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हिमाद्रि - 11




                      हिमाद्रि(11)


हिमाद्रि छुट्टियों में घर आया था। उसे शहर के जीवन की आदत थी। गांव में उसे कम अच्छा लगता था। लेकिन उर्मिला देवी उससे शिकायत करती थीं कि वह उसे देखने को तरस जाती हैं। अतः वह केवल अपनी माँ का मन रखने के लिए गांव आता था।
उर्मिला देवी जवान होते अपने बेटे को देख कर फूली नहीं समाती थीं। अब वह और अधिक आकर्षक व खूबसूरत हो गया था। जब वह गांव की गलियों से गुजरता था तो जवान लड़कियां उसे चोरी छिपे निहारती थीं। लेकिन हिमाद्रि की निगाहें उनके शरीर को बड़ी बारीकी से देखती थीं। उसकी नज़र चंपा नाम की एक किशोरी पर थी।
चंपा के पिता डाकिए का काम करते थे। हिमाद्रि अक्सर शहर से उसके लिए कोई चिठ्ठी तो नहीं आई पूँछने के बहाने चंपा के घर पहुँच जाता था। जबकी वह जानता था कि उसकी कोई चिठ्ठी नहीं आने वाली है। चंपा के पिता सुदर्शन कहते कि बाबू परेशान क्यों होते हो। अगर कोई चिठ्ठी आएगी तो मैं घर पहुँचा जाऊँगा। यही तो मेरा काम है। पर फिर भी हिमाद्रि उनके घर पहुँच जाता। 
चंपा भी हिमाद्रि के आकर्षक रूप के जाल में फंस चुकी थी। हलांकि कुछ ही महीनों के बाद उसका विवाह होने वाला था। उसने हिमाद्रि से कहा कि वह रोज़ रोज़ घर ना आया करे। वह स्वयं दोपहर को उससे मिलने आया करेगी। वादे के मुताबिक चंपा रोज़ ही उससे पहाड़ी झरने पर मिलने जाती थी। 
दोनों का ही आकर्षण दैहिक था। पर चंपा यह जानती थी कि यदि कोई ऊँच नीच हो गई तो उसे ही महंगी पड़ेगी। हिमाद्रि लड़का है। फिर वह शहर चला जाएगा। कुछ हो गया तो उसे कोई कुछ नहीं कहेगा। सारी मुसीबत उस पर आ जाएगी। इसलिए जब वह मिलने जाती थी तो पूरी तरह सावधान रहती थी।
लेकिन जब भूखे के आगे भरी थाली हो तो उपवास रखना कठिन हो जाता है। चंपा के लिए हिमाद्रि की रोज़ाना कोशिशों को टालना कठिन हो रहा था। वह रोज़ सोंचती थी कि उससे मिलने नहीं जाएगी। पर जैसे ही दोपहर होती हिमाद्रि के पास जाने को बावली हो उठती। चंपा की माँ नहीं थी। पिता डाक बांटने निकल जाते। कोई रोकने वाला भी नहीं था। 
हिमाद्रि जल्द से जल्द चंपा के शरीर का भोग करने को उतावला हो रहा था। लेकिन वह बल का प्रयोग करने की बजाय अपने आकर्षण के बल पर उसे राज़ी करना चाहता था। 
एक दिन जब चंपा उससे मिलने पहुँची तो वह तय करके बैठा था कि आज उसे अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मना कर ही चैन लेगा। चंपा भी रोज़ रोज़ खुद को रोकते हुए थक चुकी थी। हर रात वह हिमाद्रि के संग मिलन के सपने ही देखती थी। हिमाद्रि ने जब पहल की तो चंपा ने कोई विरोध नहीं किया। 
हिमाद्रि का पहली बार किसी स्त्री के साथ संसर्ग हुआ था। इससे पहले वह बस कल्पनाओं में ही यह सब करता था। लेकिन उसके अंदर धधकती काम की ज्वाला और भड़क उठी। एक बार सीमा लांघ लेने के बाद चंपा का डर और संकोच दोनों ही खत्म हो चुके थे। अब रोज़ ही दोनों अपने शरीर की प्यास बुझाते थे। यह सिलसिला हिमाद्रि के शहर जाने तक चलता रहा। 
हिमाद्रि शहर चला गया। उसके कुछ ही दिनों के बाद गांव में सनसनी फैल गई। डाकिया सुदर्शन की बेटी फांसी लगा कर मर गई। 

