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मेैरी कॉम - एक अनकही कहानी

#GreatIndianStories

माँ के आँचल के छाँव मे पलते हैं सपनें

अमीर-गरीब के भेद-भाव से परे हर बच्चों के

आँखों मे सुरज के रोशनी जैसी चमक लेकर,

दिल की धड़कन बनकर सिने में धड़कते हैं सपनें।

1 मार्च, सन् 1983, के दिन पश्चिमी भारत के मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के काङथेइ गांव में जन्मी भारत की बेटी मैरी कॉम उर्फ मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम का भी कुछ यही हाल था । मैरी कॉम भारत की वह बेटी है जिसने इस समाज के सोच को बदला जिसके मुताबिक लड़कीयाँ लड़कों की तरह मुक्केबाज़ी नहीं कर सकती।

वैसे तो यह बात जगजाहीऱ है की औरतें शक्ति की श्रोत होती हैं। स्वयं भगवान शिव की शक्ति उनकी पत्नी पार्वती है। पर अपने अहंकार से वशीभुत होकर यह समाज़ औऱतों को मर्द से कम आंकता है। पर ऐसी कई महिलाएँ है जिन्होनें समाज़ के इन अनर्गल मिथ्या एंव छोटी सोच को गलत साबीत करती है, इनमे से एक हैं “मैरी कॉम”।

मैरी कॉम , यह वह शक्सीयत है जिन्होनें अपनी संपुर्ण जीवन काल में कई तरह की चुनोतीयों का सामना कर अपने तय लक्ष्य पर पहुँची। मैरी कॉम का पूरा नाम मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम है। मैरी कॉम किसी परिचय की मोहताज़ नहीं है। महिला मुक्केबाजी की दुनिया में मैरी कॉम भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा चूकिं हैं। उन्होंने अपनी सच्ची लगन और कठिन परिश्रम से यह साबित कर दिया कि प्रतिभा का अमीरी और गरीबी से कोई संबंध नहीं होता और अगर आप के अन्दर कुछ करने का अटूट जज्बा है तथा आप अपने कार्य के प्रति निष्ठावान है तो सफलता हर हाल में आपके कदम चूमती है।

उनके पिता एक गरीब किसान थे। उनकी कक्षा 6 तक की प्रारंभिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल और कक्षा 8 तक की शिक्षा सेंट जेविएर स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने कक्षा 9 और 10 की पढाई के लिए इम्फाल के आदिमजाति हाई स्कूल में दाखिला लिया लेकिन वह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास नहीं कर सकीं। वह चार भाई बहनों में से सबसे बड़ी थी और उसे अपने परिवार के लिए उन्हें छोटी उम्र से ही कड़ी मेहनत करनी पड़ी। वह न केवल अध्ययन करने के लिए स्कूल गई थी, बल्कि अपने छोटे भाई-बहनों का बहुत ख्याल रखती थी और अपने माता-पिता के साथ खेतों में काम करने में उनकी मदद भी किया करती थी। मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम अथवा मैरी कॉम न केवल एक दमदार मुक्केबाज़ हैं, उतनी ही अच्छी बेटी, बहन, माँ अथवा कुशल गृहिणी भी हैं। एक औरत के हर एक रूप यानी- शक्ति, ममता, अर्धागंनी एवं स्त्रीत्व के साथ पूरा-पूरा न्याय किया है।

मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम का नाम सुनकर सबसे पहले दिल और दिमाग में एक निर्भीक और साहसी महिला की तस्वीर उभर आती है. लोग कहते है की सपने वैसे ही देखने चाहिए जिसे पूरा करने की क्षमता हो, साधन हो, हैसियत हो। पर सपने क्षमता, साधन, हैसियत का मोहताज़ नहीं होता। सपने अगर किसी चीज़ का मोहताज़ है तो वह है दृढ़ संक्लप, आत्मविश्वाश, कड़ी मेहनत और लगन। मैरी कॉम ने इन बातों को सही साबीत किया है।

