आंखे चाहे बन्द हो मेरी, उनमें उमड़ा सैलाब रखती हूं,
देने को तो सिद्दत से देती हूं, चाहे हो महाॅब्बत या हो जरूरत, समझ आए उसे भी कभी , में एक हद तक राह तकती हूं,
कसक होती है हमे भी कभी दिल में,
फिर भी हो गर सूखा जमकर बरसती हूं,
ना जीती हूं ना मरती हूं,
ना तलब है ना तड़पती हूं,
बस एक जान सा हे तू,
तुझ में बनती हू रोज और फिर रोज बिखरती हूं?