DHRNA book and story is written by Deepak Bundela AryMoulik in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. DHRNA is also popular in Classic Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
धरना - Novels
by Deepak Bundela AryMoulik
in
Hindi Classic Stories
शाम हों चली थी, सूरज वसुंधरा को कल आने का वादा करके जा चूका था.. शहर की सड़कों पर दिन की अपेक्षा शाम कुछ ज्यादा ही रंगीन दिखाई देने लगी थी... कहते हैं किसी के जीवन में जिंदगी भी दिन और रात के क्षितिज की तरह होती हैं जो कभी उसे मिल नहीं सकतीइस जहां में ऐसे कई लोग हैं... जो हमेशा जिंदगी की तलाश में हर शाम मरते हैं और हर सुबह नई आश के साथ जागते हैं.... .......शाम रात की और धीरे धीरे रफ्तार पकड़ रही थी, और उसी की रफ्तार में पार्टी का शुरूर भी बढ़ता जा रहा था
शाम हों चली थी, सूरज वसुंधरा को कल आने का वादा करके जा चूका था.. शहर की सड़कों पर दिन की अपेक्षा शाम कुछ ज्यादा ही रंगीन दिखाई देने लगी थी... कहते हैं किसी के जीवन में जिंदगी भी ...Read Moreऔर रात के क्षितिज की तरह होती हैं जो कभी उसे मिल नहीं सकतीइस जहां में ऐसे कई लोग हैं... जो हमेशा जिंदगी की तलाश में हर शाम मरते हैं और हर सुबह नई आश के साथ जागते हैं.... .......शाम रात की और धीरे धीरे रफ्तार पकड़ रही थी, और उसी की रफ्तार में पार्टी का शुरूर भी बढ़ता जा रहा था
धरना -2किचिन में आते हुए प्रिया और निखिल को देखते हुए सुपरवाइज़र ने फ़ौरन उनके पास आकर पूछा क्या हुआ सर...? आपके यहां कोई सूरज नाम का आदमी... हा हा... सर हैं ना.... क्यों कोई बदतमीज़ी की उसने नहीं ...Read Moreहम उसके बारे में जानकारी लेने आये थे... किस बारे में मेम...? असल में उसे हम जानते हैं... काफ़ी सालो बाद इस तरह मिला तो... ओह... आप रुकिए मैं अभी उसे बुलवाए देता हूं... और उसने अपने मोबाइल से फोन मिलाया और अपने कान पर लगा कर दूसरी तरफ से उत्तर का इंतज़ार करने लगा था.... अ... हा.... पवन... वो तुम्हारा दोस्त सूरज कहा हैं.... अच्छा..... कब.... ओह.... ठीक
निखिल कुछ देर वही खड़ा रहता हैं.... कुछ सोचता हैं... जनता चॉल की बस्ती को निहारता हैं... और फिर वहां से निकल पड़ता हैं... ----------------लेकिन अब जो हुआ प्रिया, उसे भूल जाना ही बेहतर हैं तुम वेबजह उसकी ...Read Moreमें मत पड़ो.... ओह वसुंधरा... तुम्हारी सोच और नज़रिया में दोनों को समझ गयी मैं ... लेकिन ये मत भूलो कि उसके हम पर कितने एहसान हैं... वो सख्स जो कभी हम लोगों के लिए हर वक़्त हर हाल में खड़ा रहता था आज वो गुमनामी की जिंदगी को जी रहा हैं... तो क्या हमारा फर्ज़ कुछ नहीं बनता... वो वक़्त कुछ और था प्रिया ऐसे
लग भग 8 माह बाद प्रिया... प्रिया... प्रिया दौड़ती हुई सी आती हैं... आ रही हूं बाबा आ रही हूं... निखिल प्रिया को नज़र भर के देखता हैं... कोई कमी रह गयी क्या...? हा वही देख रहा था तुम्हारे ...Read Moreश्रंगार में कुछ छूट तो नहीं गया.. हां ठीक से देख कर बताना वरना लोग यही कहेंगे देखो निखिल मल्होत्रा को बेचारी श्रंगार में कितना कोम्प्रोमाईज़ करके रहती हैं... आपको ही लोग कंजूस समझेंगे... इतना सुन कर निखिल हाथ जोड़ लेता हैं...जी गलती हो गई धर्म पत्नी जी... आप परिपूर्ण श्रंगार की देवी लग रही हैं... आपके श्रंगार में कोई कमी नहीं रह गई हैं... क्या हम अब
दो दिन के लम्बे सफर के बाद निखिल, प्रिया और पवन शासकीय स्कूल पहुंचे थे.... आप लोग जिस शख्स की जानकारी लेने आये हैं वो शख्स आज से तीन साल पहले तक तो इस स्कूल में अतिथि शिक्षक था... ...Read Moreकलेक्टर के नये रूल के हिसाब से अतिथि शक्षकों को मना कर दिया गया था... उसके बाद से पता नहीं... इससे ज्यादा मैं आपको और कोई जानकारी नहीं दे सकती हूं.... प्रिंसिपल ने थोड़ा टालते हुए से अंदाज़ में कहा था... मेम आप सूरज के एड्रेस के बारे में तो बता ही सकती हैं... प्रिया ने थोड़ा खीजते हुए अंदाज़ में पूछा था... नहीं