उनके मन में बॉक्सिंग का आकर्षण 1999 में, उस समय उत्पन्न हुआ जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पो‌र्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग के दांव-पेंच आजमाते देखा। " मैरी कॉम वह नजारा देख कर स्तब्ध थी। उस वक्त वह नजारा देख कर मैरी कॉम का दिल और दिमाग चिख-चिख यह कहने लगा कि जब ये लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती है तो वे क्यों नहीं?"[ मैरी कॉम की ट्रेनिंग तीन कोचों द्वारा हुई थी, जिनके नाम कुछ इस प्रकार है- इबोम्चा, नरजीत एंव किशन । आई.ओ. के ऑफीसर खोइबी सलाम ने मैरी को पूरी क्षमता से बाक्सिंग करने के लक्ष्य तक पहुंचाया। मैरी ने जल्दी ही अपने खेल की बारिकियां सीख लीं और अपनी आशा और अपने कोचों की उम्मीद से बढ़कर कठिन से कठिन प्रशिक्षण प्राप्त करके निपुणता हासिल कर ली।

. बचपन से ही मैरी कॉम को एथलेटिक्स में दिलचस्पी थी और सन् 2000 में डिंको सिंह ने उन्हें बॉक्सर बनने के लिए प्रेरित किया. एक किसान की बेटी के लिए बॉक्सिंग रिंग में अपना करियर बनाना कोई आसान काम नहीं था. मैरी कॉम ने जब बॉक्सिंग शुरू की थी, तब उन्हें अपने घर से कोई समर्थन नहीं मिला. घर वाले मैरी कॉम के बॉक्सिंग के खिलाफ थे, लेकिन उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने उनके घर वालों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया

मैरी कॉम 'सुपरमॉम' के नाम से भी जानी जाती है. 35 वर्षीय मैरीकॉम, तीन बच्चों की माँ हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बॉक्सिंग करना नहीं छोड़ा। उनकी फिटनेस देखकर कोई नहीं कह सकता कि वो तीन बच्चों की माँ हैं। 35 साल की उम्र में भी बॉक्सिंग रिंग के अंदर उनकी फिटनेस और तेजी देखने योग्य होती है। विरोधी पर मैरी कॉम पंच की बरसात करती हैं और बहुत ही तेजी से खुद को उनके प्रहारों से बचाती भी हैं और यही वजह है उनके ज्यादातर मुकाबले एकतरफा होते हैं। पांच बार की वर्ल्ड चैंपियन, लंदन ओलिंपिक गेम्स में ब्रॉन्ज मेडलिस्ट और एशियन गेम्स में पहला गोल्ड जीतने वाली मैरीकॉम अपनी फिटनेस के लिए कड़ी मेहनत करती हैं।

दो वर्ष के अध्ययन प्रोत्साहन अवकाश के बाद उन्होंने वापसी करके लगातार चौथी बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीता। उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का खिताब भी दिया

