Achchaaiyan - 27 books and stories free download online pdf in Hindi

अच्छाईयां – २७

भाग – २७

सूरज अब तेजधार के सिकंजेमें बुरी तरह से फंस रहा था | इन्स्पेक्टर तेजधार जानबूझ के ऐसा कर रहा था या वो सूरज को फ़साने की साजिस कर रहा था वो सूरज के लिए भी समझ पाना मुश्किल था | मगर गुलाबो के मिलने के बाद ये तय हो चूका था की सूरज को किसी भी हाल में वे करोडो के नायाब हीरे का पता लगाना बेहद जरुरी बन गया था | इसका राझ शायद ये तेजधार भी जान चूका होगा वरना वो मेरे पीछे क्यों पड़ा है ?

सुलेमान जो सालो पहले डी.के. के लिए काम करता था और अब शायद तेजधार के साथ काम करता होगा | सालो पहले उस ड्रग्स सप्लाय में सुलेमानने ही मुस्ताक को काम दिया होगा और मुस्ताकने वो सारा ड्रग्स हमारे म्युझिकल इंस्ट्रूमेंटमें रख दिए होगे जो मुझे ले के आना था | वो तो पहले जा चुके थे इसलिए उसके सारे गुन्हाओ की सजा मुझे मिली क्यूंकि उस वक्त मैं अकेला ही था |

वो सारा ड्रग्स या उसकी सजा तो अब ख़त्म हो गई मगर ये जो हीरे का राझ कौन कौन जानता होगा ? अब मुझे मुस्ताक से ही मेरी जिन्दगी के कुछ सवालों के जवाब ढूँढने होंगे |

सवेरा हो चूका था इसलिए सूरज को कोलेज के लिए निकलना था | अपनी संगीत की दुनियामे फिर कई सालो बाद सबको मिलना था और उनसे कुछ दिनों के लिए जरुरी काम भी करवाना था | कोलेज के सभी छात्रो को ट्रेनिंग भी देनी थी इसलिए वो जल्दी से कोलेज गया |

कोलेजमें पहला कदम रखते ही सबसे पहले झिलमिल मिली | पहले जो नटखट और सुन्दर दिखती थी वो आज कुछ मोटी हो गई थी | उसने सूरज को देख के दौड़ लगाईं और सूरज को चिपक गई | ‘सूरज.... कितने दुबले हो गए हो...! हमें तुम्हारी कितनी फ़िक्र हो रही थी ?’

‘मैं दुबला नहीं हुआ हूँ मगर तुम मोटी हो गई हो....!’ सूरजने ऐसे अंदाज में कहा की झिलमिल सूरज को पीटने लगी

उस वक्त सरगम भी वहा आ गई | झिलमिल को ऐसे चिपक के देखकर वो सूरज की ओर गुस्से से देखने लगी |

उसके पीछे निहाल, रज्जू, पावन आ गए थे |

‘हमारी सात सूरो की टीम आज कितने सालो के बाद मिल रही है, सरगम से सा की शुरुआत होती थी, रज्जू हमारे लिए ‘रे’ स्वर था, ‘ग’ से गुंजा, ‘म’ से मुस्ताक, ‘प’ से पावन, ‘ध’ से श्रीधर, ‘नि’ से निहाल और सबसे ऊँचा और आखरी सा से हमारा प्यारा सूरज....!’ झिलमिलने वो पुरानी बाते याद की |

सरगमने भी गुंजा और श्रीधर की मौत के बारे में सबको बताया था | इसलिए आज मित्रता के सात सूरोवाले सप्तक में से ‘ध ‘ और ‘ग’ की कभी लग रही थी, उससे सब दु:खी थे |

‘चलो आज फिर हम अपने अपने सूर के साथ अपना नया सप्तक बनाए | जिस्म से यदी दो सूर हमारे पास भले ही न हो मगर गुंजा और श्रीधर हमारे दिल में अभी भी मौजूद है | हम सब उसके लिए गाएंगे और इस कोलेज को फिर से प्यार के सूरो से भर देंगे |’ निहालने सबको खुश करने के लिए कहा |

कोलेज के बिच बड़ा पियानो था, जो सूरजने कुछ दिन पहले ही ठीक किया था | वो जमींमें था और उस पर पैर रख के बजाया जाता था | सालो पहले ये सभी दोस्त साथ मिलके अपने अपने सूर से दोस्ती की बढ़िया धून बनाते थे और गाते थे |

