बेवजह घर से निकलने की,  ज़रूरत क्या है |
मौत से आंख मिलाने  की,  ज़रूरत क्या है ||

सबको मालूम है, बाहर की हवा है क़ातिल |
यूँ ही क़ातिल से उलझने की,   ज़रूरत क्या है ||

दिल बहलने के लिए, घर मे वजह हैं काफी |
यूँ ही गलियों मे भटकने की, ज़रूरत क्या है||

ज़िन्दगी एक नियामत, इसे संभाल के रख |
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||

लोग जब हाथ मिलाते हुए कतराते हों|
ऐसे रिश्तों को निभाने की ज़रूरत क्या है ||

Hindi Poem by Dharmesh Vala : 111388358

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