जो कुछ तबाह होता हे,
वो खाख कहा होता है?
खाबो के बुलबुले उठते है,
मगर जनाजा नहीं निकलता है....
अक्सर उलझ सा जाता हु
इस बात पर
की आइना हर किसी को
खुद से बहेतर क्यु दिखता है?
ये काच सी जिंदगी हे
चुभती भी बहुत है
और रखती भी बहुत हे

Hindi Poem by Mansi Vora : 111275404

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