Dastane Ashq - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

दास्तान-ए-अश्क - 26

मेरे सभी प्यारे दोस्तों..
अश्क'
काफी लेट हुई है! उसके लिए क्षमा चाहता हूं कुछ तो मजबूरियां रही है मेरी जानता हूं कि आप सब मुझे समझेंगे! इस कहानी को जितना प्यार आप लोगों ने दिया है तो मैं भी अपना फर्ज समझता हूं कि कहानी को अपने आखरी मुकाम तक पहुंचाउ..! मुझे यकीन है आप लोग इस कहानी की नायिका के साथ आखरी मुकाम तक जुड़े रहेंगे...! फिर से आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया..!

दास्तान-ए-अश्क -26
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उस बड़ी कोठी का कलंक थी वह दर्द भरी आहे..! एक एक कोने से उठ रही किसी के रुदन की हिचकिया..!
"क्या किस्मत पाई थी उस औरत ने जो समाज की नजरों में वो उस घराने की शान थी..? पर उसकी बर्बादी को आज तक कोई नहीं देख पाया था! पल पल वो रोज मर रही थी!
उस दिन उसने जो मंजर देखा वह काफी खौफनाक और दिल दहलाने वाला था!
धीरे धीरे उसने जीने की उम्मीद छोड़ दी थी! मगर कहते हैं जो भी होता है अच्छे के लिए होता है!
'100 दिन सुनार के तो 1 दिन लोहार का' यह कहावत सच साबीत हुई उस दिन!
ठीक किचन के सामने उसका रूम था! उस रूम में कितने दिन से वो बेड पर थी उसे पता ही नहीं था! आज कुछ ऐसा हुआ था जिससे वह सोई नहीं थी उसकी आंखें खुली थी! बहुत दिनों के बाद उसने सूरज की किरने देखी ! सुबह का सुहावना मंजर देखा था!
और देखा कुछ ऐसा जिसनें उसके अंदर जीने की चाह को दुबारा बढ़ावा दे दिया!
किचन का दृश्य था!
गुड़िया सिकुड़ कर एक तरफ कोने में बैठी थी! उसके कपड़े बहुत ही मेले थे!
तकरीबन 13 साल की होगी वह!
उसकी बगल में ही वो कामवाली खड़ी थी!
जिसने शॉर्ट कुर्ता पहन रखा था!
उसके कट बालों में चमक थी!
पैर आधे नंगे थे!
गुड़िया के बाल पकड़कर खींचते हुए वह चिल्लाई!
"तुझे बोला ना चावल बनाए हैं उसे खा कर सो जा..! कितनी बार बोला है मुझे परेशान मत किया कर..! तेरी मां अब कभी उठने वाली नहीं है ! शुक्र मनाओ कि तुम दोनों भाई बहन के नखरे में झेलती हूं!
उसके गालों पर चिंमटा भरा उसने!
गुड़िया अपनी जगह पर खडी हो गई !
उसके पैर बुरी तरह कांप रहे थे!
"चुपचाप खा ले ! तेरे बाप को कुछ भी बताया तो उसके जाने के बाद बहुत मारूंगी तुझे..!"
गुड़िया सहम कर रह गई थी!
उसने जो दृश्य देखा वह उसके दिल को गहरी चोट पहुंचा गया!
अपने बच्चों की कैसी हालत थी ?
एक नौकरानी अपने घर के किचन में खडी होकर गुड़िया के साथ ऐसा सलूक क्यों कर रही थी..? उसे इतना हक दिया किसने..?"
धीरे से वो खड़ी हुई ! शरीर बहुत भारी हो गया था!
यह दवाईयों का असर था जिसकी वजह से शरीर फूल गया था! क्या हुआ था उसके साथ..? कुछ भी याद नहीं आ रहा था! फिलहाल दिमाग पर जोर दिए बगैर उसने दीवार को दोनों हाथों से पकड़ा और संभल कर खड़ी हो गई!
वह किचन में आई!
"क्यों मार रही है गुड़िया को..? उसको खाना क्यों नहीं बना कर दिया तूने..? क्यों डांट रही थी उसे तु..? "
नौकरानी को यकीन ही नहीं हो रहा था कैसे हो सकता है? मालकिन खड़ी कैसे हो गई और किचन में कैसे पहुंची..?
उसे याद आया रात को दवाई देना भूल गई थी! बड़ी गलती हो गई थी उससे!
चुपचाप वह नजरें झुका कर खड़ी रही!
कामवाली कुछ भी ना बोली तो वो समझ गई कि ये कोई बड़ा ही गेम खेल रही है!
उसने जोर से एक थप्पड़ उसके गाल पर लगा दिया!
"चल निकल जा मेरे घर से..! आज के बाद इस घर में तू नजर नहीं आनी चाहिए..!
वरना मार डालूंगी तुझे मैं..!"
गुस्से के कारण उसकी सांस काफी तेज हो गई थी! बदन कांपने लगा था!
अपना भांड़ा फूटते ही कामवाली चली गई!
उसने गुडिया को अपने सीने से लगा लिया!
उसके चेहरे को जगह-जगह से वह चूमने लगी थी!
अपने बच्चों का ऐसा हाल देख कर उसके अंदर छूपी एक 'मां' फिर से जाग उठी! मौत की कगार पर खड़ी उस मां को जिंदगी जीने की फिर से तलब लगी!
