Hindi Motivational videos by AMIT KUMAR KAUSHIK Watch Free

Published On : 23-Nov-2021 09:13am

270 views

जल का एक पर्यायवाची शब्द है-जीवन। शायद वह इसलिए कि जल के अभाव में न तो जीवन की रचना या उद्भव संभव है और न ही जीवन उसके बिना रह ही सकता है। केवल मनुष्य ही नहीं, धरती के के अन्य सभी छोटे-बड़े जीव, पेड-पौधे और वनस्पतियाँ आदि सभी का जीवन जल है और उसका अभाव सभी का स्वतः ही अभाव या मृत्य है। लेकिन यही प्राणदायक प्राकृतिक तत्त्व जल जब बाढ़ का रूप धारण कर लिया करता है, तो प्रकति का एक क्रूर परिहास भा बन जाया करता है।बाढ यानि जल प्रलय! बाढ क्यों और कैसे आया करती है ? स्पष्ट है कि इसका प्राकृतिक कारण तो वर्षा का आवश्यकता से अधिक होना ही माना जाता है। पर कभी-कभी किसी नदी या डैम आदि के बाँध दरारे पड़ कर, टूट और बह कर भी जल प्रलय का-सा दस्य उपस्थित कर दिया करते हैं। जल प्रलय या बाढ़ का कारण चाहे प्राकृतिक हो या अप्राकतिक उस से उतनी जन-हानि तो कभी-कभी ही हुआ करती है कि जितनी वित्त-खलिहानों, पशुधन और मकानों आदि के नाश के रूप में धन-हानि हुआ करती है। कई बार तो इस बात का स्मरण आते ही रोंगटे खड़े होने लगते हैं कि जल प्रलय में बह या डब रहे मनष्य अथवा पश आदि की उस समय मानसिक दशा कैसी भयावह करुण एवं दारुण हुआ करती होगी। डूबने वाला जिस किसी भी तरह बच पाने के लिए कितना सोचता और हाथ-पैर मारता होगा। उफ नहीं ! इस बात की कल्पना तक कर पाना सहज नहीं।विगत वर्षों मुझे बाढ से फिर कर बच आने और उस का भयावह मारक दृश्य देखने का अवसर मिला था। उफ! उस सब को सोच का आज भी कंपकंपी छूट जाती है। मारक ठण्ड में भी पसीना चुने लगता है। बरसात का मौसम था। चारों ओर से घोर वर्षा होने के समाचार आ रहे थे। दिल्ली में विगत कई दिनों से लगातार वर्षा होती रही थी। जल-थल, नदी-नालों आदि को मिला का एक कर दिया था। उधर ताजे वाला हैड से यमुना में लगातार पानी छोडा जा रहा था ताकि वह हैड और उसका बाँध स्वयं ही टूट कर न बह जाएँ। लगातार वर्षा के कारण शहर और उस के आस-पास लिए जितने भी नाले आदि बनाए गए थे, वे सब लबालब भर गए थे। नजफगढ नाला अपने किनारों के ऊपर तक बहने लगा था। तब हम लोग पंजाबी बाग के ही नाले के पास बने एक भाग में डी० डी० ए० द्वारा बनाए गए क्वाटरों में रहा करते थे।एक रोज शाम के समय देखा कि नालियों का पानी बाहर जाने की बजाए वापिस घरों में चला आ रहा है। इस का अर्थ अभिप्राय कुछ न समझ हम लोग यह सोच कर रात को निश्चिन्त होकर सो गए कि वर्षा का जोर थमते ही पानी अपने-आप निकल जाएगा। हम लोग सो रहे और क्यों कि पानी के निकास करने वाले सभी नाले लबालब थे. सो पानी वापिस आ कर घरों के आँगन में, फिर कमरों में भरता रहा?

0 Comments

Related Videos

Show More