औरतें रोती नहीं - 12

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औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन Chapter 12 मेरी जिंदगी के सौदागर हैदराबाद एयरपोर्ट पर लैंडिंग से पहले उज्ज्वला एक तरह से होश में आ गई। अंदर का तापमान बीस डिग्री के आसपास था। ठंड सी लगी, तो अपने हाथों को जीन्स की जेब में डाल वह सीट पर टिक कर बैठ गई। कितना अच्छा लग रहा है यह सफर। शांत और तल्लीन। रास्ते में जरा सा खाया था उसने। अब भूख लग रही थी। पद्मजा से कहेगी, तो नाराज होगी कि तुम वक्त के पीछे चलती हो। कोई बात नहीं। जरा सी भूख बर्दाश्त कर लेगी, तो क्या हो जाएगा।