हां मुझको इश्क़ जाताना नहीं आया ।
तू खफा-खफा सी थी मुझसे ,
ओर मुझको तुझे मानना नहीं आया।
सोचा कि तू पढ़ लेगी इश्क को आँखों में मेरी ,
पर तुझको तो कभी आंखे पड़ना ही नहीं आया ।
क्या कोई कमी रही थी मोहब्बत में मेरी ,
या फिर मुझको इश्क़ करना ही नहीं आया ।
जब भी चाहा था मैंने इश्क़ को जाताना तुझसे ,
देखकर तुझको मेरे लबोँ पर कभी कोई अलफ़ाज़ नहीं आया ।
हां मुझको इश्क़ जाताना नहीं आया ,
तू खफा-खफा सी थी मुझसे ,
ओर मुझको तुझे मानना नहीं आया ।।।
हां मुझको इश्क़ जाताना नहीं आया ।
तू खफा-खफा सी थी मुझसे ,
ओर मुझको तुझे मानना नहीं आया।
सोचा कि तू पढ़ लेगी दिल के जज़्बात मेरी आंखों में ,
पर तुझको तो कभी आंखे पड़ना ही नहीं आया ।
क्या कमी रही थी मोहब्बत में मेरी कोई ,
या फिर मुझको मोहब्बत करना ही नहीं आया ।
जब भी चाहा मैने इजहार ए इश्क बयां करना तुझसे ,
देखकर तुझको मेरे लबोँ पर कभी कोई अलफ़ाज़ नहीं आया ।
हां मुझको इश्क़ जाताना नहीं आया ,
तू खफा-खफा सी थी मुझसे ,
ओर मुझको तुझे मानना नहीं आया ।।।