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दस दरवाज़े - 4

दस दरवाज़े

बंद दरवाज़ों के पीछे की दस अंतरंग कथाएँ

(चैप्टर – चार)

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दूसरा दरवाज़ा (कड़ी -1)

नसोरा : ग़र तेरे काम आ सकूँ

हरजीत अटवाल

अनुवाद : सुभाष नीरव

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स्ट्रैथम का इलाका है। शाम का झुटपुटा, ऊपर से कड़ाके की सर्दी। मैं रॉयल एस्टेट में से हाईंड हाउस को खोज रहा हूँ। यही बताया है मागला ने कि हाईंड हाउस के बहत्तर नंबर फ्लैट में नसोरा रहती है। पच्चीस इमारतों की एस्टेट में से पहले तो हाईंड हाउस ढूँढ़ना ही कठिन पड़ता है। चारों ओर काले रंग के लड़के-लड़कियाँ मेरी अजनबी-सी कार की ओर घूर घूरकर देख रहे हैं। मेरी ओर इशारे-से करते हुए आपस में बात भी कर रहे हैं। मुझे इस इलाके के खतरों का पता है। यहाँ तो लोग दिन के समय में भी नहीं आते और मैं अँधेरे में घूमता-फिरता हूँ। नसोरा से मिलने का, उसको देखने का एक भूत मन पर सवार हुआ बैठा है। साथ ही साथ, मैं भयभीत भी हूँ कि आज जिन्दा वापस नहीं लौटने वाला। कभी-कभी दिल करता है कि वापस लौट जाऊँ। क्या मालूम यह पता ही गलत हो। शायद नसोरा ने मागला को टरकाने के लिए यह पता दे दिया हो। ईस्ट लंदन में रहती-रहती नसोरा इतनी दूर कैसे आकर रहने लगेगी, पर मेरे ऊपर सवार भूत मुझे लौटने नहीं दे रहा। मन के अन्दर से एक आवाज़ आ रही है कि वह यहीं कहीं होगी।

बड़ी कठिनाई से मैं हाईंड हाउस ढूँढ़ पाता हूँ। बहत्तर नंबर फ्लैट सातवीं मंज़िल पर है। कार एक तरफ पार्क करते हुए मैं देखता हूँ कि करीब कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं जो मुझ पर एकदम हमला कर दे। मैं हाईंड हाउस में दाखि़ल होता हूँ। एक गन्दी-सी गंध मेरे नाक में आ घुसती है। मेरा सांस रुकने लगता है। लिफ्ट के लिए मैं बटन दबाता हूँ, पर लिफ्ट खराब पड़ी है। मेरे अन्दर से एकबार फिर आवाज़ आती है कि मैं वापस चला जाऊँ, लेकिन मैं सीढ़ियाँ चढ़ने लगता हूँ। पहली मंज़िल, दूसरी और फिर तीसरी। सातवीं मंज़िल पहाड़ जितनी ऊँची लग रही है। वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते मेरी टाँगें जवाब देने लगती हैं। साँस से साँस नहीं मिल रहा। कुछ दम मारकर मैं बहत्तर नंबर की घंटी दबाता हूँ। नीचे खड़ी अपनी कार की ओर देखता हूँ। ऊपर से डिब्बी-सी दिखती है। दो बार घंटी बजाने पर भी दरवाज़ा नहीं खुलता। मैं दरवाज़ा नॉक करता हूँ। कुछ देर बाद एक वैस्ट इंडियन अन्दर से निकलता है और गुस्से में रोबीले स्वर में पूछता है -

“वॉट्स ए प्रोब्लम मैन?“

“मैं नसोरा से मिलना चाहता हूँ।“

“कौन नसोरा?“

“नसोरा मेरी दोस्त है।“

“यहाँ कोई नसोरा नहीं, दफा हो जा यहाँ से।“

“देख, मेरा मिलना बहुत ज़रूरी है।“

“मैंने कहा न कि यहाँ कोई नसोरा नहीं रहती। अगर तू फौरन यहाँ से नहीं गया तो मैं तुझे उठाकर नीचे फेंक दूँगा।“

वह पूरे गुस्से में कहता है। मैं उसके शरीर की ताकत को आंकता हूँ। मुझसे तगड़ा नहीं होगा। मैं एकबार फिर नसोरा के बारे में पूछता हूँ। वह मुक्का मेरी तरफ बढ़ाता है। उसकी उंगलियों में पहनी लोहे की मूठ की चमक मेरी आँखों के आगे से तीव्र गति में गुज़र जाती है। ये तो मेरा जबाड़ा ही तोड़ देगी!

