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हिमाद्रि - 7



                        हिमाद्रि (7)


अपने मम्मी पापा के आने से कुमुद की स्थिति में सुधार हुआ था। वह अब अपने मम्मी पापा के साथ बातें करती थी। सरला दुर्गा बुआ के साथ मिल कर कुमुद के पसंद का खाना बनाती थीं। कुमुद बड़े मन से खाना खाती थी। कुमुद के मम्मी पापा उसे खुश रखने की पूरी कोशिश करते थे। बहुत समय के बाद घर का माहौल कुछ अच्छा हुआ था। उमेश मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था।
आज अमावस थी। कुमुद के साथ हुए हादसे को आज पूरा एक महीना हो गया था। डिनर के बाद वह अपनी मम्मी के साथ उनके कमरे में लेटी थी। वह प्यार से उसका माथा सहला रही थीं। कुमुद आँखें बंद किए चैन से लेटी थी। 
बंगले में शांति थी। सब अपने अपने कमरे में आराम कर रहे थे। पर इस शांति को कुमुद की दर्दनाक चीख ने भंग कर दिया। कुमुद की मम्मी उसे दर्द से छटपटाते देख कर घबरा गईं। वह समझ नहीं पा रही थीं कि एक पल में ही यह क्या हो गया। अभी तक तो कुमुद बड़े आराम से लेटी थी। वह उसका माथा सहला रही थीं। अचानक ही वह ज़ोर से चीख उठी। 
कुमुद की चीख सुन कर उमेश और कुमुद के पापा उसके कमरे की तरफ भागे। बुआ गीता का पाठ समाप्त कर सोने ही जा रही थीं। चीख सुन कर वह भी कुमुद के पास भागीं। वहाँ पहुँच कर सबके सामने जो नज़ारा था उसे देख कर सबके होश उड़ गए। 
सरला खड़ी कांप रही थीं। कुमुद पूरे बिस्तर करवटें बदल रही थी। वह ऐसे छटपटा रही थी जैसे बहुत अधिक पीड़ा में हो। 
उमेश ने आगे बढ़ कर कुमुद को संभालने की कोशिश की पर उसे संभालना बहुत कठिन हो रहा था। 
"क्या हुआ कुमुद....ऐसे क्यों छटपटा रही हो ?"
कुमुद बड़ी कठिनाई के साथ बोली।
"मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरे पेट में बच्चा है। जो ज़ोर से हिल डुल रहा है।"
कुमुद की बात सुन कर सब परेशान हो गए। उमेश समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। उसने कुमुद के पापा से कहा।
"इसे अस्पताल ले जाना होगा। आप मदद कीजिए।"
वह बुआ की तरफ मुड़ा।
"बुआ आप मम्मी जी को संभालिए। हम कुमुद को लेकर जा रहे हैं।"
मुकेश और उमेश सावधानी से कुमुद को नीचे लाए। कार में बैठा कर अस्पताल ले गए। 
सरला अभी भी सदमे जैसी हालत में थीं। बुआ ने उन्हें समझाया कि घबराने की ज़रूरत नहीं। उमेश कुमुद को लेकर अस्पताल गया है। सब ठीक हो जाएगा। किंतु जो कुछ हुआ उससे बुआ भी घबरा गई थीं। बंगले में वो दोनों औरतें बिल्कुल अकेली थीं। कुमुद के साथ जो हुआ उससे बंगले का माहौल बहुत भयावह हो गया था। बुआ ने सुझाव दिया कि वह दोनों नीचे मंदिर में जाकर कुमुद की सलामती के लिए प्रार्थना करें। सरला को यह विचार अच्छा लगा। दोनों मंदिर में बैठ कर ॐ नमः शिवाय का जाप करने लगीं।
डॉक्टरों ने कुमुद की चाँच की। उन्हें कुछ गड़बड़ नहीं लगा। लेकिन कुमुद बार बार कहे जा रही थी कि उसके पेट में बच्चा है। वह ज़ोर से हाथ पांव चला रहा है। डॉक्टर कुछ समझ नहीं पा रहे थे। कयोंकी कुमुद के गर्भवती होने के कोई लक्षण नहीं थे। उन्होंने उसे नींद का इंजेक्शन देकर सुला दिया। उमेश को बुला कर डॉक्टर ने उससे बात की। 
"हमने फिलहाल नींद का इंजेक्शन देकर उन्हें सुला दिया है। कल सुबह हम पेट का अल्ट्रासाउंड कराएंगे। तभी उनके दर्द की सही वजह पता चल सकेगी।"
"जी ठीक है। पर घबराने की तो कोई बात नहीं।"
"वह तो अल्ट्रासाउंड के बाद ही पता चलेगा। लेकिन आपकी पत्नी बार बार कह रही थीं कि उनके पेट में बच्चा है जो हरकत कर रहा है। किंतु वह तो गर्भवती नहीं हैं।"
उमेश ने उन्हें बताया कि कुमुद का इलाज प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. गांगुली कर रहे हैं। कुमुद को सेज़ोफ्रेनिया है। 
"ओह...उमेश जी हम कल आपकी पत्नी की जँच कर देखते हैं कि पेट में इतनी भयंकर पीड़ा होने का क्या कारण है। आप डॉ. गांगुली को इस नए डेवलेपमेंट के बारे में ज़रूर बताइएगा।"