मैरी कॉम ने सन् 2001 में प्रथम बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। ठीक उसी समय कॉम की जीवन में प्यार ने दस्तख़ दी औनलर कॉम के रुप में। औनलर कॉम पहली बार 2001 में दिल्ली मैरी कॉम से मिला, तब वह कॉम कम्युनिटी कलीसिया के लिए काम कर रहा था। उन दोनो ने विभिन्न खेल बैठकों के लिए एक साथ यात्रा की। उसके शांत धैर्य के साथ मिलकर उसकी सौम्य पूर्वाग्रह ने उसे मोहित कर दिया, उसके दिल को पिघला दिया। मैरी कॉम को कई चीजों के लिए सहायता की आवश्यकता थी - बुकिंग से, वीज़ा से दस्तावेज़ीकरण के काम तक। औनलर इन सब चीज़ों मे उसकी मदद करता था, और भी कई अन्य तरीकों से भी। बाद में, उसने सोचना शुरू कर दिया की आखीर वह उस लड़की के लिए ऐसा क्यों कर रहा है?' केवल तब ही उसे एहसास हुआ कि उसने भीतर गहराई से उसने उसकी देखभाल की है। इस सवाल ने उन्हें लंबे समय तक परेशान किया, और आखिरकार उन्होंने स्वीकार किया कि इसका केवल एक ही जवाब हो सकता है की वह मैरी से प्यार करता है। वह हमेशा उसे और मैरी के बीच यह अजीब संबंध महसूस हुआ करता था जो हमेशा उसे अदृश्य बल की तरह खींचता था। यह इस हद तक बढ़ गया कि आखिरकार वर्ष 2005 में, ऑनलर और मैरी ने शादी कर ली। यह उसकी सुंदरता या उसकी उपलब्धियां नहीं है जिसने उसे आकर्षित किया है। यह हमेशा उसकी स्वभाव रही है जिसने उसे आकर्षित किया है। यह अहसास होने के बाद उसे घुटनों पर उतरने में उसे लंबा समय नहीं लगा और उसने उससे शादी करने के लिए कहा। वह मैरी का दोस्त, दार्शनिक, गाइड और सलाहकार बन गया। कॉम ने लंदन ओलंपिक में परिणाम प्राप्त किए, जिससे उन्हें उच्च वजन श्रेणी में लड़ने के बावजूद कांस्य पदक मिला लम्बे और मजबूत विरोधियों के खिलाफ।

, 2005 में, जब तक वे शादी कर चुके थे, वह दो बार विश्व चैंपियन बन चूकिं थीं। तीन और उसके रास्ते आना था। आज, जब वह एक असली आइकन बन जाती है और पूरा देश उनपर गर्व करता है, तो ऑनलर केवल गर्व करता है कि वह उसके पास खड़ा था। उसने उसे उत्कृष्टता, सफलता और आखिरकार की ओर धकेला।

2005 में, अपनी शादी के तुरंत बाद, ओनलर के पिता को उनके गांव में पुरुषों के एक समूह ने गोली मार दी थी। घटना से हिलते हुए, मैरी ने लगभग अपने दस्ताने फेंकने का फैसला किया। लेकिन ऑनलर ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। वह चुपचाप रोया, अपनी पत्नी के हाथ पकड़ा, और अपनी कल्याण और सफलता के लिए प्रार्थना की। ऑनलर में अत्यधिक सहनशील है और वह बहुत कठिन समय से गुजरा। उन्होंने बच्चों की बीमारियों (उनके छोटे बेटे की हृदय शल्य चिकित्सा सहित) की तरह विभिन्न चुनौतियों, मानसिक, शारीरिक और घरेलू को अपने आप से रोक दिया। कॉम टूर्नामेंट पर थी और उसे पता था कि उसे अपनी पूरी कोशिश करनी पड़ी, क्योंकि वह भी कई बाधाओं के खिलाफ एकमात्र लड़ाई कर रहा था, "आज, मैरी अकेले नहीं जीती है। ऑनलर और उन्होंने एक साथ महिमा हासिल की है, और देश भर के बच्चों के लिए प्ररेणाश्रोत हैं।

ओलनर के शब्दों मे कहें तो वह एक प्यारी पत्नी है और अब एक अच्छी मां है, धीरे-धीरे झुकाव, और मैरी के लिए उसके भीतर गहराई से उसकी देखभाल करना उसके सच्चे प्यार को प्रकट करता है। मैरी अपने पूरे जीवन में एक दाता रही है, और दिल से बहुत अच्छी है। मुझे उससे प्यार करना बहुत आसान लगता है।

हमारे पितृसत्तात्मक दुनिया में, जहां ऐसी कहानियां असामान्य हैं, ऑनलर और मैरी की प्रेम कहानी एक परी कथा की तरह लग सकती है; लेकिन पूर्वोत्तर में, पुरुष महिला समीकरण लापता नहीं है। मणिपुर में, महिलाओं और पुरुषों के बराबर व्यवहार किया जाता है, वहां कोई भी काम नहीं जो आदमी कर सकता है और एक महिला नहीं कर सकती।