गुड़िया को अपने बेड पर ले गई!
सारा माजरा समझना चाहती थी वो!
आखिर क्या हो रहा था इस घर में अपने बच्चों के साथ..? सारी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाकर इस घर का मालिक बच्चों का बाप कहां रहता था..? सब कुछ जानना जरूरी हो गया था!
सिर बहुत ही भारी था ! चक्कर आ रहे थे!
संभाल कर वो अपनी बच्ची के साथ बेड पर बैठी..!
"क्या हुआ गुडिया..? सारंग कहां गया..?
वो तुझे क्यों मार रही थी..?
उसने गुड़िया के माथे पर हाथ फेरा तो वो सिसक ने लगी!
मां वह मुझे खाना बनाकर नहीं दे रही थी..! तुम तो बीमार हो ! सोई रहती हो! तुम्हें कुछ भी पता नहीं है वो हमें बहुत मारती है मां..!"
उसकी आंखे बरस पडी!
"हे राम ये तुमने कैसे दिन दिखाए हैं हमें..? मेरे बच्चों पर एक नौकरानी जुल्म ढा रही है और तू देख रहा है..?"
"मां.. मेरी कमर बहुत टूट रही है! चक्कर आ रहे हैं ! पता नहीं क्यों आज मेरे कपड़े खराब हो गए हैं..! खून के धब्बे लगे हैं!
मेरा पेट बहुत दुख रहा है मां..! मेरे गंदे कपड़ां को उसने देख लिया और वो मुझ पर चिल्लाई थी..!
"मैं तुम्हारे गंदे कपड़े नहीं धोने वाली..!"
इतना कहकर उसने मुझे बहुत मारा मां..!
फिर उसने मुझे बताया कि मुझे वहां कोई जख्म हो गया है! इसकी वजह से खून आ रहा है! मैं काफी डर गई थी मां..!
"ओह मेरी गुड़िया..! मेरी बच्ची..! कुछ नहीं हुआ है तुझे..! तु बिल्कुल ठीक है..!
आज के बाद उस मनहूस का इस घर में साया भी नहीं पड़ेगा..!"
" वह गुड़िया को सहला रही थी कि उसकी नजरें कैलेंडर पर पड़ी!
'अप्रैल महीना था!
"आज कौन सी तारीख है .?"
"एक तारिख है मां.. एक अप्रैल..!
उसके दिमाग को एक धक्का लगा! जैसे कि एक भूचाल आया! सर चकराने लगा!
वह गिरने ही वाली थी कि गुड़िया चीख उठी !
"मां ...!!, क्या हुआ है तुम्हें ..? प्लीज तुम फिर से मत सो जाना..! मुझे उसके साथ नहीं रहना है ..! वो खाना नहीं देती हमें..! टाइम पर हमारे कपड़े भी नहीं धोती है वो..! बहोत मारती है वो मा प्लीज तुम सोना मत..!
वह सहमी हुई निगाहों से कैलेंडर को देख रही थी! जैसे उसके मन को एक पल के लिए लगा गुड़िया मजाक कर रही है..!
पर नहीं बच्ची सही थी!
1 साल गुजर गया था! एक ऐसा साल जो उसकी जिंदगी से मिटा दिया गया था! मिट गया था पूरी तरह..!
जिसका एक एक पल वह कैसे जी गई उसे पता ही नहीं था..! बिल्कुल ब्लैक था! उसे भारी सदमा लगा..!
बच्ची से सब जानने उसने मन को मजबूत किया!
"अच्छा मुझे बताओ गुड़िया ये काम वाली अपने घर में क्या कर रही है..? उसको रहने के लिए तो बाहर कमरा है ना..?"
"मां..! किसी को कुछ मत बताना..!"
गुड़िया ने उसके कान में फुसफूसाते हुए कहा!
"वो रात को पापा की बेड पर जा कर सो जाती है..!"
"माय गॉड..!"
बच्ची का एक एक शब्द उसके दिमाग पर हथौड़े की तरह लगा!
वो इंसान जो उसके पति के रूप में मिला था उसे वो गिरा हुआ तो था ही मगर अपने ही घर में बच्चों के सामने ये सब करेगा अंदाजा नहीं था उसे..!
गुड़िया को उसने अपने सीने से कस कर दबा लिया! अब किसी भी हाल में वह अपने बच्चों को अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी!
उसे याद आया! रात को दवाई नहीं ली थी! बदन पुरी तरह झकड़ा हुआ था! कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था! सिर चकरा रहा था पूरे बॉडी में दर्द उठा था!
"मां तुम्हें दवाई दु.. वो जो काम वाली आंटी रोज तुम्हें देती है..! "
"नहीं..!"
"वो डर गई..! अगर फिर उसने दवाई लेना शुरू किया तो जिंदगी में कभी उजाला नहीं देख पाएगी! कुछ भी हो अब से दवाई नहीं लेनी है जब तक डॉक्टर को जाकर खुद ना मिले.!
जीने की उम्मीद जगी थी अपने बच्चों के लिए एक मां मौत से संघर्ष करने लगी!
उसकी आंखों में आश्चर्य का पहाड़ था!
और आंखों में वो मंजर !
जिस दिन जेठ की बदसलूकी की वजह से उसने फिनायल पी ली थी!
( क्रमशः)