मैं जानता हूँ
तुम्हारे अन्दर कोई ’क्रान्ति’ नहीं पनपती
पर बीज बोना तुम्हारा स्वभाव है।
हाथ में कोई 'मशाल' नहीं है तुम्हारे
पर तुम्हारे श्रम-ज्वाल से भासित है हर दिशा।
मेरे प्यारे ’मजदूर’
यह तुम हो जो
धरती की गहरी जड़ों को नापते हो अपनी कुदाल से
रखते हो अदम्य ’ज्योतिर्धर’।

Hindi Poem by Himanshu Kumar Pandey : 111292597

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