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दास्तान-ए-अश्क - 13

'   कहीं चोट आई थी मुझे
कहीं जुल्मों का मारा था
मजमा था दिल की कशिश का
कहीं उसका सहारा था'

              ***  ****   ***

(दास्तान के अगले पार्ट में हमने देखा कि वह नरेंदर से मिलने जाती है तो नरेंदर उसकी बातें सुनकर गुस्सा हो जाता है उसको कस के पकड़ता है.. अब आगे)

नरेंद्र का गुस्सा उसके शब्दों में उतर आता है !
"मैं तुम्हारे जितना बेवका नहीं हुं! पत्थर दिल भी नहीं हूं!
मैने तुमसे प्यार किया है!  सपने में मैंने जो तुम्हारी छवि बना रखी है उस स्थान पर ना किसी और के लिए जगह है ना होगी! तुम ने शादी कर ली है अब कुछ भी करो , लेकिन मुझसे इस बात की उम्मीद मत करना कि मैं तूम्है छोड़कर किसी और का हो पाऊंगा!
उसके दिल से कुछ दर्द भर अल्फाज निकलते है!

"कैसे छोड दु मैं तुजसे प्यार करना
तु किस्मत मे नही पर दिल मे तो है!
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वो तडप उठती है!

उसके ईस अंदाज से.!
वो अपना हाथ छुडाने की कोशिश करती है!
पर नरेंदर कसकर पकड लेता है!
वो चीख उठती है!
"छोडो नरेंदर.. छोडो मुझे दर्द हो रहा है!"
उसकी आंखे भर आती है!
नरेंदर उसकी बांहे छोड देता है!
उसके तीखे तेरव देखने को मिलते है!
"अब मेरे पकडने से तुझे दर्द भी होने लगा?"
मगर उस जालिम को ये कहां पता था जहां से उसने पकडा था वहीं एक गहेरा जख्म पहेले से मौझुद था!
उसको इस बात की भनक ही ना लगती अगर प्रीति पास आकर उस बात का जिक्र ना करती तो!
"भैया..  दीदी के शरीर पर बहोत जख्म है!
प्लीज आप उसको तंग मत करो!"
नरेंदर हक्का- बक्का सा रह जाता है ! वो बड़ी हैरानी से उसे देखता हैं !
"क्या हुआ? कैसे ज़ख्म है? "
उसकी आवाज नरम हो जाती हैं!
प्रीति के सामने गुस्से से आंखें तरेर कर वो घबराकर बोलती है!
"कुछ नहीं हुआ मुझे नरेन्दर ! छोटा सा एक्सीडेंट हो गया था ससुराल मे..  जरा सी चोट आई हैं!"
"नही भैया..!"
प्रीति जैसे सब सच बताने को आमादा थी!
"

दीदी के साथ बहोत हेवानियत बरती गई है! "


वो प्रीति पर गुस्सा करती है!
"तुम्हें मैंने मना किया था ना कुछ भी बताने को ? तुम सब  लोग क्यो मेरी जान के पीछे  पड़े हो? क्यो नही छोड देते मुझे मेरे हालात पर? मैं तंग आ गई हूं इस दुनिया से सब से! जीना ही नही चाहती मैं!"
उसकी आवाज दर्द से दबी हुई है!
उसकी अटक रही सांसे देखकर नरेन्दर भीतर तक हील जाता है!
उसका गुस्सा नरमी मे तब्दिल हो जाता है ! दिल को झटका लगता है!
"ऐसा क्या हुआ है तुम्हारे साथ बोलो? प्लीज मुझे बताओ नरेंदर लगभग चीख उठता है!"
"कुछ नहीं हुआ नरेंदर ! तूम छोड़ दो मुझे!
अगर तुमने मुझे कभी सच्चा प्रेम किया है तो मेरी एक बात मानोगे? वादा करो कि आज के बाद ऐसी बेहूदा हरकत नहीं करोगे... ना अपने आप को किसी प्रकार की हानि पहुंचाओगे! जिससे कि मेरी परेशानियां बढे और मैं खुद को भी दोषी मानने लगु!
तुम्हारा दिल दुखा कर मैंने बहुत बड़ी सजा भुक्ति है! अब और कुछ सहने की क्षमता नहीं है मुझ में!"

