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दरमियाना - Novels
by Subhash Akhil
in
Hindi Moral Stories
किन्नर विमर्श की पहली कहानी पर आधारित उपन्यास
दरमियाना भाग - १ तारा और रेशमा की संगत मैं उसे तब से जानता हूं, जब मैंने उसे पहली बार देखा था। उसके दोनों हाथों की हथेलियों के मध्य भाग, बहुत ही कलात्मक ढंग से टकरा रहे थे, यद्यपि ढोलक की थाप और फटे हुए स्वरों में, उसकी तालियों की कहीं कोई संगत नहीं थी। किन्तु हां! अन्य कर्कश स्वरों में, उसका स्वर सबसे अधिक तीखा और एकरस था -- गीत के आरोह-अवरोह की प्रति़बद्धता से दूर--शास्त्रीय गायन की वर्जनाओं से मुक्त--फटे हुए स्वर और बिगड़ी हुई धुनों में, एक फिल्मी गीत ! 'गीत' अब ठीक-ठीक याद नही है। मैंने
दरमियाना भाग - १ तारा और रेशमा की संगत मैं उसे तब से जानता हूं, जब मैंने उसे पहली बार देखा था। उसके दोनों हाथों की हथेलियों के मध्य भाग, बहुत ही कलात्मक ढंग से टकरा रहे थे, यद्यपि ...Read Moreकी थाप और फटे हुए स्वरों में, उसकी तालियों की कहीं कोई संगत नहीं थी। किन्तु हां! अन्य कर्कश स्वरों में, उसका स्वर सबसे अधिक तीखा और एकरस था -- गीत के आरोह-अवरोह की प्रति़बद्धता से दूर--शास्त्रीय गायन की वर्जनाओं से मुक्त--फटे हुए स्वर और बिगड़ी हुई धुनों में, एक फिल्मी गीत ! 'गीत' अब ठीक-ठीक याद नही है। मैंने
दरमियाना भाग - २ रास्ते-भर वे चुहलबाजी करते रहे। एक-दूसरे को छेड़ते, गाते, टल्लियां-तालियां खड़खाते, वे मस्ती में चल रहे थे। उनके साथ का मर्दनुमा दरमियाना, ढोलक पर थाप देकर अलाप उठा रहा था। मैं भी साथ-साथ चलते हुए ...Read Moreअनुभव कर रहा था कि जब बस्ती का कोई भी व्यक्ति उनके समीप नहीं आ पाता, तब मैं कितना सहज रूप से तारा का हाथ पकड़ कर चल सकता हूं। अन्य लोग, जो मुझे हास्य या घृणा की दृष्टि से देख रहे थे, उस समय ईष्यालु नज़र आये थे। तारा ने फिर मेरे कंधे पर हाथ रखा और पूछ लिया,
दरमियाना भाग - ३ कहने को कहा जा सकता है कि विष भी वहीं वास करता है, जहां विश्वास होता है... और जब धीरे-धीरे सारा विश्वास ही विषाक्त हो जाता है, तब जैसे अचानक बहुत परिचित-से चेहरे भी नीले ...Read Moreलगते हैं...गंदला जाते हैं। बहुत देर के बाद हम जान पाते हैं कि परिचय था ही कहाँ ? क्योंकि पहचानना एक बात है, जानना दूसरी बात! कोई महीने-भर बाद साथी लोगों का मूड़ बना कि शराब पी जाए, मगर पैसे किसी के भी पास नहीं थे। बहुत सोचने पर भी जब कुछ नहीं सूझा, तो एक साथी ने सुझाया कि
दरमियाना भाग - ४ धीरे-धीरे क्षण बीते और बीते हुए क्षण, महीनों से होते हुए... वर्षो में बदल गए। हमारा मकान भी बदल गया था। पिता जी की तरक्की के बाद एक दूसरी कालोनी में बड़ा घर मिल गया ...Read Moreमैं भी बहुत बदल गया था। उस दौरान यह भी तो नहीं सोच पाया कि तारा अब कैसी होगी ! होगी भी, या... या उसकी हथेलियाँ थक कर चुप हो चुकी होंगी ? उसका लाड़-प्यार या गालियाँ, बनारसी पत्तों की थैली या तालियाँ—इतने बर्षों में मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था। अचानक एक दिन जब मैं अपनी पत्नी के
दरमियाना भाग - ५ कई बार ऐसा तो होता है कि हमारे पूर्व में गढ़े गए प्रतिमान अचानक बदल जाते हैं । कोई छवि या धारणा भरभरा कर बिखर जाती है ।... मगर ऐसा बहुत कम होता है कि ...Read Moreकिसी के बारे में कोई प्रतिमान तय ही नहीं कर पाते ।... विशेषकर ‘इनके’ बारे में । कारण यह भी हो सकता है कि ये खुद ही एक रहस्य का आवरण अपने गिर्द बनाये रखते हैं । शायद इसलिए कि ये हमारे जैसे नहीं होते.... और शायद इसलिए भी कि हम उन्हें समझ ही नहीं पाएंगे, वे ऐसा ही मान