#काव्योत्सव -2

श्रेणी : प्रेम

" बेजुबान भाषा "

बात करने में तल्लीन
हम माँ बेटी
गाय और उसका बछड़ा
बछड़े को ढूंढती उसकी माँ
मां की पीड़ा को
समझने वाली उसकी बच्ची
देखती है -

गाय मीलों चली गई
बछड़ा नहीं मिला।
किसी को चिंता नहीं है
इसीलिए
कि इस माँ की भाषा को
कोई नहीं समझता।

ना यह माँ, न उसकी बेटी
और न ही वो पुलिस वाला
जो आदमी का बच्चा ढूंढता है,
आकाश पाताल एक कर के
पड़ोसी भी अपनी सहानुभूति जताता है
और कुछ परेशान भी दिखता है।

गाय का बछड़ा खो गया
किस से कहे ?
कहाँ दुहाई दे ?
किस पुलिस वाले को पकड़े ?
वो बेचारी मूक गाय !

माँ की ममता को कौन जाने ?
कांजी हाउस वाला तो एक मुंशी है।
पशुओं को पकड़ता है
उसी का हिसाब रखता है,
किंतु उस बेजुबान की
ममता भरी चित्कार
वो भी नहीं समझता है।
नीलिमा कुमार

Hindi Poem by Neelima Kumar : 111164206

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now