उसकी आवाज किसी की भी रूह में सीधी उतर जाए ऐसी थी उसकी आंखें छलक उठी थी!
नरेंद्र की आंखें सवालिया निगाहों से प्रीति को देखती है!
उसने अपने बदन पर लपटे रखी  शॉल को प्रीति खींच लेती है!
जगह जगह पर ज़ख्म मौजूद थे! जगह जगह पर लहू रिजता था!
उसकी ऐसी हालत देखकर नरेंदर पिघल जाता है! उसका मन उद्विग्न हो जाता है!
जैसे उसके बदन पर लगे घाव का दर्द वह खुद महसूस कर रहा था ! हौले से उसके करीब जाकर वह शाल उस पर लपेट देता है!
"यह सब कैसे हुआ है ? तू मुझे बताती क्यों नहीं ? क्या छुपा रही है? तुझे मेरी कसम है क्या हुआ है बता?  मैं सुनना चाहता हूं ! जानना चाहता हूं कि तुझे इस तरह जख्मी करने की जुर्रत किसने की है?
वह तड़प उठता है ! उसकी आंखों से भी लहू बरसता है!
"तुम  जानना चाहते हो ना नरेंदर की ये किसने किया ? तो सुनो!
यह सब मेरे पति ने किया है! तुमने यही कहा था ना कि पिछली रात में अपने पति के साथ बहुत खुश होंउगी? तो अब ये तुम ही देख लो मेरी खुशी की परछाइयां! जो अपने आप में एक कहानी बता रही है!
नरेंद्र के जेहन में जैसे तूफान उठा था ! आंखों के आगे अंधेरा सा छाने लगा!

उसका अहंकार, गुस्सा  और तीखे तेवर, नफरत सबकुछ तिनके की तरह बिखर गया था!
शेष रह गया था उसके प्रति उसका बेशुमार प्यार जो शुरू से ही वह उसे करता था!
नरेंदर दो कदम आगे बढ़कर उसे अपने आलिंगन में भर लेता है!
पता नहीं क्यों इस पल नरेंद्र उसे बेगाना नहीं लगता! वो कसकर उसे पकड़ लेती है! उसके सीने में अपना मुंह छुपा कर वह बहुत रोती है ! झार झार हो जाती है!
नरेंदर धीमे धीमे उसका सर सहलाता है!
"मत रो प्लीज यार ! तू मत रो ! मैं तुझे इस तरह रोता बिलखता नहीं देख सकता हूं!"
पर आज वह दिल खोलकर रो लेना चाहती थी! उससे डर था की फिर रोने के लिए ये कंधा मिलेगा या नहीं!
"कहते हैं स्पर्श  मे बहुत ताकत होती है!
एक स्पर्श ही तो है जिसके जरिए इंसान ना बोली हुई बातें समझ जाता है!
एक जानवर भी स्पर्श को अच्छी तरह समझता है कौन उसको चाहता है और कौन उसे नफरत करता है!

एक वह स्पर्श भी तो था जिसने उसे छूकर उसके मन में दिलो दिमाग में नफरत के बीज बोए थे! वह स्पर्श ही तो था जिसने उसे जख्मी कर दिया था!
दूसरी ओर  नरेंद्र का  सहलाता हुआ हाथ उसे जैसे ताकत दे रहा था!  उसके जख्मों की मरहम बन रहा था!
नरेंद्र के बाहों में वह खो गई थी! आज बहुत सुकून था उसे!
फिर अचानक वह सहम जाती है अपने आप को संभाल कर पीछे हट जाती है!
"नहीं नरेंदर नहीं मैं किसी भी तरीके से तुम्हारे लायक नहीं हूं मेरी शादी हो चुकी है!
पागल पवित्रता को शरीर के माध्यम से नहीं नापा जाता!
तुम पहले भी मेरे काबिल थी और आज भी मेरे काबिल ही हो..!

