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विद्रोहिणी - Novels
by Brijmohan sharma
in
Hindi Moral Stories
(ऐक अकेली अबला, बेसहारा, बेबस ऐवम गरीब महिला का पाखंउी, जातिवादि, घोर साम्प्रदायिक संकीर्णतावाद से ग्रस्त समाज से संघर्ष की रोमाचक दास्तान । गरीबों के दुःख दर्द को अनसुना करने वाले समाज द्वारा एवं अपनी सुविधा के लिए बनाऐ गए भगवान के कभी भूलकर भी किसी गरीब कि सहायता न करने पर प्रश्न चिन्ह I गांवों की प्रष्ठभूमि में खेले जाने वाले नाटक, ह्रदयस्पर्शी कविताएं तथा 70 वर्ष पूर्व इ्रदौर के दुर्लभ द्रष्य I एक पागल की मनःस्थिति, बच्चो के मनोरंजक खेल, १९५० के दशक में तब के शहर में पहलवानों का वर्चस्व, हिन्दू मुस्लिम दंगे, जाति निष्कासन के घोर अपमान को झेलते समाज के सबसे गरीब तबकों की आवाज जिन्हें हिन्दू समाज के रुढिवादियो ने अन्य धर्म अपनाने को मजबूर कर दिया I रामायण व् वेदांत के सर्वश्रेष्ठ प्रसंग आदि)
(ऐक अकेली अबला, बेसहारा, बेबस ऐवम गरीब महिला का पाखंउी, जातिवादि, घोर साम्प्रदायिक संकीर्णतावाद से ग्रस्त समाज से संघर्ष की रोमाचक दास्तान । गरीबों के दुःख दर्द को अनसुना करने वाले समाज द्वारा एवं अपनी सुविधा के लिए बनाऐ ...Read Moreभगवान के कभी भूलकर भी किसी गरीब कि सहायता न करने पर प्रश्न चिन्ह I गांवों की प्रष्ठभूमि में खेले जाने वाले नाटक, ह्रदयस्पर्शी कविताएं तथा 70 वर्ष पूर्व इ्रदौर के दुर्लभ द्रष्य I एक पागल की मनःस्थिति, बच्चो के मनोरंजक खेल, १९५० के दशक में तब के शहर में पहलवानों का वर्चस्व, हिन्दू मुस्लिम दंगे, जाति निष्कासन के घोर अपमान को झेलते समाज के सबसे गरीब तबकों की आवाज जिन्हें हिन्दू समाज के रुढिवादियो ने अन्य धर्म अपनाने को मजबूर कर दिया I रामायण व् वेदांत के सर्वश्रेष्ठ प्रसंग आदि)
श्यामा अपने बच्चों के साथ अपने पति के घर लौट गई। उसका पति किशन महाराष्ट्र के एक छोटे गांव में रहता था। वह ब्रम्हाजी के मंदिर में पुजारी था।
किशन औसत उंचाई का, दुबला पतला व गोरा लगभग 20 वर्षीय ...Read Moreथा। वह धोती कुर्ता पहनता था व कहीं विशेष कार्य से बाहर जाने पर सिर पर काली टोपी पहनता था।
वह बडे क्रोधी स्वभाव का था व श्यामा पर अपना रौब गांठता रहता था । वह वक्त बेवक्त उसे पीट देता था। मंदिर में प्रायः साधूगण आकर रूका करते थे। किशन मंदिर से होने वाली सारी आय साधुओं की खातिरदारी, तम्बाखू व नशा सेवन में उड़ा देता था।
1 - माता का प्रयास
2 - भजन संध्या
3 - नाटक
4 - मत्स्यावतार
1 - कच्छपावतार
2 - वामनावतार
3 - नरसिंहावतार
नाटक शुरू हुए एक सप्ताह से अधिक समय हो चुका था । श्यामा के लिए निकल भागने का समय आगया था।
आधी रात का समय था। चारों ओर श्याह अंधेरा था। कौशल्या व श्यामा की आंखों में नींद नहीं थी। ...Read Moreउस स्थान से पलायन की पूरी तैयारी कर रखी थी। पहले कौशल्या उठी। उसने चुपके से बिना आवाज किए बाहर आँगन में झांका। किशन गहरी नींद में सो रहा था। उसने धीरे से सामान की गठरी उठाई व एक बच्चे को पीठ पर लादकर नंगे पैर मंदिर के बाहर निकल आई। उसके पीछे पीछे दूसरे बच्चे को पीठ पर लादे श्यामा भी बाहर आ गई। बाहर घुप्प अंधेरा था।