गजल
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ये दिल शीशे के जैसा हैं तबहा होने से डरता है ।
खिलौना हैं जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है।।
मिलन के बाद में अक्सर जुदाई खूब मिलती है।
भ्रमर फूलों से अक्सर ही जुदा होने से डरता है।।
बिना आराम के हम को बड़ी तकलीफ होती है।
ये दिल का रोग दिल से भी बड़ा होने से डरता है।।
वो इक बच्चा हुआ घायल, सड़क पर कार के नीचे।
अभी भी वो सड़क पर यूं खड़ा होने से डरता है।।
उमा धोखे जमाने में बहुत झेले हैं हमने भी।
यही सब सोच कर ये दिल जवा होने से डरता है।।
रचनाकार
उमा वैष्णव