नसोरा, जाम्बिया में जन्मी काली नस्ल की लड़की।

जिस दफ़्तर में मैं काम करता हूँ, वहाँ वह सफाई का काम करती है।

साधारण-सी लड़की, पर हर वक्त सिर झुकाकर ब्रूम या मॉप करती दिखती है। कोई न कोई करीब से गुज़रता उससे मजाक कर जाता है। वह सिर उठाकर ज़रा-सा उसकी तरफ देखती है, उसकी बात का उत्तर देकर पुनः अपने काम में लग जाती है। मैं उसकी ओर देखता हूँ और सोचता हूँ कि इस लड़की में तो एक भी ऐसी बात नहीं जो मर्द को अपनी ओर खींच सके। शायद यही कारण हो कि इसके संग कभी किसी मर्द को नहीं देखा। एक दिन मैं भी उससे मजाक करते हुए कह देता हूँ -

“हाय ब्युटिफुल, तू जिस तरह फर्श को रगड़ रही है, ऐसे तो इसको जल्द ही घिसा देगी। ज़रा आहिस्ते!“

वह सिर उठाकर मेरी ओर देखती है और मुँह खोलकर मुस्कराती है। उसके दूधिया दाँत काले रंग पर बहुत सुन्दर लगते हैं। वह अपने रेशमी काले घुंघराले बालों को झटककर बग़ैर कुछ बोले फिर से काम में लग जाती है।

अगली बार मैं उसके करीब से गुज़रते हुए कहता हूँ -

“मॉय डियर, ज़रा आराम भी कर लिया करो।“

“तेरा क्या ख़याल है कि मेरा बॉस मुझे आराम करने देगा! वैसे भी मेरी ब्रेक होने वाली है, फिर मुझे बैठना ही है।“

“मुझे तो तेरे बॉस पर गुस्सा आ रहा है जो इतनी सुन्दर लड़की से इतना सख़्त काम करवा रहा है।“

“सुन्दर! मैं!! तेरी मजाक करने की आदत लगती है। मैं तो अगली हूँ, बहुत भद्दी!“ कहकर वह हँसने लगती है और पुनः अपने काम में लग जाती है। मैं सोचने लगता हूँ कि वह अपने बारे में कितनी स्पष्ट है। फिर सोचता हूँ कि यही तो उसकी खूबसूरती है कि उसको अपने बारे में कोई भ्रम नहीं है। मेरा दिल करता है कि इसके साथ बैठकर बातें करूँ।

एक दिन वह अपने सहकर्मियों के संग कैंटीन में बैठी दिखाई देती है। मैं दूर से उसको हाथ हिलाकर गुज़र जाता हूँ। वह खुश हो जाती है। धीरे-धीरे वह मुझे रोज़ टकराने लगती है। हमारे बीच एक-आध बात भी होती है। वह बताती है कि उसका नाम नसोरा है और वह क्लैपटन में अपने बॉय-फ्रेंड के साथ रहती है। मुझे उसके संग बातें करते देख मेरा दोस्त नवतेज व्यंग्य में कहता है -

“बड़ा तगड़ा माल फांसा है!“

“नहीं यार, माल-वाल कैसा! यूँ ही खाली मुँह में गाजरें वाली बात है।“

“इससे तो अच्छा मुँह खाली ही रख ले।“ कहते हुए वह हँसने लगता है।

मैं कार में बैठा हूँ। नसोरा अपनी शिफ्ट खत्म करके मेरे पास से गुज़रती है। मैं पूछता हूँ -

“अगर चाहे तो मैं तुझे घर छोड़ दूँ?“

“नहीं, अड़तीस नंबर बस सीधी मेरे घर जाती है, मैं चली जाऊँगी। फिर मेरा बॉय फ्रेंड जेसन भी यह बात पसंद नहीं करेगा।“ कहते हुए वह चली जाती है। मैं भी मजाक में कह रहा था। मेरे पास भी इतना समय कहाँ कि उसको उल्टी दिशा में छोड़ने जाऊँ और ऊपर से उसके बॉय-फ्रेंड से पंगा लूँ।

नसोरा कैंटीन में अकेली बैठी है। शून्य में लगी उसकी टकटकी बता रही है कि वह उदास है। मैं उसके करीब जाकर बैठ जाता हूँ। पूछता हूँ -

“मॉय डियर, क्या बात है?“

“कल जेसन को सज़ा हो गई पाँच साल। तुझे बताया था न जेसन, मेरा बॉय-फ्रेंड।“

“ओह, आय एम सॉरी। सज़ा किस बात पर हुई?“

“ड्रग लेकर जा रहा था।... बुरे कामों के बुरे ही नतीजे होते हैं।“

“तू बहुत प्यार करती है उसको?“

“मुझे लगता है कि मैं नहीं करती। पर आदमी की ज़रूरत तो होती ही है न, वो न होता तो कोई दूसरा होता।... मुझे नहीं पता था कि वह किसी गैंग का मेंबर है, नहीं तो मैं उसको कभी करीब नहीं आने देती।“

