उजड़ा आशियां बनेगा फिर, कितनी मदारातों के बाद,
आकर ठहरे है इक अजनबी, गमों की कितनी रातों के बाद।
प्यास बुझेगी मेरी दिल की, अब कितनी बरसातों के बाद।।
मगर वो अजनबी ही है आज भी, कितनी मुलाकातों के बाद....
दिल को बड़ी शिफाकत से रखा था दुनिया से बचाकर मैंने,
मगर इश्क़ करने का जुर्म कर बैठे थे कितने एहतियातों के बाद..
आग दामन की बुझाने में मिट गई मेरी हाथों की लकीरें मगर,
मेरी किस्मत की लकीरें थी उनके हाथों में मेरे हाथों के बाद..
दर्द-ए-दिल में बस इक आरजू लिए जिए जा रहे हैं हम,
इक रोज़ लौटकर आयेगी खुशियां, गम-ए-हालातों के बाद..
कभी तो निकलेगा फलक पर, इक आफताब मेरे लिए भी,
यकीनन इक सुबह मेरी भी होगी, इन तमाम काली रातों के बाद..
#सत्येंद्र_ ✍️