तेरी पतंग, मेरी डोर। ले जायें पवन, गगन की ओर। जितना खिंचू, उतनी भागें। खिंच रहे उसे प्रेम के धागें। संभलकर लेना उसके वचन को। भाँए न किसी और गगन को। अपनेही नखरें में उड़ती। उस चंचल राह न समझती। लेपेटु धागा, पास बुलावु। हक की, हित की बात बतावु। @सुर्यांश_M14/20

Hindi Song by Suryakant Majalkar : 111323372

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