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मेरी जिंदगी का सफर - 1 - मेरी जिंदगी-जन्म से ग्रेजुएट बनने तक का सफर

13 जनवरी रुद्रपुर के एक हॉस्पिटल में मेने इस दुनिया को पहली बार देखा।बहुत यादगार था वो पल लेकिन बहुत दुखदायी भी।मेरी हालत बहुत दयनीय थी।डाक्टर्स ने मुझे एमरजेंसी वार्ड में सिफत किया। वहां 21 दिन काच के बॉक्स में बंद रहने के बाद मुझे घर भेज गया। वहां पहुंच कर मेने पहली बार दुनिया को जाना। कितने सारे लोग वहां मेरा इंतेज़ार कर रहे थे। धीरे धीरे समय बदन्त गया।मेरी बीमारी भी बढ़ती गयी और घर वालो का प्यार और नफरत भी ।डाक्टर्स बदले लेकिन मेरी बिमारी सही नई हुई।मेरे जन्म के कुछ दिन बाद ही मेरी माँ की मृत्यु हो गयी।इसलिए आजतक माँ का प्यार नही मिला।में अपने घर व नही गया था अभी तक।इसी बीच मेरे मामा की शादी हुई।और मुसीबत घर आई।कुछ महीने तो सही बीत गए।लेकिन अब मामी ने अपना असली रंग दिखाना सुरु किया । कॉलोनी में किसी के साथ भी झगड़ा कर लेती ओर मुझसे तो जैसे उनकी जन्मो की दुश्मनी हो।मुझे बहुत बुरी तरह से मारती ।दीवार से लड़ा देती । बहुत बुरी जिंदगी बन गई थी मेरी।फिर प्राइवेट हॉस्पिटल की जगह मेरा ईलाज सरकारी हॉस्पिटल में होना शुरू हुआ।वहां भी कोई फायदा नई।में एक न्यूरो पेशेंट जो था।फिर मेरा दाखिल पंतनगर के बालनिलियम स्कूल में हुआ।तबतक मेरे मामा का एक बेटा व हो गया था। में वहां के जी की पढ़ाई की।फिर डॉक्टरों के कहने पर मेरा दाखिला राजकीय प्राथमिक विद्यालय पंतनगर में कराया गया।वहाँ में 5वी तक पढ़ा।और हमेशा प्रथम आता रहा। ऐसी भीच मेरी बीमारी और बढ़ गयी अक्सर हॉस्पिटल में एडमिट रहता।जैसे वो मेरा घर बन गया हो। इस दौरान मेरी मामी ने व मेरे साथ कई जुल्म किये । झा में रहता था वह एक लड़की व रहती थी जो मेरी बहुत अच्छी दोस्त बन गयी थी इन कुछ सालों में।बहुत कुछ किया था उसने मेरे लिए। बहुत अच्छी थी वो नाम था सपना।स्कूल में भी मेरा एक दोस्त था नाम था सतेंद्र । फिर मेरा दाखिला पंतनगर इंटर कॉलेज में हुआ ।इस 1 साल के इंटर कॉलेज में में ओर सतेन्द्र भाई जैसे बन गए थे ।और दोस्ती इतनी गहरी की हम एक ही थाली में खाना भी खा लेते थे।फिर आयी परीक्षा और में हॉस्पिटल में।परिणाम स्वरूप मैं फैल हो गया। फिर मुझे गांव भेज दिया गया वहां मेरा दाखिला राजधारी सेंट्रल अकादमी में कराया गया व मेरी दवा गोरखपुर से चलाई गई।फिर 4 साल मेरी जिंदगी आराम से गुजरी।इन 4 सालो में मैं स्कूल का टॉपर बन गया।और अंग्रेजी में तो जैसे मुझे महारथ हासिल हो गयी थी । सारे बच्चे मुझे प्रोफेसर साहब के के बुलाते थे।फिर मेरी किस्मत दुबारा से खराब।नाना सेवानिवृत्त हुए और पूरा परिवार गांव आया।और मेरी बीमारी फिर शुरु। साथ ही मामी भी वापस आ गयी।फिर मेरा ईलाज पी जी आई लखनऊ से होने लगा ऐसी दौरान मेने मेट्रिक पास किया और इंटर में गणित सेदाख़िला लिया । इस बीच मैं 15 या 20 दिन क्लास करने गया हूँगा।गोरखपुर आने के बाद मेरे 2 खास दोस्त बने।गौरव ओर ओम कृष्ण। आगे की कहानी अगले भाग में। कृपया फॉलो करें