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दास्तान-ए-अश्क -7

(

पिछले पार्ट मे हमने देखा की कहानी की नाईका ईस बात से बहोत परेशान है कि नरेंद्र उसको प्रेम करता है.. वो उसके साथ शादी करना चाहता है..
मगर नाईका अपने पेरन्टस का दिल दुखाने वाला काम नही करना चाहती... अब आगे...?)

वो भारी मन और बोझिल कदमों से चलते हुए घर वापस आई !
सारे रास्ते एक ही बात उसके दिमाग को कचोट रही थी !
उसने जो किया वह सही था गलत ?
मन काफीउदास था !
बेचैनी बढ़ रही थी!
और वो कर भी क्या सकती थी कुछ भी नहीं
कर पा रही थी!
एक तरफ जहां उसको उम्मीद थी नए जीवन की!
वहीं कुछ बातों को अपने दिमाग से निकाल देना चाहती थी!
अपने मन की हालत को वह समझ ही नहीं पा रही थी!
इस वक्त खुश होना चाहिए उसे या अपनी बेबसी पर रोना चाहिए!
घर पहुंची तब उसका मन प्रीति से मिलने बहुत ही उतावला हो रहा है !
क्योंकि वह जानना चाहती थी नरेंद्र के साथ उसकी क्या बातें हुई है!
आज उसका कुछ भी करने का मन नहीं था !
ना लिखने का, नाम पढ़ने का ,ना कुछ और काम करने का..!
दिमाग कशमकश में था!
आंखों की पुतलियां भारी हो रही थी !
उसको पता भी न चला कब आंख लग गई..!
जब उसकी आंख खुलती है तो प्रीति वहां काम करती नजर आती है!
तपाक से वो उठ जाती है !
प्रीति मेरे पास आओ..! उसकी आवाज में काफी बेचैनी छलक रही थी
"जी दीदी क्या बात है ?आप इतनी उदास क्यों हो?"
प्रीति तुम मुझको दीदी बोलती हो मगर मानती नहीं हो!
"अरे दीदी तुम ऐसा क्यों बोल रही हो..?
"प्रीति कभी मैंने तुम्हारे साथ कुछ गलत किया है?
तुम्हारा हमेशा अच्छा ही चाहा है ,फिर तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया..?
कभी तुम्हें ऐसा एहसास होने दिया कि तुम मेरी बहन नहीं हो ?
फिर तुमने मेरे साथ धोखा क्यों किया..? "
"क्या बात है दीदी ?आप मुझसे इतनी खफा क्यों हो..?
और मैं आपके साथ भला कैसे धोखा कर सकती हूं..?
आप ऐसी बातें क्यों करती हो दीदी ?आप तो मेरी बहन से भी बढ़कर हो..!"
अगर ऐसा होता तो तुमने मेरे आर्टिकल मेरी रचनाएं सब देवेंद्र को ना दिए होते !
और कभी मुझे उस बात की भनक तक नहीं लगने दी..!
नरेंद्र के मन में क्या चल रहा था उसके बारे में मुझे कभी बताया भी नहीं..!
आखिर तुमने ऐसा क्यों किया प्रीति? क्यों किया..?"
दीदी सुनो मेरी बात ,आपको मेरी कसम ..! आप एसी बाते मत करो ,पहले मेरी बात सूनो..!
नरेन्दर आपसे बहोत सच्चे मन से प्रेम करते है..! उन्होंने मुझे अपनी राखी बहन बनाया है !
राखी बंधवाई मुझसे!
और मुझे कसम देकर कभी भी ये बात ना बताने को बोला था कि वो आपसे बहोत प्रेम करते है..!
वो चाहते थे कि तुम सामने से उनके प्यार को समजो..! वो बहोत अच्छे ईन्सान हैं दीदी..!
बहुत सारे आर्टिकल उन्होंने ही अखबार के लिए पोस्ट किए!
मैं आपको मना नहीं कर पाई ! पर आप यह भूल गई कि मैं एक काम वाली मगर हुं तो एक लडकी ही. !
अगर मैं डाकखाने चिट्ठियां डालने रोज जाती कल मेरे चरित्र पर भी उंगलिया उठ सकती थी!
आपका मुझ पर ईतना बड़ा एहसान है कि आपको मना करने का मन ही नहीं हुआ!
"अरे नहीं प्रीति वह ऐहसान नहीं था !
वह तो एक बड़ी बहन का अपनी छोटी बहन के प्रति फर्ज था!"
"नहीं दीदी आपने मेरी जिंदगी तबाह होने से बचाई..!
उस एहसान को मैं कभी नहीं भूल सकती ! बदले में आप जो भी कहती मैं वह सब करती !"
"अरे हां यार मैं भी कितनी बूध्धु थी कभी यह सोचा ही नहीं कि तू भी तो एक लड़की ही थी!
पर सच बताउ तू बहुत सुंदर है !
मेरे से भी अधिक सुंदर..!
मुझे तो खुद को ठीक-ठाक करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी!
मगर तेरी सुंदरता पैदाइशी है!
हटो दीदी , आप कैसी बातें करते हो !
हम गरीब लोग सुंदर नहीं हुआ करते!"
"अरे पगली ऐसा नहीं बोलते भगवान ने तूम्हे अच्छी खासी खूबसूरती बक्सी है की
देखने वाले देखते ही रह जाए!"
"अब छोड़ो दीदी ऐसी बातें बंध करो.!
"ठीक है बाबा .. अब तु अपना काम खत्म करले !
कोशिश करना कि नरेंदर से वह सारे कागज तू वापस ले सकें..! भाई है ना वो तेरा..? "
"नही दीदी वो अब आपको कभी वापस नहीं मिलेंगे !
आज नरेंद्र भैया ने मुझे आपके बारे में बताया! और आप की शादी के बारे में भी..!
साथ साथ उन्होंने यह भी कहा कि आप फिकर ना करे !जब तक वह जिंयेगे ये चिठ्ठीयां अमानत की तरह उनके पास ही रहेगी..! आप डरना मत वो कभी भी किसी को कुछ नहीं बताएंगे!"
प्रीति की आंखें भर आती है अपनी आंखें छुपा कर वह काम में लग जाती है!"
अब वह सोचती है की इस काम वाली लड़की को मैंने एक छोटी सी मदद की उस मदद के बदले अपनी परवाह ना करते हुए वो रोज मेरी मदद करती रही..!
कितनी बड़ी गलती हो गई मुझसे !
सच में अगर नरेंदर ने इसका साथ ना दिया होता तो वह शायद मुसीबत में पड़ जाती ! तब मैं कभी भी अपने आप को माफ न कर पाती..!

