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वो अजनबी

कहानी

एक दिन सड़क पर यूं ही वो मिल गया । साधारण सी वेशभूषा में छोटी सी मूंछ , बिखरे बाल और पैन्ट शर्ट में उम्र का अंदाज लगा सकना सम्भव नही था । मै बस मंदिर से निकला ही था कि वो मेरे साथ-साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगा। मै जब सड़क के दूसरे किनारे पर गया तो वो भी आ गया । मुझे कुछ अजीब सा लगने लगा ;मैने कदम कुछ तेज किए तो वो भी तेज चलने लगा । मुझ से रहा नही गया मैने उससे पूछ ही लिया ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’ उसने कहा ‘‘ कुछ भी तो नही ।’’ मै बोला ‘‘ तो तुम मेरे साथ क्यो चलना चाहते हो ? ’’ उसने मेरी ओर देख कर कहा ‘‘ ऐसा तो तुम चाहते हो । ’’ मुझे लगा बड़ा अजीब आदमी है; खुद साथ चल रहा है और कहता है कि मै चाहता हुॅं । मैने उसे घूर कर देखा और कहा ‘‘ मै चाहता हॅूं ,इससे तुम्हारा क्या मतलब है ।’’वो वैसे ही चलता रहा और बोला ‘‘ तुम ही तो अभी कह रहे थे कि हमेशा साथ रहना ।’’मुझे लगा जरुर ही पागल होगा ‘‘ मैने कब कहा ?’’ अनायास ही खीझ भरे शब्द निकल गए । वो मेरी ओर देखे बगैर ही बोला ‘‘अभी तो तुम आए थे और अपनी जिंदगी का दुखड़ा रो कर कह रहे थे कि हमेशा साथ रहना । ’’

मुझे लगा मेरी सांसे फूलने लगी है। मै उसकी इन उलजलूल बातों से बाहर निकलना चाहता था । मै एकदम से रुक गया ; मेरे रुकते ही वो भी रुक कर खड़ा हो गया। मै लगभग चीखते हुए बोला ‘‘ तुम हो कौन ...,क्या चाहते हो और मैने तुम से कब साथ चलने के लिए कहा ? ’’ वो शांत था धीरे से बोला ‘‘परेशान मत हो, मै भगवान हूॅं ;मै तुम से कुछ भी नही चाहता जो कुछ चाहते हो तुम ही मुझ से चाहते हो।’’ मुझे उसकी बात पर हंसी आ गई मै हंसते हुए ही बोला ‘‘ क्या .... क्या.... क्या कहा तुमने ,.... तुम भगवान हो...... वो भी तुम .....’’ मुझे लगा मेरा वाक्य खत्म नही हुआ, मन में तो आंधी चल रही थी । उसने कोई प्रतिक्रया नहीं दी । मुझे लगा आज मेरा किसी धूर्त, ठग या पागल से वास्ता पड़ा है । मै फिर तेज कदमों से चलने लगा ; वो मेरे साथ पहले की ही तरह चल रहा था । मैने कहा ‘‘देखो तुम मुझे परेशान मत करो। तुम मुझे अकेला क्यों नही छोड़ देते ?’’ उस पर मेरी बातों का कोई असर नहीं हुआ मै बड़बड़ाने सा लगा ‘‘ तुम ... तुम भगवान कैसे हो सकते हो ?.... क्या ऐसे होते है भगवान ? ..... तुम ने अपनी शक्ल कभी आईने में देखी है ?’’ उस पर अपनी बातों कि कोई प्रतिक्रया न देख कर मै और बड़बड़ाने लगा ‘‘ऐ भाई मै तुम से बोल रहा हूॅ् .... भगवान बनने की कोशिश मत करो । वैसे ही भगवानों के कारण लोग लड़ रहे है । तुम्हारे जैसा जीता जागता भगवान ..... ना जाने क्या होगा इस दुनिया का ? भगवान ऐसे फटेहाल सड़कों पर नही घूमा करते । ’’ वो मुस्कुरा दिया, उसकी मुस्कुराहट तीखे खंज़र की तरह दिल में उतर गई । मैने उसका हाथ पकड़ा और बोला ‘‘ऐ रुक.....’’ मेरे रुकते ही वो भी रुक गया । जेब से कुछ नोट निकाल कर उसके हाथ में रख दिए उसने नोटों मुट्ठी में भींच लिया मै बोला ‘‘ अब खुश ... चलो अब अपना रास्ता नापो ... ’’ वो अब तक मेरी खीझ का मजा ले रहा था, धीरे से बोला ‘‘मै सच में भगवान हॅूं । ’’ मुझे अब कोफ्त होने लगी थी ; अपने स्वर को नरम रखने का प्रयास करता हुआ बोला ‘‘ कौन भगवान ...... भगवान यादव , भगवान सिंह या....या... भगवान तोमर ऐसा ही कुछ नाम होगा तुम्हारा ; तो...तो तुम क्या भगवान हो गए ? अरे भाई भगवान की फोटो भी देखी है कभी ? ...भगवान दुनिया चलाते है, सुख-दुख में साथ होते है ; तुम तो ऐसा कुछ कर नही सकते फिर तुम कैसे भगवान ? ’’ उसकी शांति मुझे परेशान कर रही थी, मै उसे बोलने के लिए ललकारने लगा ‘‘बोलो....बोलो... ओ भगवान कुछ तो बोलो । ’’उसने धीरे से कहना प्रारम्भ किया ‘‘ हॉं मै भगवान ही हूॅं ; वही भगवान जिसके सामने तुम लोग रोते हो, मॉंगते हो और न देने पर बुरा भला कहते हो । तुमने मुझे पूजा घरों में बिठा दिया है । अब मै तुम्हारे सामने हूॅं तो तुम मेरे भगवान होने का सबूत मांगोगे । ’’ मै उक्ता गया था ‘‘ बस ...बस ये भाषणबाजी किसी और को सुनाना’’ उसे मै चुप कराने लगा ।

वो अब बोले जा रहा था ‘‘ मै क्या सबूत दूं अपने भगवान होने का ? तुम सब को मैने ही बनाया ;मै तुम्हारे बीच ही रहता रहा। फिर तुम में से किसी ने मुझे कल्पना बना दिया । अब तुम्हारे लिए वह कल्पना ही भगवान है ,जो तुमने गढ़ी है । एक प्रकार से तुम्हारा भगवान तुम्हारा ही मानसपुत्र है । ’’ मेरी आस्था दरकने सी लगी ,मैने उससे कहा ‘‘ ये भी अच्छी रही ..अपने भगवान होने को साबित करना छोड़ कर तुम तो हमारे भगवान को ही बदलने चले हो। उसने मुझे ध्यान से देखा और गंभीर स्वर में बोला ‘‘मै जानता हूॅं तुम तो क्या दुनिया का आखरी आदमी भी मुझे भगवान नही मानेगा क्योकि मै स्वयम् उसमें ही रहता हूॅं ; वो मुझे और अपने आप को दो अलग - अलग समझता है । बस वो मुझे बाहर खोजता रहता है। खैर.... मै इस गली मे मुड रहा हूॅं लेकिन तुम सोचना कि अगर मै सही में भगवान होता तो तुम क्यों करते? ’’ वो गली में चला गया और मै पसोपेश मे पड़ा सोचता रहा ।

आलोक मिश्रा मनमौज