और रावण जल रहा है।।

मर गया अंदर का राम और रावण जल रहा है,
धर्म पीछे है आगे काम और रावण जल रहा है,

स्वार्थ पूर्ति हेतु जुड़े परिवार न प्रेम का है आसार,
बेवजह होते क़त्लेआम और रावण जल रहा है,

सीता रोज़ लूटी जाती हर रोज़ गली चौबारों में,
लुटती इज़्ज़त सरेआम औऱ रावण जल रहा है,

इश्क़ के नाम जिश्म की चाहत गोरे चहरे बिकते,
संवेदना के लगते दाम और रावण जल रहा है,

धोखा,नफ़रत भरी हुई दिलों में रोता हुआ इंसान,
अच्छाई की हो गई शाम और रावण जल रहा है,

बीत गया सतयुग अब हर मन में रावण बसता है,
राम का रह गया नाम बस और रावण जल रहा है।।

Hindi Poem by Bansari Rathod : 111268006

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