Hindi Religious videos by Deepak Vyas Watch Free

Published On : 24-Apr-2023 04:19pm

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बहुत सटीक व तार्किक विश्लेषण

अभी भी देखा जाए तो
ब्रिटेन की जनसंख्या और क्षेत्रफल
गुजरात के बराबर है, लेकिन उन्होंने


भारत की करोड़ों की जनसंख्या को
मात्र कुछ लाख या हजार लोगों ने
गुलाम बनाकर रखा, और केवल
गुलाम ही नहीं बनाया बल्कि
खूब हत्यायें और लूटपाट भी की.

सोचकर ही अजीब लगता है कि
हम लोग अंग्रेजों के सैनिक बन कर,
अपने ही लोगों पर अत्याचार करते थे.
चंद्रशेखर, बिस्मिल जैसे मात्र कुछ
गिनती के लोग थे, जिन्हें
हमारा ही समाज
हेय दृष्टि से देखता था.

आज वही नपुंसक समाज
उन चंद लोगों के नाम के पीछे
अपना कायरतापूर्ण इतिहास छुपाकर
झूठा दम्भ भरता है.

अरब के रेगिस्तान से कुछ भूखे
जाहिल, आततायी लोग आए,
और उन्होंने भी हमको लूटा, मारा,
बलात्कार किया. और हम
वहाँ भी नाकाम रहे.

उन्होंने हमारे मन्दिर तोड़े,
हमारी स्त्रियों से बलात्कार किये, लेकिन
हमने क्या किया ?
वो दिन में विवाह में लूटपाट करते हैं,
तो रात को चुपचाप विवाह करने लगे,
जवान लड़कियों को उठा ले जाते हैं,
तो बचपन में ही शादी करने लगे और
जरा विचार करके देखिए कि
मुस्लिमों एवं अंग्रेजों से जिस तरह
क्षत्रिय लड़े, अगर पूरा हिन्दू समाज
क्षत्रिय बनकर, लड़ा होता तो क्या
हम कभी गुलाम हो सकते थे ?

सामान्य परिस्थिति में
समाज को चलाने के लिए
उसको वर्गीकृत किया ही जाता है ,
लेकिन
विपत्तिकाल में नीतियों में परिवर्तन भी
किया जाता है, लेकिन हम इसमें
पूरी तरह नाकाम लोग हैं. इसलिए
1000 सालों से दुर्भाग्य
हमारे पीछे पड़ा है.

अटल जी एक भाषण में कहते हैं कि
एक युद्ध जीतने के बाद जब
1000 अंग्रेजी सैनिकों ने
विजय-जुलूस निकाला था, तो
सड़क के दोनों तरफ 20000 लोग
देखने आए थे.

अगर ये 20000 लोग
पत्थर-डण्डे से भी मारते, तो
1000 सैनिकों को भागते भी नहीं बनता,
लेकिन ये 20 हजार लोग
केवल युद्व के मूक दर्शक थे.

आज भी कुछ खास नहींं बदला है.
मुगलों और अंग्रेजों का स्थान
एक खास dynasty ने ले लिया और
वामपंथियों/सेकुलरों के रूप में
खतरनाक गद्दारों की फौज भी
पैदा हो गई.

लेकिन सबसे बड़ी विडंबना
यह है कि हम आज भी बंटे हुए हैं.
100 करोड़ होकर भी
मूक दर्शक बने हुए हैं.

भले ही कुछ लोग
कुछ जागृति पैदा करने में
सफल हुए हों,
पर बिना संपूर्ण जागृति
इस देश के दुर्भाग्य का
अंत नहींं होगा.

सही है कि हम ...
इतिहास से सीखने वाले नहीं हैं,
चाहे खुद इतिहास बनकर रह जाएं.

विचारणीय लेख ✍️ 👉संपूर्ण लेख अपने समाज के संदर्भ में लेकर देखिए कि हम अपने समाज के लिए क्या कर सकते हैं ताकि हमारी आगामी पीढ़ियों को वैचारिक और मानसिक गुलामी की मानसिकता से बाहर निकलने का रास्ता मिल पाए

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