‘मेरे पापा का जो प्यारा सूर जो ‘ध’ से था वो मैं संभालुंगी |’ सरगम के साथ आई छोटी सी सुगमने जब ये कहा तो सूरज उसके पास गया और उसको अपनी बाहों में उठाके बोला, ‘ हां... क्यूँ नहीं...तुम जरुर हमें साथ देना |’

‘और गुंजा नहीं है तो उसकी जगह ‘ग’ से मेरा सूर पेश होगा..!’ ‘झिलमिलने भी सूरज के पास जाके कहा तो सूरजने उसको सराहा और कहा, ‘हमारी यही तो पहचान है की हम हरवक्त साथ साथ है... संगीत हमें जोड़ने की शक्ति देता है... संगीत के सात सूरो से हम पुरे विश्व को बतलायेंगे की हमारे भारत देशने विश्व को सात सूरो का जो ज्ञान दिया है वो केवल गाने या बजाने के लिए ही नहीं मगर सबको एकजूट रखने के लिए भी किया है |’

सबकी आँखों से खुशीया झलक रही थी | कोलेज के सारे छात्र भी अब देख रहे थे और समझ भी रहे थे की संगीत सचमुच क्या है ? संगीत अलौकिक शक्ति है.. संगीत साधना है... संगीत दोस्ती भी है और संगीत हमारी धरोहर भी...!

उसी वक्त सरगमने दोस्ती के सप्तक को छेड़ा | ये सूर मनमोहक था सबको अपने प्रति खिंच रहा था | सरगम की सुरीली आवाज आज भी बरकरार थी | सालो बाद ये कोलेज फिर से गूंज रहा था | दादाजी भी देख रहे थे की सरगम आज सालो बाद वो अपने पूराने अंदाज में गा रही थी | वो खुश थी, सूरज की वजह से आज सालो बाद फिर से मानो कोलेज का सवेरा हुआ हो ऐसे पंछी भी अपने सूर में साथ देने लगे थे |

‘सा’ सूर से उसने जो धून रखी वो लाजवाब थी | फिर रज्जूने रे को अपने सूर मिलाया | ‘ग’ से गुंजा गाती थी वो सूर में नशा छा जाता था और आज झिलमिलने ऐसे ही वो सूर पेश किया | ‘मिले सूर मेरा तुम्हारा तो सूर बने हमारा’ उस गीत के जैसे ही ये सूर सप्तक अपने अपने सूर में लाजवाब सा अंदाज दे रहे थे |

सूरज को लगा की आगे ‘म’ सूर से मुस्ताक को गाना है मगर वो अभी तक नहीं आया था.... शायद गीत बिच में रुक जाएगा क्या ? सरगम समझ चुकी थी इसलिए ‘म’ से सूरज को आगे के सूर को पकड़ना ऐसा इशारा किया |

सूरज झिलमिल के बाद अपना सूर देने ही जा रहा था तभी मुस्ताक दौड़ के आया और अपने दोनों हाथ जोड़ के अपने सूर को संभाला | मुस्ताक सही वक्त पे आया था और दादाजी भी सबको साथ देख के खुश हो गए |

‘प’ से पावन और ‘ध’ से छोटी सी सुगमने भी सबका साथ दिया | सुगम भी श्रीधर और गुंजा के जैसे ही सुरीले स्वर में ऐसे गा रही थी की | उसके सूर से सब को लगा की आज श्रीधर और गुंजा दोनों सुगम के सूर से हमारा साथ दे रहे हो...! अब निहाल भी सुगम के पास आया और फिर आगे से अपना सूर संभाला | आखिर में सब एकसाथ मिलके उन सप्तक को कुछ देर ऐसे गाते रहे की वहा खड़े सब उनके सूरो के बहाव में बहने लगे | ये दोस्ती का उनका अपना सूर सप्तक था और ये सब विश्व के सबसे अच्छे और बहेतरीन संगीतकार थे.. |

सूर सप्तक ख़त्म होते ही सबसे पहली ताली की आवाज दादाजीने दी | सुगम और सरगमने देखा की दादाजी भी आज खुश थे तो वो दौड़ के उनके गले लग गए |

फिर तो सभी एकसाथ दादाजी के पैर छूने झुके | दादाजीने अपना हाथ सब के सर पर बारीबारी रखा | सूरज भी अपना सर झुकाकर पैरो में बैठा था | दादाजीने उसके सर भी अपना हाथ रखा तो सूरज अपने आंसू रोक नहीं पाया | दादाजी के पाँव पर उसके आंसू गीरने लगे थे | वो सालो से तरस गया था दादाजी के इन आशीर्वाद के लिए..! जब वो छोटा था और सूर में कोई गलती करता तो ऐसे ही पैर पकड़ लेता था की दादाजी उस पर गुस्सा न करे...!

