Jin ki Mohbbat - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

जिन की मोहब्बत... - 8

ज़ीनत ने उसे तसल्ली देते हुए कहा तू रोना बंद कर हो सकता है वो कहीं ओर किसी काम से चला गया हो।
सब ठीक हो जाएगा तू ज़्यादा ना सोच एक।दो दिन में आजाएगा ।
चल अब आंसू पहुच ओर मुस्कुरा देे अब सबा को समझा के ज़ीनत ने तसल्ली देे दी लेकिन वो खुद फिक्र में डूब गई ।
रफीक जी गए तो कहा गए बिना बोले? अब आगे।


भाग 8

ज़ीनत सोचती चली जा रही थी तभी उसे कुछ मेहसूस हुआ, जैसे उसके साथ कोई चल रहा हो।
जीनत वहीं खड़ी हो गई ओर डरते हुए अपने आसपास देखने लगी।
उसे दिखाई कोई नहीं दिया , लेकिन उसे अभी ऐसा मेहसूस हो रहा था जैसे कोई साथ हो ।
ओर वो बहुत डरते डरते घर तक पहुंचीl घर जाते ही अपने रूम को का गेट बंद कर लिया, ओर सहमी हुई बैठ गई ।
उसकी फुप्पी नूरी आईl देखा की मेन गेट खुला है , ओर कोई दिखाई नहीं दे रहा l अंदर अाकर ज़ीनत को आवाज़ लगाई ।
ज़ीनत कहाँ हो..? गेट खुला छोड़ के कहां गई.. ?"
ज़ीनत के कमरे का दरवाजा बंद देखा नूरी ने l दरवाज़ा को ठोकते हुए कहा l
" ज़ीनत दरवाज़ा खोलो क्या हुआ है ? "
तभी ज़ीनत ने दरवाज़ा खोला ओर नूरी से आकर लिपट कर रोने लगी।
"नूरी ने पूछा क्या हुआ..? क्यू रो रही हो बोलो.. सब ठीक है ?"
ज़ीनत रोते हुए अंदर इशारा कर रही थी l नूरी कुछ समझ नहीं पाई l
कहाl
" क्या है ? रूम में बताओ कोन है वहां ?"
ज़ीनत रोती रही , इशारा करती थी वो कुछ भी बोल नहीं पा रही थी।
नूरी उसकी हालत देख घबरा गई l उसे कुछ और सूझा नहीं..l
नूरी आयेतल कुर्सी पढ़कर दम किए जा रही थी।
ज़ीनत जैसे अपने होश में ही नहीं बस रोना,ओर रूम में इशारा करना जैसे उसे कुछ दिख रहा हो ।
लेकिन क्या देखा ज़ीनत ने रूम में वो.? किसी को बताने की हालत में नहीं।
नूरी ने उसके हाथ पर दुआए गंजुल अर्श का ताबीज़ बांध दिया l ओर दम का पानी मुंह पे डाला l पिलाया भी ।
ज़ीनत नूरी को छोड़ नहीं रही थी l बहुत डरी हुई थी l ये बात नूरी कुछ हद तक समझ गई थी कि ज़ीनत किसी चीज को देख डर गई l लेकिन क्या देखा उसने ये समझना बहुत मुश्किल था।
सगाई की तैयारियों में लगे ज़ीनत के अब्बू को ये सब के बारें में कुछ खबर नहीं थी नूरी ने बात यही छूपा ली ।
वो ज़ीनत के पास ही बैठी हुई थी l तभी ज़ीनत के अब्बू आए l ज़ीनत को ऐसे देख परेशान हुआ
पूछा l
" नूरी क्या हुआ ? तबियत ठीक नहीं क्या ज़ीनत की ?
नूरी ने बात बनाते हुए कहा !
" भाई जान कुछ नहीं l बस कल के बारे में सोच सोच के रो रही है । लड़की है ना..l दिल भर आया उसका l आपसे दूर जो जाना है उसे l आपके बिना आज तक नहीं रही l अब पराई होने जा रही है , बस यही बात है आप फिक्र ना करो में समझा लुगी ।
अब ज़ीनत अपने रूम में जाने से भी कतरा रही थीl उसे वहीं मंज़र दिख रहा था जिस देख वो बहुत डरी हुई थी ।
रात वो अपने रूम में किसी भी कीमत पर जाने को तैयार नहीं थी।
नूरी को अपने साथ ही रोक लिया था वो अकेली नहीं रह सकती ज़ीनत ने कहा था !
नूरी उसके पास ही रह गई l ओर उसे समझाने लगी ज़ीनत यहां कोई नहीं है तू डर मत ।
अपने घर में कोई आया था क्या जिसे तूने देखा ..? ज़ीनत बताओ मुझे ..? कोन था जो तुझे परेशान कर रहा है?"
ज़ीनत कुछ भी नहीं बताना चाहती थी वो तो उस बात को याद भी नहीं रखना चाहती थी कि उसने देखा क्या ?"

क्रमश: