बंद खिड़की

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देखता हूं जब मैं इस बंद खिड़की की ओर, दूर तक कुछ भी दिखाई न देता है, बैठकर चुपचाप जब देखता हूं इसकी ओर, तो हल्का सा कुछ मुझको सुनाई तो देता है, वो हल्का सा कुछ जाना पहचाना सा है, वो हल्का सा शायद रिक्शे की घंटी है, गली में जो दूर से मुझे आता दिखा है, उस पर वो अपने घर के बड़े हैं और, अपना कोई मुस्कुराता दिखा है, दौड़कर दरवाजा घर का खोलने मैं जो गया, तो देखा वो दरवाजा नहीं, वो तो सिर्फ हवा है, वो दरवाजा नहीं वह तो सिर्फ हवा है, चौंक कर देखता हूं जब पास अपने, तो पूछती हैं दीवारें... क्या फिर से कोई नया ख्वाब