उसे वह दिन याद आता है!
जब प्रीति की मां बहुत खुशी-खुशी घर का काम करते हुए गुनगुना रही थी !
तभी उसकी दादी उमा देवी जी ने उसे पूछा!
आज तो तू बहुत बड़ी खुश है !
ऐसा क्या पा लिया है तूने ?जरा बता तो सही मैं भी तो सुनूं !
अरे नहीं बीजी आज अपनी प्रीति के लिए लड़का मिल गया मुझे !
ओ मेरे जेठ की बेटी आई थी अपने देवर का रिश्ता लेकर..!
अच्छा लड़का है कमाता भी बहुत है !
देखने में भी बहुत सुंदर है मेरी जेठानी बता रही थी !
लेकिन अभी प्रीति तो बच्ची है !
उमा देवी जी ने आश्चर्य से कहा!
बीजी आप जानती हो मेरे तीन बच्चे हैं!
बेटा और बेटी की हालत आप से छुपी नहीं है !वह दोनों पागल तो नहीं लेकिन पागलों से कम हरकते करते है..?
ले देकर एक बेटी ही तो बची है..!
मैं चाहती हूं कि वह अपने घर में सुख से जाए ! अपने पति के साथ खुशहाल जिंदगी जीये !
अगर हम दोनों इस दुनिया से चले भी जाएं तो अपने दोनों पागल जैसे भाई बहन का ख्याल रखें!
मुझे बहुत चिंता होती है इसकी !अब तो रिश्तेदारी में ही रिश्ता मिला है इसलिए बहुत खुश हु!
उमा देवी जीने उसके चेहरे पर खुशी साफ झलकती देखी !
उमा देवी उसकी बातों में काफी रुचि ले रही थी!
तब उससे रहा नहीं गया उसने कहा !
"काकी आपने लड़के की जांच पड़ताल करवाई है ? किसी के भरोसे मत रहना !
आपकी बेटी बहुत अच्छी है अभी वह नाबालिग है ! इतनी जल्दी उसकी शादी मत करो!
तब प्रीति की माने बताया बिटिया तुम लोग पैसे वाले हो और हम गरीब !
हम गरीबों के पास सिर्फ अपनी इज्जत होती है !
और कहीं उस ईज्जत पर अगर दाग लग जाए तो वह कभी नहीं मिटता !"
अरे काकी इज्जत तो सभी की एक जैसी होती है क्या गरीब क्या अमिर !
आप ऐसी बातें क्यों करती हो ?
प्रीति के रूप में भगवान ने तुम्हे सोने जैसी बेटी दी है !
वह इतनी सुंदर है !सुशील है !
क्या हुआ अगर उसे पढ़ाई लिखाई नहीं आती !लेकिन घर के कामों में वह बहुत निपुण है !
यह बात तुम भी जानती हो और उसे अच्छा लड़का जरूर मिलेगा
तुम पहले उस लड़के की जांच पड़ताल तो कर लो कि वह कैसा है जांच करने के बाद परखने के बाद फिर शादी करना काकी उसकी
अरे हां मेरी मां यही करूंगी तू बहुत बड़ी बड़ी बातें करती है
वह हंस पड़ती है नहीं काकि मैं बड़ी बातें नहीं करती मैं यह चाहती हूं कि हमारे प्रति सुख से रहे
हां बिटिया मैं देखूंगी और तेरे अंकल जी को वहां भेजुंगी
अगले दिन प्रीति आई! वो बहोत ही घबराई हुई थी! उसकी आंखे झार झार थी!
दीदी ..दीदी मुझे बचा लो !मुझे यह शादी नहीं करनी है!
आते ही रोते बिलखते हुए वो उसके गले से लिपट गई!
क्या हुआ ? उसने धबराकर पूछा!
दीदी वह लड़का..!
वह लड़का अच्छा नहीं है वो किन्नरो के संग ??"
फिर वह फफक कर रो पडी...!
प्रीति की आधी अधूरी बात से वो समझ गई कुछ गलत हो रहा हैं.. पर क्या..?
उसकी जिञ्यासा और उत्कंठा को पंख लग गये!
(क्रमश:)