हिमाद्रि अब शहर में रह कर डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा था। जब भी वह छुट्टियों में गांव आता तो नए शिकार की तलाश में जुट जाता था। शहर में रहते हुए वह इस मामले में बहुत घाघ हो गया था। अब वह औरतों को फंसाने के कई पैंतरे सीख चुका था। गांव आकर वह उन्हें वहाँ की औरतों पर अपनाता था। हिमाद्रि की शिकार औरतों में अब शादीशुदा, कुंवारी सभी शामिल थीं। 
हिमाद्रि अब डॉक्टर बन गया था। कुछ दिनों तक उसने शहर के एक बड़े अस्पताल में काम किया। किंतु उसे ना तो नाम चाहिए था और ना ही पैसा। उसे जो चाहिए था वह उसे गांव में ही आसानी से मिल सकता था। इसलिए वह अस्पताल की नौकरी छोड़ कर गांव आ गया। उर्मिला देवी ने उससे कहा।
"बेटा शहर में इतनी अच्छी नौकरी छोड़ कर यहाँ क्यों आ गए। यहाँ रहने में भी तुम्हें तकलीफ होगी।"
हिमाद्रि ने उन्हें समझाते हुए कहा। 
"अम्मा मुझे पैसों का लालच नहीं है। तुमने मुझे पढ़ाया लिखाया। डॉक्टर बनाया। हमारे गांव में कोई अस्पताल नहीं है। मैं तुम्हारे नाम पर यहाँ अस्पताल खोलूँगा। गांव में तुम्हारी इज्ज़त बहुत बढ़ जाएगी।"
हिमाद्रि की बात सुन कर उर्मिला देवी बहुत खुश हो गईं। उन्होंने उसे हर संभव मदद देने का वादा किया। कुछ ही महीनों में गांव में उर्मिला देवी चिकित्सालय खुल गया। वह गांव के लोगों का इलाज करने लगा। हिमाद्रि के इस कदम ने गांव वालों के मन में उसके लिए इज्ज़त पैदा कर दी थी। जो लोग पीठ पीछे उसे नाजायज़ कहते थे वह भी अब उसकी तारीफ करते नहीं थकते थे। 
उर्मिला देवी बहुत खुश थीं। बेटा अब डॉक्टर बन गया था। वह चाहती थीं कि अब उसका विवाह हो जाए। उन्होंने इस संबंध में अपनी कोशिश आरंभ कर दी। किंतु एक समस्या थी। ठाकुर बिरादरी का कोई व्यक्ति उनके बेटे के साथ अपनी बेटी का ब्याह करने को तैयार नहीं था। उनका मानना था कि भले ही उर्मिला देवी ने उसे अपनाया हो। पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बना दिया हो। किंतु वह उनका रक्त नहीं है। हिमाद्रि उन्हें पड़ा मिला था। उसका रूप रंग भी भारतियों जैसा नहीं था। सब यही कहते थे कि वह किसी अंग्रेज़ की अवैध संतान है। कुछ लोग सीधे तो कुछ लोग दबा छिपा कर इसी आधार पर रिश्ता ठुकरा देते थे। हर जगह से उर्मिला देवी को निराशा मिल रही थी। 
अतः उर्मिला देवी ने अपनी बिरादरी के कुछ गरीब लोगों से बेटे के विवाह की बात चलाई। किंतु वह लोग भी बिरादरी के दबाव में पीछे हट गए। इससे उर्मिला देवी बहुत आहत हुईं। उन्होंने तय कर लिया कि चाहें परंपराओं के विरुद्ध जाकर दूसरे धर्म में भी ब्याह करना पड़े वह हिमाद्रि की शादी करा कर रहेंगी। 
उर्मिला देवी की इन कोशिशों से बेखबर हिमाद्रि अपनी दुनिया में मस्त था। डॉक्टरी का पेशा तो उसके लिए बहाना था। उसकी आड़ में वह अपने अंदर धधकती काम की ज्वाला को शांत करने की योजना बनाता रहता था। अस्पताल में गांव और उसके आसपास के लोग इलाज कराने आते थे। इनमें पुरुष महिला बच्चे सभी होते थे। उसकी नज़र महिलाओं पर रहती थी। 
अक्सर वह महिलाओं को इलाज के बहाने अस्पताल में भर्ती हो जाने की सलाह देता था। औरतों के लिए उसने अलग वार्ड की व्यवस्था कर रखी थी। अधिकतर ऐसा होता था कि उस वार्ड में केवल एक ही महिला होती थी। रात के समय उनके साथ कोई एक मर्द ही ठहरता था। अस्पताल में अधिक मरीज़ भी नहीं होते थे। 
अपने मेडिकल ज्ञान का गलत प्रयोग कर वह महिला और उसके रिश्तेदार को नींद की दवा खिला देता था। उनके गहरी नींद में सो जाने के बाद वह अपना खेल खेलता था। इस तरह वह कई महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था। गांव के लोग उस पर शक भी नहीं कर पाते थे। 
