मे और मेरे अह्सास

आखरी मुलाकात जाँ निकाल देती है l खुदाया किसीसे कोई भी ना बिछड़े कभी l ये वो लम्हा होता है l जिस में रूह कांप जाती है l जिस्म की लाश रह जाती है l रह जाती है सिर्फ तन्हाई, लम्बी वीरानी l जो अकेले ता उम्र जिस्म का बोझ उठाए फिरती है ll
दर्शिता

Hindi Shayri by Darshita Babubhai Shah : 111300570

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