दादाजी फिर बिना कुछ कहे वहां से निकल गए | उन्होंने सरगम को ईशारा करके इतना कहा की अब आगे की संगीत की डोर तुम्हारे ही हाथोमें है |

इधर सूरजने सभी छात्रो के साथ अपने दोस्तों का परिचय करवाया और आगे होनेवाली संगीत की विश्व प्रतियोगितामें यही सब आपको शिखायेंगे की हमें फिर से पुरे विश्वमें सबसे अव्वल कैसे आना है ?

सरगमने कोलेज के सभी छात्रोमें से जो सबसे बढ़िया थे उनका अलग लिस्ट बनाके रखा था और अब उनकी ट्रेनिंग आज से ही शुरू होने जा रही थी | सबके हिस्से के काम शुरू हो गए और मुस्ताकने जब सूरज को अकेले देखा तो कह दिया, ‘सूरज मुझे तुम अकेलेमें मिलना... तुमसे बेहद जरुरी बात कहनी है...!’

सूरज जिसका इंतज़ार कर रहा था वो मुस्ताक ही उसे मिलने को बेताब था ये सोचकर सूरज के अन्दर कई सवाल खड़े हो गए | कोलेज से थोडीदूरी पे एक कोफी शॉप थी | सूरजने मुस्ताक को उधर जाने का ईशारा किया | कुछ मिनीटो में दोनों उस कोफीशोप के एक टेबल पे मिले |

सूरज जैसे कुछ मालूम नहीं वैसे ही सामने बैठ गया | मुस्ताक सूरज से कुछ कहना चाहता था मगर शायद वो कह नहीं पा रहा था | उसने उसकी सजा... फिर क्या हुआ और कुछ इधर उधर के सवाल किये |

सूरज को लगा की मुस्ताक कुछ पहेलियाँ बना रहा है तो उसने धीरे से पूछा, ‘मुस्ताक तुमने उस रात म्युझिकल इंस्ट्रूमेंटमें ड्रग्स रखा क्यूँ ?’ तुम्हे ये पता था फिर भी मुझे फंसा कर तुम्हे क्या मिला..?’

सूरज के मूंह से ये सुनकर मुस्ताक चौंक गया और बोला, ‘ये किसने कहा...? वो मैंने नहीं किया...!! मुझे क्या पता..?’ उसकी जबान लड़खड़ाने लगी |

‘मुस्ताक... देख मुझे जो सजा काटनी थी वो मैं काट चुका हूँ | मुझे अब तुझसे कोई शिकायत नहीं है | मुझे केवल ये जानना है की अभी भी डी.के. और उसके आदमी मेरा पीछा कर रहे है उसकी वजह क्या है ?’ सूरजने जब डी.के. का नाम दिया तो मुस्ताक अपनी कुर्शी पर आधा खड़ा हो गया और बोला,

‘तुम डी.के. को कैसे जानते हो ?’

‘मुझसे अभी भी कोई चीज जुडी हुई है जो मेरा पीछा नहीं छोड़ रही है.... और वो चीज शायद तुम जानते हो...!’ सूरज अब मुस्ताक से सारी बाते निकालना चाहता था, जो उसकी जिन्दगी से साथ जुडी है |

‘वो मुझे नहीं पता...!’ मुस्ताक फिर खामोश बैठ गया |

‘इस्पेक्टर तेजधार भी तुम्हारा जिक्र कर रहे थे...! वे कह रहे थे की तुमने.....!’ सूरजने दूसरा तीर अंधेरेमे फेंका तो वो सीधा मुस्ताक को लगा हो ऐसे बैठ गया |

‘सूरज जब तुम्हे सब सच पता चल गया है तो सुनो की उसमे मेरे अकेले का हाथ नहीं था मेरे साथ.....!!!’ फिर जैसे जैसे सूरज को मुस्ताक उसकी जिन्दगी की कुछ सच्चाई कहने लगा तो वे सुनके सूरज हैरान हो गया |

‘ओह्ह्ह... माय गोड... तो ये हुआ था.....??’ सूरज के मुंह से आह निकल गई |

सूरज और मुस्ताक जो बाते कर रहे थे वो कोई और भी सुन रहा था वो इन दोनों को पता नहीं था |

क्रमश: .......