“अच्छा आदमी है वो?“

“जेसन मुँह का भौंकड़ है, पर दिल का अच्छा है।“

“मिस करती है उसको?“

“हाँ, इतनी देर हो गई साथ रहते हुए, मिस तो करूँगी ही।“

“पाँच साल बहुत होते हैं... अब दूसरा आदमी ढूँढ़ेगी?“

“पता नहीं, शायद।“ वह कहती है। कुछ देर बाद पूछती है -

“तू इतने सवाल क्यों पूछ रहा है, क्या तू भी अकेला है?“

“हाँ, पत्नी छोड़ गई है।“

“पर मुझ पर कोई आस न रखना, मैं अभी अकेले होने के सुख का मज़ा लेना चाहती हूँ।“ कहकर वह हल्की-सी मुस्कराहट देती है।

मैं कहता हूँ, “हाँ, यह बात भी ठीक है। अकेले रहने का अपना ही एक मज़ा होता है, पर अकेला आदमी भी जल्दी ही ऊब जाता है। मैं भी अब ऊब चुका हूँ।“

“खोज ले, मेरी जैसी बहुत मिल जाएँगी।“

“मिल तो जाएँगी, पर पता नहीं क्यों मैं तेरे बारे में सोचने लग पड़ा हूँ।“ मैं यूँ ही कह देता हूँ। वह एकदम से कहती है -

“ज्यादा न सोच। अगर तू चाहे तो हम बाहर घूमने जा सकते हैं।“

मैं चुप्पी लगा जाता हूँ। मुझे इस समय औरत के साथ की ज़रूरत है, पर नसोरा-सी लड़की की बिल्कुल नहीं। मेरे सपनों में तो कोई सुन्दर लड़की बसती है जो जगीरो (पहली पत्नी) से कहीं अधिक सुन्दर होगी। मुझे चुप देखकर नसोरा बोलती है -

“कोई मजबूरी नहीं, यह तो तू बंदा अच्छा लगता है इसलिए कहा था।“ नसोरा उठकर चली जाती है। जाती हुई नसोरा को मैं दूर तक देखता रहता हूँ। उसके बड़े-बड़े नितंब मुझे अच्छे लगते हैं।

उसके जाते ही नवतेज आ जाता है और अपने मजाकिया स्वभाव के अनुसार पूछता है -

“क्यों, बनी बात?“

“अभी मैंने पूरी ट्राई नहीं मारी।“

“यार, अगर काला रंग ही अच्छा लगता है तो देख दफ़्तर में और कितनी काली लड़कियाँ हैं, एक से बढ़कर एक! पर तू तो वो कहावत सच करने की सोच रहा है कि अगर गधी पर दिल आ गया तो परी क्या चीज़ है!“

बात खत्म करते हुए नवतेज बायीं आँख दबाता है। नसोरा मुझे मिलती तो रोज़ है, कितनी देर तक बातें होती रहती हैं, पर इससे आगे कोई बात नहीं बढ़ती।

नसोरा के बारे में मोहन लाल बात करता है। मोहन लाल का नवतेज से उलट स्वभाव है। वह ज़रूरतमंद जो है। वह उतावला-सा होकर कहता है -

“यार, तुझे तो और बहुत हैं। तू मेरी बात करवा दे उसके साथ। इस बहाने मैं यहाँ पक्का हो जाऊँगा। इतने साल हो गए धक्के खाते, ग़ैर-कानूनी रहते हुए। अगर यह काली मेरे साथ विवाह करवा ले तो...। तू उससे पूछकर देख। मैं पैसे खर्च कर दूँगा।“

मोहन लाल की आँखें सपने देखने लगती हैं। वह मेरा ख़ास दोस्त है, पर बहुत सालों से लुक-छिपकर रह रहा है। इस मुश्किलभरी ज़िन्दगी से वह दुःखी हुआ पड़ा है। स्थायी होने का कोई साधन नहीं बन रहा। मुझे चुप देखकर वह अपनी बात फिर दोहराता है। मैं कहता हूँ -

“यार, अभी तो मेरी उसके साथ दोस्ती भी नहीं हुई... मान लो, दोस्ती हो भी जाए तो कोई अपनी दोस्त से ऐसी बातें किया करता है!“

“कहते हैं न कि ज़रूरत माँ होती है। मेरी ज़रूरत है और मेरे लिए कुछ कर यार।“

“मैं उसके साथ यह बात कैसे करूँगा?“

“यह तेरी प्रॉब्लम है, मुझे मालूम है कि तू बात कर सकता है।“

वह मेरी प्रशंसा करके मुझे फूंक देता है। मोहन लाल अपनी बात कहकर एक तरफ हो जाता है, पर मैं सोचने लगता हूँ कि इस बारे में नसोरा से पूछूँ भी कि नहीं। यदि पूछा तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी।

(जारी…)