मैं आज भी तुम्हारा रास्ता देख रहा हूं ! तुम छोड़ क्यों नहीं देती उस आदमी को ? तु मुझसे शादी कर ले  मैं वादा करता हूं कि तेरी जिंदगी की उस काली रात को कभी भी तेरी आंखों में उभरने नहीं दूंगा!"


नरेंद्र की बातें सुनकर उसके मन में एक नई आशा की किरण जाग उठती है!
उसकी जिंदगी को जख्म देकर तार-तार करने वाले उस इंसान के पास ना जाने का उसका निश्चय और भी द्रढ्ढ हो जाता है!

मन ही मन वह सोचते हैं अगर पापा जी उसके बारे में परेशान होंगे तो साफ-साफ  उन्हें बोल देगी की वो किसी और से प्रेम करती है! वह उसके साथ शादी करना चाहती है! वह भी उसका रस्ता देख रहा है!
कुछ ख्याल उसके मन में प्रतिरोध करके दिल को दहला देते हैं !
"क्या यह सही होगा ? ऐसा हो सकता है?
यह समाज अब उसे ऐसा नहीं करने देगा!
परिवार ने ही उसकी बलि चढ़ाई है ! परिवार ही समाज में अपनी आबरू बचाने के लिए उसकी बलि को यथार्थ ठहरा देगा!
उसमें उसकी अपनी इच्छाओं का कोई मोल नहीं था!
वह हताश हो जाती है नरेंद्र के साथ जिंदगी की नई उड़ान भरने की उम्मीद  जगी! मगर वह उम्मीद तो झांसा देने वाली थी! हां शादी से पहले का फैसला होता तो और बात थी!
पर अब तो वह खुद ही नहीं चाहेगी कि
नरेंद्र से किसी भी तरह की हमदर्दी उसे मीले!
एक कटु एक्सपीरियंस उसको हो गया था! जिसमें उसके मन को पूरी तरह झकझोर कर रख दिया था!
को एकदम नरेंद्र को धक्का देकर पीछे हट जाती है!  जैसे किसी ख्वाब को हकीकत की जिंदगी से अवगत कराना चाहती हो!
जब वास्तविकता उसके मन में कत्थक करने लगती है तो वह पिघल जाती है टूटी हुई बेबस आवाज उसके मुख से निकलती है!
"नहीं नरेंद्र अब यह मुमकिन नहीं है! मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती!
हां एक बात तय है मैं उस आदमी के साथ देना नहीं चाहती जिसने मेरी जिंदगी को तबाह किया है!
जिंदगी में अपने पैरों पर खड़ी हो जाउंगी! आदमी की परछाई तक मुझ पर नहीं पड़ने दूंगी!
और रही बात तुम्हारी तो मुझे किसी की हमदर्दी नहीं चाहिए!
अगर समाज से बगावत कर के पहले शादी कर लेते तो बात और थी!
"तु पागल हो चुकी है कैसी बातें करती है तू? मै पहले भी तुझे ईतना ही प्रेम करता था और आज भी उतना ही करता हुं! यकिन मान ये सिर्फ प्यार है हमदर्दी नही !
नहीं नरेंद्र यह सब कहने की बातें हैं
मेरे जख्म और मेरी दुर्दशा देखकर तुझे सिर्फ मुझ पर तरस आ सकता है प्यार नही!
और मुझ पर कोई तरह खाए वह मुझे बिल्कुल भी गवारा नहीं है!
अब तो प्रेम शब्द से ही मुझे नफरत हो गई है! मुझे किसी आदमी की जरूरत नहीं है! ना ही किसी के सहारे की!
तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो !लीव मी अलोन!
नरेंद्र उसका हाथ पकड़ कर तड़प उठता है!
तुम ऐसा कैसे सोच सकती है? कैसी रुखी बाते करती हो तुम? मेरी आंखों में देख उसमें तुझे क्या नजर आता है ? कोई तरस कोई हमदर्दी नहीं है मेरे मन में तेरे लिये?
