनाए हैं मधुबन हार प्रिये ।। रही नयन सेज पर स्वप्न पिरोतीं, आशाएँ सुंदर संसार। आई ह्रदय कुंज से बाहर झांकने, सुन साँसों की झनकार प्रिये।। इन मृग नयनों की प्यास देखकर, निर्जन भी झूठे नीर बहाए। दो प्यासे नयना चिर तृष्णा