उसके भीतर जैसे कोई कामातुर दैत्य बैठा था। जिसकी तृप्ति इतने शिकारों के बाद भी नहीं हुई थी। बल्कि उसकी कामना दिन पर दिन बढ़ती जा रही थी। जितना उसे सफलता मिल रही थी। उतना ही उसका हौसला बढ़ता जा रहा था। अब वह बेखौफ अपने कारनामों को अंजाम देता था। 
क्योंकी हिमाद्रि के अंग्रेज़ की तरह दिखने के कारण लोग अपनी बेटी देने से मना कर रहे थे। अतः उन्होंने किसी ऐसी लड़की से हिमाद्रि का ब्याह करने का मन बनाया जिसकी माता या पिता में से कोई अंग्रेज़ हो। 
माईखेड़ा से कोई बीस किलोमीटर दूर एक कस्बा था मॉरिसगंज। इस कस्बे में कुछ साल पहले जॉन माधव नाम के एक बंगाली सज्जन ने बच्चों के लिए एक अंग्रेज़ी स्कूल खोला था। उनके साथ उनकी पत्नी मारिया भी सहयोग करती थीं। जॉन का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनका नाम माधव भट्टाचार्य था। उन्हें मारिया डिसूज़ा नाम की एक एंग्लो इंडियन लड़की से प्यार हो गया। परिवार वाले इस रिश्ते के विरुद्ध थे। अतः माधव ने ईसाई धर्म स्वीकार कर अपना नाम जॉन रख लिया। किंतु अपनी पुरानी पहचान को साथ रखते हुए जॉन के आगे माधव जोड़ लिया। 
मारिया और जॉन की एक बेटी थी रोज़लीन। वह बहुत सुंदर थी। रोज़लीन भी अपने माता पिता के साथ स्कूल के संचालन में भाग लेती थी। उर्मिला देवी को रोज़लीन के बारे में पता चला तो उन्होंने जॉन को संदेश भिजवाया कि वह उनसे मिलने आना चाहती हैं। 
उर्मिला देवी हिमाद्रि के साथ उनके घर पहुँच गईं। उन्हें रोज़लीन बहुत पसंद आई। हिमाद्रि ने उसे भी उसी निगाह से देखा जैसे वह और स्त्रियों को देखता था। उर्मिला देवी ने जॉन और मारिया को सारी बात सच सच बता दी। हिमाद्रि डॉक्टर था। देखने में भी सुंदर था। इसलिए जॉन और मारिया को इस रिश्ते से कोई इंकार नहीं था। 
उर्मिला देवी ने मंदिर में एक सादे समारोह में उनकी शादी करवा दी। हिमाद्रि कुछ दिन तो अपनी पत्नी के साथ सुख से रहा। लेकिन जल्द ही उसके भीतर के शैतान ने उसे नए शिकार खोजने के लिए उकसाना आरंभ किया।
जो महिलाएं हिमाद्रि की वासना का शिकार हुई थीं उनमें से कुछ तो अपने ऊपर हुए अत्याचार को समझ ही नहीं पाईं। जिन्हें समझ भी आया वह लोकलाज में चुप रहीं। किंतु अब धीरे धीरे वह हिमाद्रि का खेल समझने लगी थीं।
अस्पताल में एक गरीब महिला भर्ती हुई थी। वह विधवा थी। उसके साथ उसका बूढ़ा बाप था। हिमाद्रि ने उस महिला को भी अपना शिकार बनाने की चाल चली। खाने में नींद की दवा मिला कर उसने बूढ़े और उसकी बेटी को खाने के लिए दिया। गरीब बूढ़ा अपनी बेटी को बहुत चाहता था। उसने अपने हिस्से का खाना भी उसे खिला दिया। खुद पानी पीकर सो गया। 
हमेशा की तरह हिमाद्रि कमरे में आया। इस समय भी वार्ड में उस गरीब विधवा के अलावा कोई नहीं था। बूढ़े को सोता देख वह उसकी बेटी से दुष्कर्म करने लगा। लेकिन बूढ़े की आँख खुल गई। उसने जब यह कुकर्म होते देखा तो चिल्लाने लगा। हिमाद्रि को इस बात का तनिक भी अंदेसा नहीं था। वह घबरा गया। उसने बूढ़े का मुंह कस कर दबा दिया। कुछ ही देर में वह निढाल हो गया। हिमाद्रि ने बूढ़े को ले जाकर अस्पताल के पीछे वाले जंगल में फेंक दिया। उसके बाद वापस लौट कर उसकी बेटी के साथ अपनी हवस मिटाई। 
अपनी हवस के चलते हिमाद्रि ने यह भी नहीं देखा था कि बूढ़ा जीवित है या मृत। बूढ़ा केवल बेहोश हुआ था।