Sharabi Haiwan books and stories free download online pdf in Hindi

शराबी हैवान

मैं बार बार सोच रहा हूँ कि इस घटना के बारे में लिखूँ या नही ,,,,पर ये घटना मेरे पडोस की है ,यदि नही लिखता हूँ तो इस दौर में जो हो रहा है , उसकी अनदेखी करना होगा । और ये समय और समाज को सच से दूर कर उसके साथ अन्याय करना होगा । इस तरह की घटनाएं समय के सीने पर खुदी होनी चाहिए ताकि परिवार,पति, पत्नी, रिश्तेदार की समझ और जानकारी सबको हो सके ,वे जान सके कि मनुष्य की सभ्यता और शिक्षा की लाख चर्चा हो पर नशे की गिरफ्त में आने के बाद वो आज भी किसी जानवर से कम नही ,,।
तो , आइए एक लाचार और पीड़िता की मार्मिक और दुःखद कहानी शुरू करता हूँ ,,,

घटना 6 माह पहले की है ,रात के 8 बजे एक 56 वर्षीय महिला मेरे घर आयी । बिना चप्पलों के , फ़टे कपड़ो में, भूखी प्यासी,,, क्योकि उसके नशेड़ी और सनकी मर्द ने शराब पीकर उसकी पिटाई की थी और घर से निकाल दिया था । मेरी पत्नी सुधा ने उसे घर मे पनाह दी,उसे भोजन कराया ,अपने कपडे दिए उसकी दवा की व्यवस्था की ।

ये महिला एक सिक्ख परिवार की है। उसका पति सरदार ,जो अब नशे की गिरफ्त में है और आये दिन अपनी पत्नी को जानवरों की तरह पीट कर रात को घर से निकाल देता है । ये रोज रोज की घटना थी, किन्तु पास पड़ोस की समझाइश के बाद मामला घर मे निपटा लेने की नीयत से भाभी उसका अत्याचार अब तक सहती रही,पर जब सहन से बाहर हो गया तो उसने घर छोड़ने का निर्णय ले लिया ।

उस रात को मैं और मेरी पत्नी ने इन सारी बातों से मित्र राजेश को अवगत कराया, उन्होंने तत्काल अपने मैनेजर को निर्देश देकर चितवन व्रिद्धाश्रम में जो ऐसे बेसहारों का सहारा है, वहां उसे पनाह दी। सभी कानूनी कार्यवाही के बाद उन्हें चितवन आश्रम में बुजुर्गों के बीच रख लिया गया । वे वहां की सदस्य बन गयीं। उन्हें कुछ तकलीफ थी, आश्रम की ओर से बालाजी हॉस्पिटल टिकरापारा में उनका इलाज करवाया गया । डॉक्टरों ने बताया कि उनकी पसलियां एक दो स्थानों पर क्रेक थी ये बेरहमी से पीटने का अंजाम था ,पर बेहतर देखभाल और मानसिक सुकून से इन 6 महीनों में उनका भी मन लग गया, जिससे उनकी सेहत में सुधार हुआ।

इस बीच उनका मर्द उन्हें ढूढंता रहा, जब उसे पता चला कि वो आश्रम में है, तो वो किसी किसी मध्यस्थ को भेजकर उसे अनेक तरह से फुसला कर घर लाने के लिए मनाने लगा , पर वो नही गयी । इस सारी घटना की जानकारी उनके सगे सम्बन्धियो को जो रायपुर में रहते है ,कुछ नागपुर में और कुछ मुंबई में सबको थी, पर सब उससे ओपचारिक हाल चाल पूछ कर हाथ झड़ा के तमाशबीन बने रहे किसी ने उसकी सहायता के लिए पहल नही की ।

6 महीने बाद उनकी इकलौती बेटी घर आई जो किसी अन्य शहर में ब्याही गई है ,तो उससे मिलने का वास्ता ओर आगे से ऐसा कुछ नही करने का विश्वास दिलाकर उसे घर आने को कहा गया । अपने घर से बेघर वो दुखियारी एक उम्मीद लेकर फिर अपने घर आ गयी । इस बीच आश्रम वालो ने उसे समझाया पर उसे लगा कि वो इतने लंबे समय तक बाहर थी तो शायद उसका पति सुधर गया होगा ,पर ये उसकी बहुत बड़ी भूल साबित हुई । उसे उस घर मे आये मात्र 3 दिन हुए और फिर वही हैवानियत का नंगा नाच शुरू हो गया और वो फिर घर से बेघर हो गयी । रोते बिलखते वो एक उम्मीद से फिर मेरे घर पर आयी । सुधा ने उसे पनाह दी ।पर उसने हम सबसे कहा कि अब वो अपनी नंद, बहन या भतीजो के पास जाएगी जो शायद उसकी मदद कर सकते हैं ,और इस आशा से उसने अपने रिश्तेदारों के दरवाजे खटखटाये ,पर कोरी सहानुभूति के अलावा उसे सबके दरवाजे बंद मिले ,,, वो वहां से मायूस लौट आयी ओर अब वो सड़क पर थी। न इधर की न उधर की ,,,हर दिन की यातना पूर्ण जिंदगी ने उसे ब्लड प्रेशर और शुगर का मरीज बना दिया है । वो उस दिन लगभग 12 से 13 घण्टे एक चौराहे पर निराश बैठी रही कि अब आत्महत्या कर लेनी चाहिए (आत्म हत्या के ख्याल के बारे में जैसा उसने हम सबको बताया) फिर लगा कि ऐसा करना ठीक नही होगा और वो एक उम्मीद लेकर मित्र के एम के घर आई, जहाँ मेरी पत्नी सुधा ,भाभी सुमन और मित्र के एम अग्रवाल ने उसे सहारा दिया । उन्होंने आगे बढ़कर उसकी सहायता करने की ठानी और उसे ससम्मान एक संस्थान में भिजवा दिया । अभी वो सुरक्षित और स्वस्थ है, पर उसने हम सबसे कहा है कि अब उसके जीते जी उसकी जानकारी न उसके पति को न उसके किसी रिश्तेदार को दी जाय,,,,,,