Is Dasht me ek shahar tha book and story is written by Amitabh Mishra in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Is Dasht me ek shahar tha is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
इस दश्त में एक शहर था - Novels
by Amitabh Mishra
in
Hindi Moral Stories
इस दश्त में एक शहर था अमिताभ मिश्र स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी परिघटना संयुक्त परिवारों का टूटना और एकल परिवार का बनना है गजानन माधव मुक्तिबोध प्रस्तावना या भूमिका (इतिहास और भूगोल) यह जो कुछ आपाधापी, रेलमपेल, धूल धुंआ, मारामारी आज इस सड़क पर दिखाई देती है कि इस पार से उस पार जाने में कम से कम दस मिनट और अधिक से अधिक पूरा दिन लग सकता है, पहले ऐसा नहीं था। तब यह इलाका शहर के बाहर था, शहर से बहुत दूर था यह इलाका। आज से तकरीबन तीस चालीस साल पहले यह इलाका काफी शांत था।
इस दश्त में एक शहर था अमिताभ मिश्र स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी परिघटना संयुक्त परिवारों का टूटना और एकल परिवार का बनना है गजानन माधव मुक्तिबोध प्रस्तावना या भूमिका (इतिहास और भूगोल) यह जो कुछ आपाधापी, रेलमपेल, धूल ...Read Moreमारामारी आज इस सड़क पर दिखाई देती है कि इस पार से उस पार जाने में कम से कम दस मिनट और अधिक से अधिक पूरा दिन लग सकता है, पहले ऐसा नहीं था। तब यह इलाका शहर के बाहर था, शहर से बहुत दूर था यह इलाका। आज से तकरीबन तीस चालीस साल पहले यह इलाका काफी शांत था।
इस दश्त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (2) मैं जो ये किस्सा शुरू कर रहा हूं वो एक छत के नीचे रहने वाले परिवार से खिचता हुआ जाता है पूरे कसबे तक जो अब महानगर की शकल ले ...Read Moreहै। फिलहाल बच्चा महानगर है इसलिए कुछ निशान हैं यहां इंसानियत के अपनेपन के भूले भटके लोग हैं यहां जो तब भी पागल थे और अब तो एकदम ही निकले हुए इंतिहाई पागल हैं । ये बात है एक पंडित खानदान की, जो बसा है एक कस्बे में जिसकी रगों में खुशबू का व्यापार दौड़ रहा है। चूंकि घर पंडितों का
इस दश्त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (3) हुआ दरअसल यूं था कि आजादी के आन्दोलन के दौरान गांधी के संघर्ष के तरीके से जो सहमत नहीं थे और जो आजादी के आंदोलन में हिस्सा भी नहीं ले ...Read Moreथे ऐसे यथास्थितिवादी उच्च वर्ग के हिन्दूओं ने अपने आप को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के करीब पाया, जिनके लिए अंग्रेजों या उपनिवेशवादी साम्राज्यवाद से ज्यादा बड़े दुश्मन विधर्मी थे खासतौर पर मुसलमान जो देश में ही रह रहे पीढि्यों से उन्हीं के आस पडौ्स में । और वे धर्म की रक्षा के लिए हिन्दू महासभा से जुड़े और जुड़े 1925 में
इस दश्त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (4) इधर गजपति बाबू ने काम के लिए हाथ पैर मारना शुरू किए तो कुछ ट्यूशन कुछ दुकानों के हिसाब किताब का काम मिला तो घर का कुछ ठीकठाक होने लगा। ...Read Moreअम्मा से सामने के मकानों और खोलियों के किराए का पूछा तो पता चला कि वे सबसे छोटे यानि त्रिलोकीनंदन यानि तिक्कू वसूल रहे हैं और मजे कर रहे हैं। उन्हे कुछ इसलिए नहीं बोला जा सकता था क्योंकि वे अम्मा के लड़ैते पूत थे और बाप को कुछ गिनते ही नहीं थे। तिक्कू डॅाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे
इस दश्त में एक शहर था अमिताभ मिश्र (5) अब जो दूसरी पत्नी की दो लड़कियां थीं वे बहुत ज़हीन, सुन्दर, पढ़ने लिखने में अव्वल और नौकरियां भी अच्छी मिली और उस दौर में जब लगभग अनिवार्य था विवाह ...Read Moreके लिए तब उन दोनों ने विवाह नहीं किया और अनुराग और अभिलाष भैया के दो बेटे और दो बेटियां हैं। इन चारों को पढ़ाया। हालांकि अनुराग और अभिलाष भैया से इन लोगों का अबोला सरीखा रहा। इन दोनों बहन की स्कूल की पढ़ाई दिल्ली में हुई और कालेज की पढ़ाई इंदौर में और विनायक भैया की देखभाल में लगीं रहीं