Hindi Poem videos by मालिनी गौतम Watch Free

Published On : 29-May-2020 10:21pm

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ज़िंदगी

ज़िन्दगी पाइथागोरस प्रमेय नहीं
कि बंध जाए
किसी नियम में,
कुछ इनवर्टेड कौमा यहाँ
कभी नहीं खुलते,
कुछ मुस्कराहटों के पीछे
छिपे दर्द का
कोई हिसाब नहीं होता,
चश्मे के पीछे से झाँकती
कुछ आँखों की गहराई
कभी पता नहीं चलती,
कुछ मौन कभी
शब्द नहीं बनते,
कुछ रंग फीके नहीं पड़ते
बल्कि गहराते जाते हैं
उम्र के जर्जर कैनवास पर ।

मैं बावरी-सी
कभी नहीं सुलझा पाती
ये उलझी हुई गुत्थियाँ
थक-हार कर
अपनी ही फूँक से उड़ा देती हूँ
माथे पर बिखरे बाल
और कहती हूँ...
छोड़ लड़की......जाने भी दे
क्या सुलझाना ?
कि कुछ उलझने
अच्छी लगती हैं दिल को ।



मालिनी गौतम

3 Comments

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उत्तम रचना

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वाह.. अत्यंत सराहनीय.. एवम अति उत्तम सृजन शैली..

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