Hindi Motivational videos by Neelima Kumar Watch Free
Published On : 23-Nov-2018 07:10pm467 views
शुभ संध्या दोस्तों!
उत्तर प्रदेश में स्थित वाराणसी शहर श्रद्धा एवं भक्ति की अद्भुत संगमस्थली है । इस दिन " देव दीपावली " का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। पूरी वाराणसी दियों के प्रकाश से नहा उठती है। वास्तव में बनारस के लिए दीपावली का त्यौहार " देव दीपावली " के दिन ही होता है। आसमाँ के सितारों भरे आँचल की तरह बनारस शहर के साथ-साथ माँ गंगा भी दियों के प्रकाश से आलोकित हो उठती हैं। माँ गंगे की आरती का हर देशी- विदेशी लोगों को बेसबरी से इन्तज़ार रहता है।
कार्तिक पूर्णिमा का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। कार्तिक के महीने का अंतिम दिन " कार्तिक पूर्णिमा " के नाम से जाना जाता है और इस दिन देवता गण दीपदान करते हैं। उत्तर प्रदेश का वाराणसी शहर जिसे काशी नगरी भी कहा जाता है, यहाँ देव दिवाली का आयोजन बड़े ही धूमधाम से किया जाता है। पूरी काशी नगरी दुल्हन की तरह सजाई जाती है। दिन भर गंगा-पूजन, हवन, मंत्रोच्चारण, दीपदान जैसे आयोजनों से पूरी नगरी गूँजती रहती है साथ ही पटाखे, झाँकियाँ और साँस्कृतिक कार्यक्रम देखने वाले होते हैं। पूरे भारत में दीपावली कार्तिक पूर्णिमा से पहले मनाई जाती है परन्तुु काशी में दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही मनाई जाती है। यह " देव दीपावली " के नाम से प्रख्यात है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं और चतुर्दशी को ही भगवान शिव भी। इसी खुशी में देवता गण उस दिन पृथ्वी पर उतरकर शिव नगरी में दीप प्रज्वलित करते हैं। लेकिन दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस तारकासुर ने स्वर्ग से देवताओं को निकाल कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा रखा था। उस वक्त शिव पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके देवताओं को उनका स्वर्ग वापस दिला दिया था। पिता तारकासुर की मृत्यु उपरान्त उसके तीनों पुत्रों ने प्रण किया और ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करके उनसे एक वरदान प्राप्त कर लिया, जिससे वह स्वयं को अमर समझने लगे। तारकासुर के तीनों पुत्र त्रिपुरासुर के नाम से जाने जाते हैं। अपने आप को अमर समझने वाले इस त्रिपुरासुर ने देवताओं को पुनः स्वर्ग से निकाल दिया। तब देवता गण शिव की शरण में पहुँचे। उनकी व्यथा सुनकर स्वयं शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को स्वर्ग में प्रतिस्थापित किया। इसी खुशी में सभी देवता गण धन्यवाद देने काशी पहुँचे और पूरी नगरी में दीप प्रज्वलित करके गंगा की आरती की। यह दिन कार्तिक माह का आखरी दिन था। कहा जाता है कि तभी से काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन " देव दीपावली" का महा आयोजन किया जाने लगा।
पिछले वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मैं वाराणसी गयी थी। वहाँ स्वयं मैंने गंगा आरती का वीडियो बनाया था। आप सभी के लिए प्रसाद स्वरूप माँ गंगे की आरती का वही वीडियो upload कर रही हूँ। प्रसाद अवश्य ग्रहण कीजिएगा। जय गंगे माँ .. जय बम बम भोले...
नीलिमा कुमार
उत्तर प्रदेश में स्थित वाराणसी शहर श्रद्धा एवं भक्ति की अद्भुत संगमस्थली है । इस दिन " देव दीपावली " का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। पूरी वाराणसी दियों के प्रकाश से नहा उठती है। वास्तव में बनारस के लिए दीपावली का त्यौहार " देव दीपावली " के दिन ही होता है। आसमाँ के सितारों भरे आँचल की तरह बनारस शहर के साथ-साथ माँ गंगा भी दियों के प्रकाश से आलोकित हो उठती हैं। माँ गंगे की आरती का हर देशी- विदेशी लोगों को बेसबरी से इन्तज़ार रहता है।
कार्तिक पूर्णिमा का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। कार्तिक के महीने का अंतिम दिन " कार्तिक पूर्णिमा " के नाम से जाना जाता है और इस दिन देवता गण दीपदान करते हैं। उत्तर प्रदेश का वाराणसी शहर जिसे काशी नगरी भी कहा जाता है, यहाँ देव दिवाली का आयोजन बड़े ही धूमधाम से किया जाता है। पूरी काशी नगरी दुल्हन की तरह सजाई जाती है। दिन भर गंगा-पूजन, हवन, मंत्रोच्चारण, दीपदान जैसे आयोजनों से पूरी नगरी गूँजती रहती है साथ ही पटाखे, झाँकियाँ और साँस्कृतिक कार्यक्रम देखने वाले होते हैं। पूरे भारत में दीपावली कार्तिक पूर्णिमा से पहले मनाई जाती है परन्तुु काशी में दीपावली कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही मनाई जाती है। यह " देव दीपावली " के नाम से प्रख्यात है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास की निद्रा से जागते हैं और चतुर्दशी को ही भगवान शिव भी। इसी खुशी में देवता गण उस दिन पृथ्वी पर उतरकर शिव नगरी में दीप प्रज्वलित करते हैं। लेकिन दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस तारकासुर ने स्वर्ग से देवताओं को निकाल कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा रखा था। उस वक्त शिव पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करके देवताओं को उनका स्वर्ग वापस दिला दिया था। पिता तारकासुर की मृत्यु उपरान्त उसके तीनों पुत्रों ने प्रण किया और ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या करके उनसे एक वरदान प्राप्त कर लिया, जिससे वह स्वयं को अमर समझने लगे। तारकासुर के तीनों पुत्र त्रिपुरासुर के नाम से जाने जाते हैं। अपने आप को अमर समझने वाले इस त्रिपुरासुर ने देवताओं को पुनः स्वर्ग से निकाल दिया। तब देवता गण शिव की शरण में पहुँचे। उनकी व्यथा सुनकर स्वयं शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया और देवताओं को स्वर्ग में प्रतिस्थापित किया। इसी खुशी में सभी देवता गण धन्यवाद देने काशी पहुँचे और पूरी नगरी में दीप प्रज्वलित करके गंगा की आरती की। यह दिन कार्तिक माह का आखरी दिन था। कहा जाता है कि तभी से काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन " देव दीपावली" का महा आयोजन किया जाने लगा।
पिछले वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर मैं वाराणसी गयी थी। वहाँ स्वयं मैंने गंगा आरती का वीडियो बनाया था। आप सभी के लिए प्रसाद स्वरूप माँ गंगे की आरती का वही वीडियो upload कर रही हूँ। प्रसाद अवश्य ग्रहण कीजिएगा। जय गंगे माँ .. जय बम बम भोले...
नीलिमा कुमार
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