डॉक्टर से मिलने के बाद उमेश ने कुमुद के पापा से कहा कि आप कार लेकर घर चले जाइए। लेकिन मुकेश कार ड्राइव करना नहीं जानते थे। उनका मन भी कुमुद को छोड़ कर जाने का नहीं था। अतः उमेश ने सोंचा कि बुआ को फोन कर कुमुद का हाल बता दे।
बुआ और सरला कुमुद की अच्छी सेहत के लिए ॐ नमः शिवाय का जाप कर रही थीं। सरला का मन बार बार अपनी बेटी के बारे में सोंच कर परेशान हो रहा था। बुआ को भी लग रहा था कि अब देर हो गई। कुमुद का हाल लेना चाहिए। किंतु वह अपना फोन अपने कमरे में छोड़ आईं थीं। उन्होंने सरला से पूँछा तो वह भी फोन ऊपर ही छोड़ आईं थीं। 
फोन लाना ज़रूरी था। ताकि कुमुद के बारे में पता किया जा सके। किसी की भी हिम्मत अकेले ऊपर जाने की नहीं हो रही थी। उन्होंने एक साथ ही ऊपर जाने का मन बनाया। सरला का कमरा पहले पड़ता था। बुआ ने उनसे कहा कि वह अपना फोन ले आएं। दोनों मंदिर के बाहर निकलीं तो वहाँ अजीब सा भयावह सन्नाटा फैला था। दोनों मन ही मन ईश्वर को याद करते हुए सीढ़ियां चढ़ने लगीं। कमरे के दरवाज़े पर पहुँच कर बुआ ने सरला से कहा कि आप जल्दी से अंदर जाकर अपना फोन ले आइए।
सरला ने दरवाज़ा खोला। लाइट पहले से ही जल रही थी। मंदिर में जाते वक्त वह बुझाना भूत गई थीं। सरला ने इधर उधर देखा तो बेड के साइड में रखे स्टूल पर उनका फोन पड़ा था। वह स्टूल तक गईं और अपना फोन उठा लिया। जैसे ही वह बाहर जाने को मुड़ीं अचानक बिजली गुल हो गई। चारों ओर घुप्प अंधेरा फैल गया। उस अंधेरे में सरला को किसी के होने का एहसास हुआ। डर कर वह चीख पड़ीं। दौड़ कर बाहर निकल आईं। उनके बाहर आते ही कमरे की बिजली फिर जल उठी। लेकिन सरला और बुआ तेज़ी से सीढ़ियां उतर कर मंदिर में चली गईं। 
कुछ शांत होने के बाद सरला ने चेक किया तो उमेश की पाँच मिस्ड कॉल्स थीं। उन्होंने फौरन उमेश को फोन लगाया।
"हैलो....मम्मी.... क्या बात है। आप और बुआ दोनों ही फोन नहीं उठा रही थीं।"
"वो फोन ऊपर था। हम दोनों मंदिर में बैठ कर प्रार्थना कर रहे थे। अभी फोन नीचे लाई तो मिस्ड कॉल्स दिखीं। यह बताओ कि कुमुद कैसी है।"
"कुमुद अब ठीक है। सो रही है। कल डॉक्टर कुछ जाँच करेंगे। फिर सही तरह से कुछ कह सकते हैं। मैं और पापा रात में यहीं ठहरेंगे। आप बुआ को बता दीजिए। अगर मेन डोर ना बंद हो तो ठीक से बंद कर लें।"
सरला ने सारी बात बुआ को बता दी। बुआ को याद नहीं था कि मेन डोर बंद है या नहीं। सरला को वहीं छोड़ वह बाहर निकलीं। मेन डोर तक गईं। वह खुला हुआ था। मेन डोर बंद करने से पहले उन्होंने बाहर झांका। अमावस की कालिमा ने सब कुछ ढक रखा था। लॉन में लगे फूलों के पौधे इस अंधेरे में किसी साये की तरह लग रहे थे। मेन डोर बंद कर वह मंदिर में चली गईं। 
उमेश सोई हुई कुमुद के पास बैठा था। वह बहुत दुखी था। उसे लगने लगा था कि कुमुद अब ठीक हो रही है। अपने मम्मी पापा के आ जाने से उसका मन बहल गया है। लेकिन सब सही होते होते अचानक यह सब हो गया। उसने मन ही मन ईश्वर से सवाल किया कि वह क्यों इस तरह उसकी  परीक्षा ले रहे हैं। उसने तो कभी किसी का बुरा नहीं किया। 
उमेश कितने चाव से कुमुद को लेकर अपने बंगले में आया था। उसने सोंचा था कि बंगले को बेड एंड ब्रेकफास्ट होटल में बदलने के बाद दोनों मिल कर अपना बिज़नेस चलाएंगे। लेकिन सब अस्त व्यस्त हो गया। कुमुद की यह हालत हो गई। वह कुछ कर नहीं पा रहा है। अपनी बेबसी पर उसे रोना आने लगा। उसे भावुक देख कर मुकेश ने उसे संभाला।
फोन की घंटी सुन कर बुआ की नींद खुली। वह सरला मंदिर में ही सो गई थीं। उन्होंने फोन उठाया। उमेश का था।
"हैलो मम्मी....."
"नहीं मैं दुर्गा..."
"बुआ.... ये लोग अभी कुछ देर में कुमुद को जांच के लिए ले जाएंगे। हम लोग तो रात जल्दी में आ गए थे। कुछ सामान नहीं लाए। यहाँ शायद दोपहर या उससे भी देर तक रुकना पड़े। मैं पापा के साथ आ रहा हूँ। आप लोग नाश्ता बना कर रखिए। हम फ्रेश होकर नाश्ता करने के बाद फिर अस्पताल आ जाएंगे।"
उमेश से बात कर बुआ ने सरला को जगा कर सारी बात बताई। दोनों मंदिर से बाहर आ गईं। दिन के उजाले में डर नहीं लग रहा था। दोनों जल्दी जल्दी तैयार हुईं और मिल कर नाश्ता बनाने लगीं।