साँसों का यूँ किराया अदा कर रहा हूँ मैं
होटों पे मुस्कुराहटो को भर रहा हूँ मैं।

पैवंद सिर्फ जिस्म नहीं रूह तक में है
जैसे किसी फकीर की चादर रहा हूँ मैं।

तुम कहे रहे हो सब यहाँ महेफुज है मगर
बेटी को अपनी देखके ही डर रहा हूँ मैं।

तुम साथ धुप में जो चले यूँ लगा मुजे
साये में बादलों के सफ़र कर रहा हूँ मैं।

सहमा हुआ समां भी है दहशत है हर जगा
लगता है अपने साये से भी डर रहा हूँ मैं।

तुम आ गए तो रौनक-ए-हस्ती भी आ गयी
'महेबुब' मेरे अब ख़ुशी से मर रहा हूँ मैं।

महेबुब आर. सोनालिया।

Gujarati Shayri by Author Mahebub Sonaliya : 111206718

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