चलो चले कहीं
पहचान बदल कर...
किसी अंजान राहों में...
किसी अंजान शहर में...
घण्टों घूमते रहे अंजान गलियों में...
जहां हम हो तुम हो
और हमारी चाय के अलावा कोई ना हो।
चलो चले इस आसमा से परे..
जहां तुम हो इश्क़ हो,
हर वक़्त तुम्हे सोचूँ ,
तुम्हारे लिए ही जियूँ,
बस जाऊं तुममे कही,
जहां सिर्फ हम हो..
और हममें हमारा सारा जहाँ हो..
चलो चले इस शहर से दूर कहीं..
किसी अनजान सफर में..