Bhagwan ki Bhool book and story is written by Pradeep Shrivastava in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Bhagwan ki Bhool is also popular in Moral Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
भगवान की भूल - Novels
by Pradeep Shrivastava
in
Hindi Moral Stories
भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-1 मां ने बताया था कि जब मैं गर्भ में तीन माह की थी तभी पापा की करीब पांच वर्ष पुरानी नौकरी चली गई थी। वे एक सरकारी विभाग में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी थे। लखनऊ में किराए का एक कमरा लेकर रहते थे। घर में मां-बाप, भाई-बहन सभी थे लेकिन उन्होंने सभी से रिश्ते खत्म कर लिए थे। ससुराल से भी। मां ने इसके पीछे जो कारण बताया था, देखा जाए तो उसका कोई मतलब ही नहीं था। बिल्कुल निराधार था। मां अंतिम सांस तक यही मानती रही कि उसकी अतिशय सुंदरता उसकी सारी
भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-1 मां ने बताया था कि जब मैं गर्भ में तीन माह की थी तभी पापा की करीब पांच वर्ष पुरानी नौकरी चली गई थी। वे एक सरकारी विभाग में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी ...Read Moreलखनऊ में किराए का एक कमरा लेकर रहते थे। घर में मां-बाप, भाई-बहन सभी थे लेकिन उन्होंने सभी से रिश्ते खत्म कर लिए थे। ससुराल से भी। मां ने इसके पीछे जो कारण बताया था, देखा जाए तो उसका कोई मतलब ही नहीं था। बिल्कुल निराधार था। मां अंतिम सांस तक यही मानती रही कि उसकी अतिशय सुंदरता उसकी सारी
भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-2 यह बात मां ने न जाने कितनी बार बताई कि लखनऊ आए दस दिन भी न बीता था कि एक रात वह उनके सौंदर्य में खोए हुए बोले कि ‘जब तक नौकरी स्थाई ...Read Moreहोगी तब तक बच्चे नहीं पैदा करेंगे।’ उस समय तो वह कुछ नहीं बोलीं लेकिन जब एक दिन बाद ही वह उन्हें फेमिली प्लानिंग के लिए एक हॉस्पिटल लेकर जाने लगे तब उन्होंने मना किया। ‘देखो इतनी जल्दबाजी मत करो। लोग कहते हैं कि शुरू में ही यह सब करने से फिर आगे कई बार ऐसा भी होता है कि
भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-3 धीरे-धीरे मां अपने इस मकसद में कामयाब रहीं। मैं भी मां की बात समझ गई और ऐसा कुछ होने पर मां को ही बताती और उन्हीं के आंचल में मुंह छिपाकर रो लेती। ...Read Moreबार मां समझाती तो कभी मुझे सीने से चिपका कर खुद ही फफ़क कर रो पड़ती थीं। मां की कठिनाई यहीं तक नहीं थी। तनाव बर्दाश्त न कर पाने के चलते पापा ने शराब को अपना लिया। पहले कभी-कभी फिर रोज पीना उनकी आदत बन गई। जब मैं जान समझ पाई कि वह शराब जैसी कोई चीज पीते हैं तब
भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-4 जैसे कॉलेज के दिनों की ही बातें लूं। अपनी मित्र गीता यादव को मैं तब फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करती थी। क्योंकि वह लंबी-चौड़ी पहलवान सी थी। मुझे बच्चों कि तरह गोद ...Read Moreउठा लेती थी। सारे मिलकर खिलखिला कर हंसते थे। इतना ही नहीं तब मैं उसे मन ही मन खूब गाली देती थी जब वह मेरे अंगों से खिलवाड़ कर बैठती थी। मगर एक बात उस में यह भी थी कि और किसी को वह मुझे एक सेकेंड भी परेशान नहीं करने देती थी। मेरे लिए सबसे भिड़ जाती थी ।
भगवान की भूल प्रदीप श्रीवास्तव भाग-5 चित्रा आंटी की ऑयल पेंटिंग अभी इतनी बनी ही नहीं है कि मुझे कोई पहचान सके। मिनिषा वाली मांग लूंगी। फाड़ दूंगी उसे। लेकिन अगले दिन मेरा निर्णय धरा का धरा रह गया। ...Read Moreदिन मां-बेटी ने मुझे समझा-बुझाकर फिर स्टूल के सहारे नग्न खड़ा कर दिया। और मैंने भी यह तय कर लिया कि यह काम पूरा करूंगी। चाहे जितना बड़ा पहाड़ टूट पड़े। मिनिषा ने उस दिन दूसरे एंगिल से मेरा दूसरा स्केच बनाना शुरू कर दिया था। जिस दिन ऑयल पेंटिंग पूरी हुई उस दिन उसे देखकर मैं चित्रा आंटी की