manchaha - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

मनचाहा - 11

निशा के घर पहुंचने में थोड़ी देर हो गई थी। वैसे तो हमारा घर सिविल लाइन मे है और निशा का घर मोडल टाउन में तो पहुंच ने मे ज्यादा टाइम नहीं लगता। पर रास्ते में एक एक्सिडेंट हुआ था। किसी कार और एक्टिवा का, तो दोनों के मालिक बिच रास्ते ट्राफिक जाम करके झगड़ा कर रहे थे। बाद में पुलिस आइ और दोनों के वेहिकल्स हटवाकर पुलिसथाने ले गए।

निशा का बंगला बहुत बड़ा था। और क्यों न हो एक बिल्डर का घर जो है। एंट्रेंस फर्स्ट क्लास, एलिवेशन फर्स्ट क्लास, गार्डन फर्स्ट क्लास। बाहरी हिस्से से पता चलता है अंदर तो आलिशान ही होगा। जब हम पहुंचे तो निशा हमारी राह देखते बाहर ही आ रही थी। हम देरी का कारण बताते हुए घर में दाखिल हुए। घर में पहले बड़ा ड्राइंग रूम था पूजा वही पर चल रही थी। ड्राइंग रूम के बाइ ओर बडा डाइनिंग एरिया था और किचन भी। दाई ओर एक बेडरूम और गेस्ट रूम था। ड्राइंग रूम और डाइनिंग रूम के एरीया की हाइट्स शायद पंद्रह से सोलह फिट होगी, नीचे के दूसरे रूम की भी यही हाइट्स होगी। ड्राइंग रूम में से ही एक कौने से उपरी मंजिल की सीढ़ीयां थी, उपर गलियारा पड़ रहा था तो ऊपर के रूम दिखते नहीं थे। घर के नोकरो को आने जाने के लिए किचन से ही एंट्री दी गई थी।

पूजा में काफी लोग आए हुए थे। हमारे सब फ्रेंड्स भी आ चूके थे जिसमें साकेत और राजा भी थे। मीना, काव्या और रीधीमा साकेत और राजा के साथ कार में आए थे। अविनाश सर के फ्रेंड्स भी थे। हम सबको मिलाकर करिब तीस-चालीस महमान आ चूके थे। निशा हमें अपने फ्रेंड्स के साथ बिठा के कुछ काम के लिए चली गई। सब दिख रहे थे पर अविनाश सर कही दिख नहीं रहे थे। आगे की पूजा हो गई थी पर सत्यनारायण की कथा अब शुरू होने वाली थी।

काव्या- किसे ढूंढ रही है?
मैं- किसीको भी नहीं। (एक जासूस? घर पर है और दूसरी यह ?)
काव्या- अच्छा, मुझे लगा तेरी नज़र किसीको ढूंढ रही है।
मैं- किसीको नहीं ढूंढ रही बाबा, घर देख रही हुं। बहुत अच्छा बनाया है और सजाया भी।
दिशा- हां, घर तो अच्छा है निशा का। (कोहनी मारते हुए) ए पाखि, देख अवि आ गया।
मेरी नज़र उन पर गई। वे एक नोकर को हमारी ओर लेकर आ रहे थे। जिसके हाथ में पानी के ग्लास की ट्रे थी।
काव्या- अविनाश सर हमने पानी पी लिया है।
अवि- हाय पाखि, हाय दिशा! काव्या आप सब ने पानी पी लिया पर इन दोनों को तो पीने दो ?।
मैं- थेंक्यु अ..अ..अवि। (अवि बोलते बोलते शर्म सी आ गई☺️) अंकल और आंटी कहा है?
अवि- वो अभी आगे की पूजा करके फ्रेश होने चले गए। आप मिले नहीं?
मैं- जी नहीं।
रीधीमा- अभी हम सब मिले तब तू कहां थी?
दिशा- महोतरमा तब हम लोग नहीं आए थे।
अवि- कोई बात नहीं, पूजा खत्म होते मिल लेना।
दिशा- ये निशा कहा चली गई?
अवि- यही कही होगी भेजता हुं।

