क्यों ये बंद दरवाजे खोले नहीं जाते
क्यों मन के भाव बोले नहीं जाते
क्यों चुप है वो शब्द जो देते है दुआ
क्यों हे नेह के बंधन टूटे है ऐसा क्यों हुआ
चलो आज मन की बात करते है
अपने ही आप से कुछ कहते सुनते है
कुछ चुप से कुछ गुम से
क्यों मन नहीं मानता
ऐसा क्या है जो ये नहीं जानता
हवा की रफ़्तार रुक गई है
क्या कहूं कभी मोंन होकर कभी खुद में खोकर
चलती रही में दूर निकल गई इतना कि खुद के पास भी ना आ पाई
कहने दो चुप होने के बहाने को की वो बहाना नहीं जीवन का सार है
कभी वेदना तो कभी यादों की झंकार है
कहने दो मुझे बस यूं ही

Hindi Poem by sharmistha gautam : 111208573

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