जलजला

रोक सको तो रोकलो..
फरियाद तो होगी अब देखलो..
न.. बैठेंगे चुप.. अन्याय के.. सामने
होंगी हिमाकत अब ये भी सुनलो..
भ्रष्टाचार.. ने क़हर मचाया..तो
बनके जलजला. आग बरसायेंगे..
अब हो गया खेल राजनीती का बहुत..
अब आम आदमी का वजूद दिखलायेंगे..
करलो सारा जतन,, अब होगा सब का पतन..
खेल खेले जितने भी कुर्सी के,,
जमीर को बेचके.. उसूलो को निचोड़ के..
अब न पाउ तले जमीन रहेगी..
न रहेगी सर पे पघड़ी,,
ठेकेदार हो जो तुम ख़ुर्शी के..
हम.. वो ही खिसकलेंगे...
न बचेगी ख़ुर्शी.. ओर न बचेगी ठेकेदारी
अब तुम ये भी समजलो...
✍️✍️✍️ ऐक अहेसास आप के साथ alp@meht@

Hindi Poem by Alpa : 111248660

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