निशा हमारे साथ आकर बैठ गई। हम सब सत्यनारायण की कथा सुनने लगे। घर के नौकर सबको चाय- कोफि सर्व कर रहे थे। कथाकार बहुत ही अच्छे दृष्टांत देकर कथा के अध्याय सुना रहे थे। माहोल भक्तिमय हो गया था। कथा के आखिरी तीन अध्याय शेष रहे थे और मुझे बाथरूम जाना था। काफी लोग आ चुके थे तो उन सबके बीच उठना अच्छा नहीं लग रहा था। जैसे तैसे एक अध्याय खत्म हुआ अब तो जाना पड़ेगा। मैंने निशा से कहा कि- वाशरूम जाना पड़ेगा।
निशा ने कहा- निचे भीड़ ज्यादा है एक काम कर तुम उपर मेरे कमरे में चली जाओ। उपर से दूसरा कमरा मेरा है।
मैं उठकर उपर चली गई।

उपर चार बेडरूम थे। दोनों साइड दो-दो, सामने की तरफ फेमिली रूम था। अब किस तरफ का रूम है यह तो निशा ने बताया ही नहीं। मैं दाई ओर वाले दूसरे कमरे में चली गई। रुम काफी बड़ा था। रूम को बहुत ही सलीके से सजाया गया था। हरेक चीज अपनी जगह पर परफेक्ट रखी गई थी। कमरे के अंदर सामने की दीवार के दोनों छोर पर एक-एक दरवाजे थे , दोनो एक जैसे ही। अब वाशरूम कौनसा होगा। दोनों खोलकर देख लेती हुं एक तो वाशरूम होगा हीं। पहला दरवाजा जो कि स्लाइडिंग था उसे खोला तो बाहर ओपन टेरेस था। जहां एक तरफ वोल गार्डन बनाया था। जिसके उपर थोड़ी छत बनाई गई थी। टेरेस पर छोटा कोफि टेबल भी बनाया गया था। फर्श पर आर्टिफिशियल लोन ‌लगाया गया था। उस दरवाजे को वापस बंद करके दूसरे दरवाजे की ओर बढ़ी। दरवाजे को खोलकर मैं अंदर जा रही थी और अवि अंदर से बाहर आ रहे थे जिससे दोनों टकरा गए। मेरी टक्कर तो उन्हें कम लगीं होगी पर उनकी टक्कर से में पिछे गिरने लगी। मुझे बचाने के चक्कर में वो भी अपना संतुलन खोकर मुझ पर ही आ गिरे। वो तो अच्छा था कि फर्श पर ‌कालिन बिछा हुआ था तो गिरने की मार कम पड़ी।

