पर्व के रंग

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दीवाली की रात.. सूरज और चाँद मानो एक साथ सम्पूर्ण निहारिका लेकर धरती पर जगमगाने चले आए हों. मन के भीतर भी और बाहर भी उत्सव का उल्लास छाया हुआ . सृष्टि का कण कण पर्वमयी हो सप्तरंगी इंद्रधनुष सी छटा बिखेरता हुआ, तन और मन को पुलकित करने का पर्याप्त अवसर प्रदान कर रहा था.. इन सबके बीच शिखर, बारह वर्षीय चंचल बालक एकदम गुमसुम सा बैठा रहा.. पाँच वर्ष बड़ी बहन शीतल के सारे प्रयास विफल हो गए.. वह आतिशबाजी के लिए तैयार ही नहीं हुआ . "मम्मा! देखो न शिखर को आप ही समझाओ अब, पटाखे