बेलगाम हुई जा रही है धडकनें ।
क्या करे किस तरह संभालें ॥
बेनकाब हो गया है दिल का हाल ।
क्या करे किस तरह छिपायें ॥
सखी होश में ना आएगे कभी ।
क्या करे किस तरह जगायें ॥
"सखी" दर्शिता 

Hindi Shayri by Darshita Babubhai Shah : 111234384

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