मै- I'm so sorry, मुझे पता नहीं था आप अंदर है। म..म.. मैं..
मैं आगे बोल ही ‌न पाई। अवि एकटक मुझे ही देखे जा रहे थे। मैं बोलना चाहती थी पर मुंह से कुछ निकला ही नहीं। दोनों एक-दूसरे को देखे जा रहे थे। फिर मुझे ख्याल आया ओह नो.. उन्होंने अपनी शर्ट भी नहीं पहनी रखी है और मैं उनको पकड़े हुए हुं?
मैंने उनसे कहा- अवि please हटिए।
मेरे बोलने का उन पर कोई असर ही नहीं हुआ। मैंने फिर से कहा- अवि...
पर ये क्या, ये सून भी रहे है या नहीं? तभी कमरे में रविभाई आ गए। ओ गोड, अब ये क्या सोचेंगे मेरे बारे में?
रविभाई- (जरा जोर से) भाई अवि उठने का इरादा है या...
वो हड़बड़ा कर उठ गए। कहने लगे,- नहीं यार वो गलती से गिर गए। फिर अपना कुर्ता पहनने लगे।
मैं- माफ करना, मुझे लगा यह निशा का कमरा है।
अवि- यह निशा का ही कमरा है। मेरा कमरा सामने वाला है। वो तो ये मेरे बाथरूम में गया हुआ था।
रवि- यह बता, तु यहा कर क्या रहा था?
अवि- वो शाम ने चाय गिरा दी थी कुर्ते पर तो वही बदलने आया था। (शाम घर के नौकर का नाम है) मुझे पता था तु बाथरूम में हैं तो मैं दूसरा कुर्ता लेकर यहां आ गया।
अब मुझसे खड़ा नहीं रहा जा रहा था तो दोनों की बातों के बीच में वाशरूम जाकर आ गई। अब कुछ सुनने समझने की शक्ति मुझमें आई। मैं जब बाहर आई तो अवि रविभाई को चाय वाला कुर्ता दिखा रहे थे।
मैं- अरे इसमें तो दाग लग गया।
अवि- हा मेरा फेवरेट कुर्ता है पर कोई नी, कल मम्मी से धुलवा दूंगा।
मैं- अरे नहीं, अभी नहीं धोया तो कल के बाद आप यह कुर्ता कभी नहीं पहन पाएंगे। चाय का दाग सूखने पर नहीं जायेगा।
अवि- अभी तो सब काम में लगे पड़े हैं साफ किससे करवाउ? निशा को बुला लेता हुं।
मैं- रुकिए, में साफ कर देती हुं।
रविभाई- अरे नहीं पाखि, ये कर लेगा अपने आप।
मैं- कोई बात नहीं, में कुर्ता खराब नहीं करुंगी दिजिए।
अवि का कुर्ता लेकर में बाथरूम में चली गई।
मेरे जाते ही दोनों बातें करने लगे।
रवि- ये तु मेरी बहन के साथ क्या कर रहा था? मैंने देखा वो तुझे आवाज लगा रही तब भी तु बुत बना रहा।
अवि- अभी तु चुप रहना यार मरवाएगा क्या पाखि के सामने।

नल में गरम पानी आ रहा था तो दाग लगे भाग को गिला करके वहां पड़ा साबुन लगा दिया।दाग कुछ देर में ही छूट गया। मैं बाहर आकर उसे सुखाने रूम के टेरेस में चली गई। वहां मैंने कपड़े सुखाने का स्टेंड देखा था। मेरे वापस आने पर तीनों नीचे आए।
कथा खत्म हो गई थी और आरती की तैयारी हो रहीं थी। सब आगे की ओर आ गए थे तो मैं पिछे जहां बैठी थी वहां नहीं जा पाई। अवि वापस किचन की ओर चले गए। मैं रविभाई के साथ आगे पूजा स्थल के पास आ गई। निशा अपने मम्मी पापा के साथ आरती के लिए खड़ी हो गई थी। आंटीजी ने अवि को आवाज दी पर वो कही दिखे नहीं।
आंटीजी- ये लड़का भी ना काम के वक्त कभी दिखता ही नहीं।
अंकलजी- आ जायेगा, होगा यही कही। पंडितजी आप आरती शुरू करवाए।

