माँ: एक गाथा - भाग - 2 (3) 89 178 1 ये माँ पे लिखा गया काव्य का दूसरा भाग है . पहले भाग में माँ की आत्मा का वर्णन स्वर्ग लोक के ईह लोक तक , फिर गर्भधारण , तरुणी , नव विवाहिता से माँ बनने तक लिया गया है . प्रस्तुत है इस खण्ड काव्य का दूसरा भाग. इस भाग में माँ के आत्मा की यात्रा का वर्णन माँ बनने के पश्चात विभिन्न पहलुओं को दिखाते हुए किया गया है . इस भाग में ये दर्शाया गया है कि कैसे माँ अपने नन्हे शिशु को खुश रखने के लिए कैसे कैसे अनेक प्रयत्न करती है . जुगनू:माँ:एक गाथा:भाग:6 यदा कदा भूखी रह जाती,पर बच्चे की क्षुधा बुझाती ,पीड़ा हो पर है मुस्काती ,नहीं कभी बताती है,धरती पे माँ कहलाती है। शिशु मोर को जब भी मचले,दो हाथों से जुगनू पकड़े,थाली में पानी भर भर के,चाँद सजा कर लाती है,धरती पे माँ कहलाती है। तारों की बारात सजाती,बंदर मामा दूल्हे हाथी,मेंढ़क कौए संगी साथी,बातों में बात बनाती है,धरती पे माँ कहलाती है। छोले:माँ:एक गाथा:भाग:7 छोले की कभी हो फरमाइस ,कभी रसगुल्ले की हो ख्वाहिश,दाल कचौड़ी झट पट बनता,कभी नहीं अगुताती है,धरती पे माँ कहलाती है। दूध पीने को ना कहे बच्चा,दिखलाए तब गुस्सा सच्चा,यदा कदा बालक को फिर ये,झूठा हीं धमकाती है,धरती पे माँ कहलाती है। बेटा जब भी हाथ फैलाए ,डर के माँ को जोर पुकारे ,माता सब कुछ छोड़ छाड़ के ,पलक झपकते आती है ,धरती पे माँ कहलाती है। चँदा:माँ:एक गाथा:भाग:8 बन्दर मामा पहन पजामा , ठुमक के गाये चंदा मामा ,कैसे कैसे गीत सुनाए ,बालक को बहलाती है धरती पे माँ कहलाती है। रोज सबेरे वो उठ जाती ,ईश्वर को वो शीश नवाती,आशीषों की झोली से,बेटे को सदा बचाती है,धरती पे माँ कहलाती है। कभी धुल में खेले बाबू ,धमकाए ले जाए साधू ,जाने कैसे बात बता के , बाबू को समझाती है , धरती पे माँ कहलाती है। चिपकिलियाँ:माँ:एक गाथा:भाग:9 जब ठंडक पड़ती है जग में ,तीक्ष्ण वायु दौड़े रग रग में ,कभी रजाई तोसक लाकर ,तन मन में प्राण जगाती है ,धरती पे माँ कहलाती है। छिपकिलियों से कैसे भागे,चूहों से रातों को जागे,जाने सारी राज की बातें,पर दुनिया से छिपाती है,धरती पे माँ कहलाती है। जरा देर भी हो जाने पर ,बेटे के घर ना आने पे ,तुलसी मैया पे नित झुककर,आशा दीप जगाती है ,धरती पे माँ कहलाती है। रसगुल्ले:माँ:एक गाथा:भाग:10 रसगुल्ले की बात बता के ,कभी समोसे दिखा दिखा के ,क , ख , ग , घ खूब सुनाके ,बेटे को पढवाती है ,धरती पे माँ कहलाती है। प्रेम प्यार से बात बताए , बात नहीं पर समझ वो पाए ,डरती डरती मज़बूरी में ,बापू को बुलवाती है ,धरती पे माँ कहलाती है। बच्चा लाड़ प्यार से बिगड़े,दादा के मुछों को पकड़े,सबकी नालिश सुनती रहती,कभी नहीं पतियाती है,धरती पे माँ कहलाती है। *** ‹ Previous Chapter माँ:एक गाथा - भाग - 1 › Next Chapter माँ : एक गाथा - भाग - 3 Download Our App Rate & Review Send Review nihi honey 3 month ago Satender_tiwari_brokenwords 3 month ago Rakesh Thakkar 3 month ago More Interesting Options Short Stories Spiritual Stories Novel Episodes Motivational Stories Classic Stories Children Stories Humour stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Social Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Ajay Amitabh Suman Follow Shared You May Also Like माँ:एक गाथा - भाग - 1 by Ajay Amitabh Suman माँ : एक गाथा - भाग - 3 by Ajay Amitabh Suman