नरेंद्र उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों मे भरकर उसकी आंखों में आंखें डाल कर कहता है
मेरी आंखों को पढ़ सकती है शो देखने उन्हें क्या नजर आता है मैं जानता हूं कि तू एक बड़े हादसे से गुजरी है तेरा दिमाग सदमे में है और वह सब तुझे किसी गैर से नहीं अपने हमसफर से मिला है!
मैं तुझे मजबूर नहीं करूंगा अभी तेरी उम्र ही क्या है  सिर्फ 15- 16 साल..!
तु ऐसा कर पढाई पूरी कर अपनी..!
अपने पांव पर खडी हो जा..! तब तक तु बालीग हो जायेगी..! फिर हम दोनो जैसे तु कहेगी वैसे शादी करेंगे..! यकिन मान मै तेरा वेईट करुंगा..! ईस समय तुजे कोई भी बात मेरा वेईट करने नई देगी..! समय खुद ब खुद मेरे प्यार की सच्चाई तेरे सामने लाकर रख देगा..! 
नरेन्दर उसके माथे पर ऐक गहरा चुम्बन देता हैं! और उसे अपने सीने से लगा लेता है! एक बात थी की आज उसके सीने से लग कर वो उसे महफूज फील करती है!
खुद को सिक्योर फील करती है! उसे ऐसा लगता है जैसे किसी घरती ने किसी आकाश को अपने आलिंगन मे ले लिया हो!  वो चाहकर भी उससे अलग नही हो पाती! वो धीमे धीमे उसका सिर सहेलाता है! कुछ पल के बाद नरेंदर उसे अपने सीने से अलग कर देता है!
जाओ अब तुम घर जाओ देखो !अंधेरा होने वाला है! तुम्हारे घर वाले तुम्हारी फिक्र कर रहे होंगे!
लेकिन आज ना जाने क्यों नरेंद्र को छोड़कर उसे जाने का मन नहीं हो रहा था!
उसके मन में आज जैसे कोई नया अंकुर फूटा था दिल मे फिर हलचल हुई!
उसे ऐसा फील हो रहा था कि जैसे ही वह नरेंद्र को छोड़ कर चली जाएगी  उसके साथ फिर कोई ना कोई हादसा होगा!
स्त्री सहज लज्जा उसके आड़े आती है!
वह चाहकर भी नरेंद्र के सीने से नहीं लग पाती है लेकिन उसकी आंखों में उमड़ रहे भावनाओं के सैलाब को नरेंद्र पढ़ लेता है!
उसके करीब आकर देने से कहता है तुम जब भी चाहो मेरे पास आ सकते हो मैं खुले मन से हरहालमे तुम्हारा स्वागत करूंगा!
और मैं शादी नही करुंगा तुम्हारे बालिग होने तक राह तकूंगा...!
इतना वादा तो तुमसे कर सकता हूं ऐसा बोलकर नरेंद्र वहां से चुपचाप चला जाता है! उसके मन में समंदर जैसे उछलने लगा था एक ऐसे दोराहे पर खड़ी थी ,जहां पर एक तरह रास्ता वहीं हैवानियत भरी कोठी की ओर जाता है और दूसरा रास्ता वह था, जहां कोई उसकी जिंदगी को फूलों की तरह हाथोमे लेकर स्वागत करने को तैयार खड़ा था!
                      (क्रमशः)
                    
मेरे प्रिय रीडर्स आप लोगों को ये बताना है की हमारी कहानी की नायिका को उसके घर में वापस जाना चाहिए ? या फिर वह एक बार फिर उसको अपनी किस्मत आजमा कर सिर्फ उसके लिए जी रहे नरेंद्र को अपनाना चाहिए? आपके प्रतिभावों का इंतजार रहेगा..
                       साबीरखान...