पंडितजी ने आरती शुरू करवाई। सब बारी-बारी आरती का थाल लेकर आरती उतार रहे थे। आरती आधी खत्म हो गई थी और अवि कही दिख नहीं रहे थे। आगे होने की वजह से आरती के लिए आंटीजी ने मुझे भी बुलाया। आरती अब खत्म होने आई थी। जैसे मैंने पूजा का थाल हाथ में पकड़ा तभी न जाने और एक हाथ आ गया थाल पकड़ने। एकदम से हाथ को देखकर थोड़ा डर गइ। ओह...वो हाथ अवि का था। मैंने उनसे धीरे से कहा की,- आपने डरा दिया मुझे।मैंने तिरछी नजर से आंटीजी के सामने देखा कही वे कुछ गलत न समझ ले, पर उनके चहरे पर स्माइल थी। शायद अवि को देखकर। दो लाइन में ही आरती खत्म हो गई। पंडितजी ने मुझसे पूजा में रखी विष्णु भगवान की मूर्ति को आरती देने को कहा। मैंने निशा और आंटीजी के सामने देखा उन्होंने ने स्माइल से सहमति में सिर हिलाया। लगता है निशा ने आंटीजी को मेरे बारे में बता दिया है। भगवान को आरती देकर पंडितजी को आरती दी और थाल लेकर आंटीजी के पास आइ। उनको आरती देकर उनके और अंकलजी के पैर छुए।
अवि ‌भी मेरे साथ आकर खड़े हों गए। अंकलजी ने आंटीजी के कान ‌मे कुछ कहां और दोनों मेरे सामने देख हंसने लगे।

ये क्या सोच रहे हैं मेरे बारे में मुझे तो घबराहट हो रही है। घबराहट की वजह से आरती का थाल गिरने वाला था तभी अवि ने थाल के साथ मेरे हाथ भी पकड़ लिए। मैंने थाल उन्हें पकड़ाया और दिशा, काव्या सब जहां थें वहां चली गई।

मीना- पाखि लकि है तु, भगवान की आरती का लाभ मिल गया।
मैं- हां, बस सत्यनारायण की कृपा आज मुझ पर बरस गई।
उस वक़्त पता नहीं था सच में उनकी कृपा बरसने वाली है।
दिशा- बस अब प्रसाद मिल जाए। भुख के मारे मेरी जान जा रही है अब।
निशा- हल्लो फ्रेंड्स, बोर तो नहीं हो रहे?
दिशा- अरे नहीं, बोर तो नहीं पर भूखे जरूर है। ?
निशा- देख अभी साढ़े छः बज गए हैं और सात बजे डिनर स्टार्ट हो जाएगा। मेरी भुक्कड़, तेरी पसंद का खाना है पेट भरकर खा लेना।
दिशा- थेंक गोड, वरना मैं ज्यादा देर भुखी रहती तो बेहोश हो जाती।
निशा- डिनर बाहर लोन में है तो मजे से खाना।
राजा- निशा तुम्हें शायद आंटी बुला रहे हैं।

निशा के जाने के बाद हम सब गप्पे लड़ाने बैठ गए। राजा ने एक से बढ़कर एक जोक्स सुनाए। सब हंस-हंस के लोटपोट हो गए। राजा दिशा के पास बैठा था, जब-तक जोक्स कहा बेचारा उसके हाथ से पीठ पर मार खाता रहा। दिशा की आदत थी हंसते वक्त किसी की पीठ पर मारना।?
काव्या- राजा, सोने से पहले मम्मी से पीठ पर बाम मलवा देना।?
यह सून के सब फिर से हस पड़े।
रीधीमा- guys, बस ये साढ़े चार साल यूंही हंसते-खेलते खत्म हो जाए तो मजा आ जाए।
मीना- साढ़े चार नहीं साढ़े पांच।
रीधीमा- पता है, एक साल इन्टर्नशीप साथ थोड़ी न होगी।
मीना- हां, ये बात तो है।
दिशा- चलों कसम खालों सब, कोलेज खत्म होने तक कभी कोई इस ग्रुप से निकलेगा नहीं। और कोलेज खत्म होने के बाद सब एक-दूसरे से कोंटेक्ट बनाएं रखेंगे।
सब ने साथ में एक-दूसरे के हाथ पर हाथ रखकर कसम खाइ। कोई भी मुसीबत हो एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे।?

क्रमशः

फ्रेंड्स अगर आपको मेरी कहानी अच्छी लगे तो कमेंट्स और रेटिंग्स जरुर दे।