यह लिंग समानता कड़ी मेहनत से आती है कि परिवार में प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के हर दिन रखना पड़ता है। खेतों में काम करना और घरेलू काम करना मैरी के लिए नियमित है। तो, अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज अपने जुड़वां बच्चों के लिए खाना बनाती है, उनकी देखभाल करती है ठीक वैसे ही जैसे वह अपने प्रतिद्वंद्वी को पेंच की झुकाव के साथ ऑफ-बैलेंस फेंकती है।

कॉम और ओलनर गीटार के तारों को छेड़ते और एक दूसरे से गाते है, ऐसा नही है कि वह एक बहूत अच्छी गायका हैं, लेकिन हाँ जो भी सुनना चाहता है, उसके लिए उन्हे गाना पसंद है। अलनोर परिवार के रूप में एक साथ बिताए गए समय के मूल्य को भलीभाँति जानता है। वह यह भी जानता है कि उसकी पत्नी को अधिक महिमा के लिए बनाया गया है, और जब वह अपने विरोधियों एवं विश्व के खिलाफ मुक्केबाज़ी करती हैं तो दुसरें ही पल खुशी से घर और बच्चों का ख्याल भी रखती हैं।

वे उस मूल्य को समझते हैं जो उनके साथी अपने जीवन में रखते हैं और जो समय वे एक साथ बिताते हैं वह मूल्यवान है। वे हर पल का अधिकतर हिस्सा यादगार बनाना चाहते हैं जो वे एक साथ बिताते हैं। मैरी एक खिलाड़ी होने के नाते अपने बच्चों को अपना अधिक समय देने में असमर्थ है, इसलिए उनके गैरहाज़री मे, तो ऑनलर बच्चों की देखभाल करता है।

यह साबित करता है कि मैरी और ऑनलर को बराबर नहीं बनाया गया था, लेकिन वे एक-दूसरे को पूरा करने के लिए बने थे। इस प्रकार रिश्ते का समीकरण संतुलित रहता है।

मणिपुर के 29 वर्षीय मुक्केबाज, पांच वर्ष की उम्र के जुड़वां बेटों की मां ओनलर के लिए सभी प्रशंसा और अत्यन्त प्रशंसा के योग्य है, । "जब उसे पता होता है कि कॉम और कॉम के करियर के लिए कुछ महत्वपूर्ण है, तो वह उसे पूरा करने के लिए किसी भी हद तक चला जाता है, भले ही वह कितने भी कठिन समय से क्यूं ना गुज़र रहा हो।

अब तक वह 10 राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है। उन्होंनें भारत के लिए कई पदक जीतें उनमें से कुछ इस प्रकार है- वे 2001 में एआईबीए व‌र्ल्ड वुमन्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक से सम्मानित हुई त्तपश्चात 2002 में वे एआईबीए व‌र्ल्ड वुमन्स सीनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक से सम्मानित हुई। इतना ही नही बॉक्सिंग में देश का नाम रोशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित भी किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जुलाई 29, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए चुनीं गयीं। आज, मैरी अकेले नहीं जीती है। ऑनलर और उन्होंने एक साथ महिमा हासिल की है, और देश भर के बच्चों के लिए प्ररेणाश्रोत हैं।

मैरी कॉम के लिए कुछ पंक्तियाँ-

नारी तू है शक्तिरुपा, नारी तू है दुर्गारुपा,

ममतामयी तू, क्षमतामयी तू

तूझसे है इस धरती की जीवन धारा

वक्त की पुकार है, नारी तू महान है।

बेटी भी तू, पत्नी भी तू, तू जननी भी है

शक्ति का श्रोत है तू, करुणा का सागर है।

ठान लें तो पूरी दुनिया को मुट्ठी में कर ले,

नारी तू इतनी शक्तिशाली है।