महारथी कर्णःभाग-१-(विषय प्रवेश एवं गुरु परशुराम द्वारा कर्ण का अभिशापित होना।)

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कौन कर्ण सा दानवीर है,इस अम्बर,धरा, रसातल में।सदा पार्थ से श्रेष्ठ रहा,वह धनुष-बाण या भुजबल में।।मधुसूदन सारथी न होते, माया अपनी ना दिखलाते।तो पार्थ जैसेे योद्धा भी,रण उससे जीत नहीं पाते।।अमर कर्ण की दानवीरता,याचक को इच्छित दान दिया।कवच और कुंडल देकर भी, था देेवराज का मान किया।।जब करी याचना कुन्ती ने, आदेश मातु का मान लिया।पार्थ छोड़कर शेेष पांडव, था सबको जीवन दान दिया।।सूर्यदेव के सुत को जग में, था सूतपूत का नाम मिला।उसको ठुकराया माता ने, गुरू से नहीं वरदान मिला।।लाख विघ्न आये थे पथ में, सबको ही उसने पार किया।महाकाल भी आड़े आया, तो प्रबल प्रचंड प्रहार किया।।सूतपुत्र