#काव्योत्सव २.० #भावनात्मक

मै भी कुछ करना चाहूं
मेरे देश पे मै मरना चाहूं
जले देश भक्ति की , अग्नि प्रखर
नहीं होता मुझसे, तनिक सबर
जहां है वो सबसे, उच्च शिखर
मै भी उसपे चढ़ना चाहूं
मेरे देश पे मै मरना चाहूं।

उस शिखर पे ध्वज लहराने को
सीने पे गोलियां खाने को
फ़िर वीर शहीद कहलाने को
मैं उस पथ पे बढ़ना चाहूं
मेरे देश पे मै मरना चाहूं।

हूं एक पर मैं, मारूंगा चार
नहीं थमने दूंगा, भक्ति की धार
मां रण चंडी के खप्पर का भार
हल्का अब मैं करना चाहूं
मेरे देश पे मै मरना चाहूं।

Hindi Poem by Satish Malviya : 111330530
Satish Malviya 4 years ago

धन्यवाद

Ghanshyam Patel 4 years ago

Happy Republic Day. Jay Hind Vande Mataram.

shekhar kharadi Idriya 4 years ago

सुंदर रचना...

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